देश की सबसे बड़ी अदालत (Supreme court) ने देश में बढ़ती पुलिस गिरफ्तारियों पर चिंता जताई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब आरोपी जांच में सहयोग कर रहा है तो उसकी गिरफ्तारी (arresting) जरूरी नहीं है. देश की टॉप कोर्ट ने अफसोस जताया कि साल 1994 में उसके द्वारा दिए निर्देशों के बावजूद नियमित गिरफ्तारियां की जा रही हैं और निचली अदालतें (lower courts) भी इस तरह के तरीके पर जोर देती हैं.
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सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि गिरफ्तारी से किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान पर बहुत गलत असर पड़ता है. पुलिस को इसका सहारा सिर्फ इसलिए नहीं लेना चाहिए क्योंकि कानून के तहत गिरफ्तारी की अनुमति है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने उत्तरप्रदेश (Uttar Pradesh) के एक शख्स सिद्धार्थ कुमार की याचिका पर ये बातें कहीं. सिद्धार्थ एक मामले में आरोपी है और उस पर सात साल पहले FIR दर्ज हुई थी. इसी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने चार्जशीट को रिकॉर्ड पर लेने से पहले आरोपी को हिरासत में लेने के लिए कहा था. सिद्धार्थ ने इसी आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रूख किया था और अग्रिम जमानत मांगी थी. कोर्ट ने पाया कि सिद्धार्थ लगातार जांच में सहयोग कर रहा है. इसी के बाद कोर्ट ने ये टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तार करने की पावर के अस्तित्व और इसके प्रयोग के औचित्य के बीच अंतर किया जाना चाहिए.