हाइलाइट्स

  • 1970 में कांग्रेस से अलग हो गए थे मोरारजी देसाई
  • 1972 में घनश्याम ओझा बने थे गुजरात के मुख्यमंत्री
  • इंदिरा के सामने खुद को CM बनवाने के लिए अड़ गए थे चिमनभाई पटेल

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When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government: इंदिरा ने क्यों बर्खास्त की थी गुजरात सरकार ? | Jharokha

When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government : गुजरात में 1980 के दौर की राजनीति तेजी से बदली थी. चिमनभाई पटेल राज्य में डिप्टी CM थे लेकिन इंदिरा के सामने खुद को CM बनवाने के लिए अड़ गए थे. आइए जानते हैं गुजरात की राजनीति के एक पुराने किस्से को...

When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government: इंदिरा ने क्यों बर्खास्त की थी गुजरात सरकार ? | Jharokha

When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government: गुजरात में चुनावी संग्राम (Gujarat Assembly Elections 2022) के बीच आइए जानते हैं 1972 के एक चुनावी किस्से को जब इंदिरा और राज्य के मुख्यमंत्री में आर-पार की लड़ाई छिड़ गई थी. नौबत ये आ गई थी कि इंदिरा ने तब के मुख्यमंत्री चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) की सरकार को ही बर्खास्त कर दिया था. आइए जानते हैं गुजरात की राजनीति के पुराने किस्से को..

1970 में गांधीनगर बनी थी गुजरात की राजधानी || Gandhinagar became the capital of Gujarat in 1970.

भारत में इमर्जेंसी (Emergency in India 1975) लगने से कुछ बरस पहले दिल्ली की सियासत में ही उथल पुथल नहीं मची थी... 1970 में ही गांधीनगर (Gandhinagar) गुजरात की राजधानी बनी थी और इसी दर्मियान दिल्ली से 800 किलोमीटर से ज्यादा दूर स्थित इस शहर में गुजरात की राजनीति भी संकट के दौर में थी... 'चिमन चोर है' के नारे हवा में गूंजने लगे थे.

चिमन चोर है, ये नारे गूंजे... उसकी वजह उनके फैसले थे, या इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) के? गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 (Gujarat Assembly Elections 2022) के बीच हम जानेंगे गुजरात की राजनीति के एक पुराने किस्से को.. जब इंदिरा गांधी भी घुटनों पर आ गई थी...

1970 में कांग्रेस से अलग हो गए थे मोरारजी देसाई || Morarji Desai had separated from Congress in 1970

पूरी कहानी शुरू होती है 1970 के दौर से... जब गुजरात में कांग्रेस दो फाड़ हो चुकी थी... नये गुट का नेता गांधी परिवार नहीं बल्कि मोरारजी देसाई (Morarji Desai) थे... कई नेता इस धड़े में शामिल हो गए थे... आंतरिक खींचतान और गुटबाजी ने हालात और खराब कर दिए थे... 1970 में नौजवान नेता चिमनभाई पटेल (Chimanbhai Patel) अचानक गुजरात की राजनीति में चमकते हैं...

1972 में घनश्याम ओझा बने थे गुजरात के मुख्यमंत्री || Ghanshyam Ojha became Chief Minister of Gujarat in 1972

1972 में चौथी विधानसभा (1972 Gujarat Legislative Assembly election) के लिए चुनाव हो चुके थे.. 167 में से 140 सीटे जीती थीं.. 17 मार्च को घनश्याम ओझा (Ghanshyam Ojha) सीएम बन गए थे और चिमनभाई डिप्टी सीएम बनाए गए..

वह मोरारजी देसाई के तगड़े समर्थक थे. चाहते थे खुद सीएम बनना लेकिन चुनाव के बाद इंदिरा ने ब्राह्मण चेहरे घनश्याम ओझा को मुख्यमंत्री के लिए चुना. हालांकि वह इंदिरा की पसंद थे लेकिन विधायक का समर्थन घनश्याम ओझा को हासिल नहीं था.

इंदिरा के सामने खुद को CM बनवाने के लिए अड़ गए थे चिमनभाई पटेल || Chimanbhai Patel was adamant to make himself CM in front of Indira

चिमनभाई और उनके समर्थकों ने ओझा को 15 महीनों के लिए झेला लेकिन मार्च 1972 से जून 1973 के बीच इंदिरा से उनकी तीखी नोकझोंक हुई. मुंबई के राजभवन में ये गर्मागर्मी हुई.

