Farm laws: किसान संगठनों के साथ कई दौर की बातचीत, संसद में बहस और नेताओं के आश्वासन के बावजूद बीजेपी नए कृषि कानूनों के लिए किसानों को राजी करने में नाकाम रही. करीब एक साल तक देशभर में किसानों के विरोध और आंदोलन के बीच आखिरकार शुक्रवार को प्रकाश पर्व के मौके पर मोदी सरकार (PM Modi) ने तीनों कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया. जिसके बाद से ही इस फैसले पर अलग अलग रिएक्शन आ रहे है. एक तरफ इसे विभिन्न राज्यों में चुनाव से पहले मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक बताया जा रहा है तो दूसरी तरफ विपक्ष पार्टियां इसे आगामी विधानसभा चुनावों में हार के अंदेशा के तहत मजबूरी में लिया गया फैसला बता रही हैं.
सरकार के मास्टर स्ट्रोक बताने के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इस फैसले से मोदी सरकार ने विपक्ष के हाथों से बड़ा मुद्दा छीन लिया है. तो दूसरी तरफ एक झटके में पीएम मोदी किसानों की नाराजगी दूर करनेवाले नेता बन गए. वहीं यूपी, उत्तराखंड और पंजाब चुनावों से पहले राज्य में बीजेपी के खिलाफ चल रही बयार को दूर करने की कोशिश की है. इसके अलावा इन कानूनों के कारण बीजेपी छोड़ गए सहयोगी दल की वापसी के दरवाजे खोल दिए गए.
वहीं विपक्षी दल इस फैसले को सरकार की मजबूरी बता रहे हैं. इनका कहना है कि अचानक लिये गए इस फैसले के पीछे सबसे बड़ी मजबूरी यूपी का चुनाव है, जहां किसान बेहद नाराज दिख रहे हैं और हाल ही में लखीमपुर खीरी की घटना ने इनकी नाराजगी बढ़ाने के साथ आम लोगों के बीच भी पार्टी की छवि धूमिल हुई. तो पंजाब में भी आगामी चुनाव में बीजेपी को अपनी साख बचाने के लिए इन कानूनों को खत्म करना पड़ा. उधर हरियाणा में नाराज किसानों ने कई जगहों पर बीजेपी नेताओं का कार्यक्रम ही नहीं होने दिया. जिन्हें इस फैसले से मनाने की कोशिश की गई.