देश में जातिगत जनगणना (caste census) की मांग करने वाले कई दलों को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के फैसले से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि साल 2011 की जनगणना में सामने आए सामाजिक आर्थिक पिछड़ेपन (socio economic backwardness) के आंकड़े सार्वजनिक नहीं होंगे. अहम बात यह भी है कि कोर्ट ने केंद्र के जिस हलफनामे को स्वीकार किया है, उसमें 2022 में भी जातीय जनगणना न करने की बात कही गई है .
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दरअसल केन्द्र सरकार (central government) ने सर्वोच्च अदालत में बताया था कि साल 2011 में ओबीसी की संख्या जानने के लिए जातिगत जनगणना नहीं हुई थी. परिवारों का पिछड़ापन जानने के लिए सर्वे हुआ था. लेकिन वह आंकड़ा त्रुटिपूर्ण है. इस्तेमाल करने लायक नहीं है.
बता दें कि इस मसले पर महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. जिसमें उद्धव सरकार ने स्थानीय चुनाव में ओबीसी आरक्षण देने के लिए यह आंकड़ा सार्वजनिक करने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने राज्य सरकार की याचिका खारिज कर दी है.केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने कोर्ट में दाखिल लिखित जवाब में ये भी कहा था कि पिछड़ी जातियों की गणना कर पाना व्यावहारिक नहीं होगा.