70 विधायक चिमनभाई के समर्थन में चुके थे.. तब चिमनभाई पटेल ने इंदिरा को चुनौती देते हुए कहा था कि आप ये तय नहीं कर सकती कि विधायक दल का नेता कौन होगा, ये विधायक ही तय करेंगे

इंदिरा ने तब उनका विरोध नहीं किया था... हां, उन्हें गुजरात प्रभारी स्वर्ण सिंह (Sardar Swaran Singh) से मिलने को कह दिया...

तब सरदार स्वर्ण सिंह थे गुजरात के प्रभारी || Sardar Swaran Singh was in charge of Gujarat

तब सरदार स्वर्ण सिंह गुजरात के प्रभारी थे और केंद्र में विदेश मंत्री (External Affairs Minister) थे... तब उन्होंने गुजरात की समस्या के समाधान के लिए गुप्त मतदान के लिए कहा था... इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था... स्वर्ण खुद गुजरात गए और गुप्त मतदान कराया... गिनती दिल्ली में हुई... चिमनभाई अपने प्रतिद्वंदी कांतिलाल घीया से 7 वोट से जीत गए

18 जुलाई 1973 को गुजरात सीएम पद की शपथ ली. वह पाटीदार समुदाय से आने वाले राज्य के पहले सीएम थे...

चिमनभाई वह नेता थे जिन्होंने इंदिरा गांधी जैसी मजबूत शख्सियत को मजबूर कर दिया था कि तब के मुख्यमंत्री घनश्याम ओझा को हटाकर उन्हें बॉस बनाया जाए...

चिमनभाई के CM बनते ही गुजरात में समस्या शुरू हो गई || Problems started in Gujarat as soon as Chimanbhai became the CM

पार्टी हाईकमान ने गुप्त मतदान के बाद चिमनभाई का पूरा साथ दिया... चिमनभाई ने भी अपनी फील्डिंग पूरी सजाई लेकिन चुनाव के बाद वह हर बात को साध न सके... उनकी नियुक्ति होते ही राज्य में सूखा और महंगाई की समस्या उठ खड़ी हुई. अनाज, तेल की कीमतें आसमान छूने लगीं. आम जनता का गुस्सा भड़कने लगा था...

इंदिरा ने गुजरात को होने वाली गेहूं की सप्लाई 1 लाख 5 हजार टन से घटनाकर 55 हजार टन कर दी. ये कट सिर्फ गुजरात के लिए था. नतीजा ये हुआ कि सरकार को मजबूर होकर छात्र हॉस्टल के मेस से सब्सिडाइज्ड गेहूं बंद करना पड़ा.

इसका खामियाजा भी चिमभाई के ही माथे आया...

चिमनभाई के विरोध में आ गए LD Engineering College के छात्र

अब विरोध की कमान संभाल ली LD Engineering College, अहमदाबाद के छात्रों ने... छात्रों के आंदोलन में कूदने की वजह ये थी कि 1970 के इस वक्त में महंगाई के बीच मेस का बिल 70 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 100 रुपये प्रति माह कर दिया गया था..

जल्द ही कैंपस का विरोध सड़क पर आ गया...मूंगफली का तेल 7 रुपये से बढ़कर 9.50 रुपये प्रति लीटर हो चुका था.. इस तेल का कारोबार जो शख्स संभालता था वह था तेलिया राजा और मुख्यमंत्री के लिए वो ऐसे चहेते थे कि उन्होंने इसे लेकर कोई फैसला नहीं लिया...

गुजरात यूनिवर्सिटी के दूसरे कॉलेज के छात्र भी CM के विरोध में उतरे

छात्रों के आंदोलन को गुजरात यूनिवर्सिटी (Gujarat University) के दूसरे कॉलेजों के स्टूडेंट्स का साथ मिलना शुरू हो गया था... मंत्रियों के घरों तक इस्तीफे के लिए मार्च होने लगे... लेकिन फिर आंदोलन में आती है हिंसा... बसें हाईजैक कर ली जाती है... आर्मी को बुलाया जाता है... फायरिंग में कई मारे जाते हैं... लेकिन आंदोलन राज्य के लगभग हर बड़े शहर तक पहुंच चुका था...

इंदिरा ने चिमनभाई सरकार को बर्खास्त कर दिया || Indira dismissed the Chimanbhai government

शहर शहर कर्फ्यू दिखाई देने लगा था... हालांकि छात्रों ने इस पूरी मुहिम से राजनीतिक दलों को दूर रखा था लेकिन भारतीय जनता पार्टी की पुरानी पार्टी जनसंघ को इससे अच्छा मौका कहां मिलने वाला था... दिल्ली में इंदिरा घिरी थीं और गुजरात में कांग्रेस... फरवरी 1974 में इंदिरा ने चिमनभाई पटेल सरकार को बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया...

चिमनभाई पटेल को पार्टी से निकाल दिया गया... लेकिन हालात इससे सुधर नहीं पा रहे थे... छात्रों ने नवनिर्माण आंदोलन की शुरुआत की... ऐसे वक्त में तकदीर सिर्फ जनसंघ की ही नहीं बदलती बल्कि एक 24 साल के नौजवान छात्र नेता का भी सिक्का चल पड़ता है... ये नौजवान कोई और नहीं बल्कि 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी थे...

गुजरात में नरेंद्र मोदी ने ABVP के मिशन को धार दी || Narendra Modi sharpens ABVP's mission in Gujarat

तब इसी नौजवान के कंधे पर RSS जिम्मेदारी डालता है ABVP की... नरेंद्र मोदी तब आम सभाएं करना शुरू कर देते हैं और स्टूडेंट मूवमेंट में शामिल छात्रों के साथ संवाद भी... सोशल एक्टिविस्ट हनीफ लकड़वाला ने बताया था कि मुझे याद है नरेंद्र मोदी तब कई भूख हड़तालों में भी शामिल हुए थे...

हालांकि मोदी छात्रों की मेन लीडरशिप तक पहुंच नहीं बना पा रहे थे क्योंकि वे सब किसी भी राजनेता या राजनीतिक दल को अपने साथ नहीं लाना चाहते थे... विधानसभा भंग थी इसलिए चुनाव की मांग करते हुए मोरारजी देसाई ने भी मार्च 1975 में अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल शुरू कर दी.

विपक्ष की तेज धार को देखते हुए जून 1975 में आपातकाल लागू कर दिया...

1989 चुनाव में बदल चुके थे गुजरात के हालात || Gujarat's situation had changed in 1989 elections

अब आते हैं 1989 में... कांग्रेस को इंदिरा की हत्या के बाद जो सहानुभूति वोट मिला था, बोफोर्स ने उसे दूर कर दिया था और राम मंदिर आंदोलन ने बीजेपी को एक ऐसा पेड़ बना था जिसपर आने वाले वक्त में फल लगने वाले थे... लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 26 में से 3 सीटों पर जीत मिली. चिमनभाई पटेल की जनता दल को 11 सीटें और बीजेपी को 12 सीटें... अगले साल हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 67 सीटें, चिमनभाई पटेल की जनता दल ने 70 सीटें और कांग्रेस को 33 सीटें मिली. कांग्रेस का वोट शेयर 55.5 पर्सेंट से घटकर 31 पर्सेंट पर आ गया था. चिमनभाई, बीजेपी की मदद से मुख्यमंत्री बने लेकिन आडवाणी की रथयात्रा (Lal Krishna Advani Rathyatra) के दौरान जब बिहार में उनकी गिरफ्तारी हुई तब बीजेपी ने ये समर्थन वापस ले लिया.

तब चिमनभाई का सहारा कांग्रेस ही बनी थी... 1991 में बीजेपी ने गुजरात में 51 फीसदी वोट हासिल किया और 22 सीटें जीतीं. खुद मुख्यमंत्री की पत्नी उर्मिलाबेन अपने गढ़ में चुनाव हार गई थीं. अपने हालात देखते हुए चिमनभाई ने जनता दल (गुजरात) का विलय कांग्रेस में कर दिया. बीजेपी इसके बाद भी 1996 और 1998 का लोकसभा चुनाव बढ़त के साथ जीतती रही.

2002 में फूट फूटकर रोई थीं उर्मिलाबेन पटेल || Urmilaben Patel wept bitterly in 2002

2002 में दंगों के बाद जब नरेंद्र मोदी ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और राज्य में चुनाव कराए गए थे, तब चिमनभाई के विरोध में ही साधुओं की पूरी फौज उतर आई थी. नतीजों में बीजेपी को जहां बंपर जीत मिली थी वहीं कांग्रेस 51 सीट पर सिमट गई थी. कांग्रेस का पार्टी दफ्तर ऐसा हो गया था जैसे मातम पसरा हो...

उर्मिलाबेन पटेल, चिमनभाई पटेल के बेटे सिद्धार्थ पटेल की हार से दुखी थी. साधुओं ने उनके खिलाफ अभियान चलाया था, बीजेपी की महिला कार्यकर्ताओं के साथ डोर टू डोर कैंपेन किया.. साधुओं की पलटन में 250 से 300 साधु थे... हिंदुत्व का प्रचंड वेग दिखाई दे रहा था..

बीजेपी ने न सिर्फ वापसी की थी बल्कि 182 में से 127 सीटें जीती थीं... और तब उन्हीं पूर्व सीएम चिमनभाई की पत्नी उर्मिलाबेन फूट फूटकर रोई थीं, जिन्होंने कभी इंदिरा को घुटनों पर ला दिया था...

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