रूस ने यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में बने सैन्य डिपो पर 18 मार्च 2022 को हमला करने के लिए हाइपरसोनिक मिसाइल का इस्तेमाल किया. यह बहुत डराने करने वाला लग सकता है, लेकिन रूसी जिस तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, वह बहुत एडवांस नहीं है. हालांकि, रूस, चीन और अमेरिका अगली जेनरेशन की जो हाइपरसोनिक मिसाइलें डेवलप कर रहे हैं, वे नेशनल और ग्लोबल सिक्योरिटी के लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकती हैं.
व्हीकल को हाइपरसोनिक के तौर पर डिस्क्राइब करने का मतलब है कि यह साउंड से भी तेज स्पीड से उड़ान भर सकता है, जो समुद्र तल पर 1,225 किलोमीटर प्रति घंटा और 35 हजार फीट की ऊंचाई पर 1,067 किलोमीटर प्रति घंटा है, जिस पर यात्री विमान उड़ान भरते हैं. यात्री जेट विमान 966 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से उड़ान भरते हैं, जबकि हाइपरसोनिक सिस्टम 5,633 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से दूरी तय करती है.
हाइपरसोनिक सिस्टम का दशकों से इस्तेमाल किया जा रहा है. साल 1962 में जब अमेरिकी क्रू धरती का चक्कर लगाकर लौटा था, तब उसका विमान वायुमंडल में हाइपरसोनिक स्पीड से दाखिल हुआ था. परमाणु अस्त्रों से लैस दुनिया की सभी अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें (आईसीबीएम) हाइपरसोनिक हैं, जो 24,140 किलोमीटर प्रति घंटे या 6.4 किलोमीटर प्रति सेकेंड की अधिकतम गति से टारगेट को हिट कर सकती हैं.
आईसीबीएम को एक बड़े रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाता है? ऐसी मिसाइलें पहले से तय रास्ते पर उड़ान भरती हैं. पहले वे वायुमंडल से बाहर अंतरिक्ष में जाती हैं और फिर दोबारा वायुमंडल में दाखिल होती हैं.
नई जनरेशन की हाइपरसोनिक मिसाइलें तेज रफ्तार से उड़ान भरती हैं, लेकिन आईसीबीएम जितनी तेज नहीं. इन्हें छोटे रॉकेट से प्रक्षेपित किया जाता है और ये वायुमंडल की ऊपरी परत में ही रहती हैं.
तीन तरह की गैर-आईसीबीएम हाइपरसोनिक मिसाइलें होती हैं, जिनमें एयरो बैलिस्टिक, ग्लाइड व्हीकल और क्रूज मिसाइल शामिल हैं. हाइपरसोनिक एयरो बैलिस्टिक सिस्टम को विमान से गिराया जाता है, जो रॉकेट का इस्तेमाल कर हाइपरसोनिक स्पीड हासिल करती हैं और फिर अपने बैलिस्टिक क्वालिटीज को कॉपी करती है, जिसका मतलब है कि बिना ऊर्जा के रास्ता तय करती है. यूक्रेन के किंझाल में हमले के लिए रूसी बलों ने जिस सिस्टम का इस्तेमाल किया था, वह एयरो बैलिस्टिक मिसाइल थी. इस तकनीक का इस्तेमाल साल 1980 से हो रहा है.
वहीं, हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल को रॉकेट के जरिये ऊंचे स्थान से छोड़ा जाता है और इसके बाद यह सरकते हुए टारगेट की तरफ बढ़ता है और पूरे रास्ते में करतब दिखाता जाता है. हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के उदाहरणों में चीन का डोंगफेंग-17, रूस का एवानगार्ड और अमेरिकी नौसेना का कंन्वेंशनल प्रॉम्प्ट स्ट्राइक सिस्टम शामिल है. अमेरिकी अधिकारियों ने चिंता जताई है कि चीन की हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल तकनीक अमेरिकी सिस्टम से भी ज्यादा अडवांस है.
इसी तरह, हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल को रॉकेट से हाइपरसोनिक स्पीड दी जाती है और इसके बाद इस स्पीड को बनाए रखने के लिए एयर ब्रीदिंग इंजन का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे स्क्रैमजेट कहा जाता है.
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों के प्रक्षेपण के लिए हाइपरसोनिक ग्लाइड व्हीकल के मुकाबले छोटे रॉकेट की जरूरत पड़ती है, जिसका अर्थ है कि इन्हें कहीं से भी प्रक्षेपित किया जा सकता है और प्रक्षेपण का खर्च भी काफी कम आता है.
हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलें चीन और अमेरिका में विकास के क्रम में हैं. खबर है कि अमेरिका ने मार्च 2020 में स्क्रैमजेट हाइपरसोनिक मिसाइल का परीक्षण किया था.
देशों द्वारा अगली पीढ़ी के हाइपरसोनिक हथियार बनाने की अहम वजह यह है कि इनकी स्पीड, चंचलता और उड़ान के तरीके की वजह से इनसे बचना मुश्किल है.
अमेरिका ने हाइपरसोनिक हथियारों से बचाव की तकनीक का चरणबद्ध विकास शुरू किया है, जिसमें अंतरिक्ष में सेंसर की सीरीज और अहम साझेदारों से करीबी सहयोग स्थापित करना शामिल है. हालांकि, यह तरीका बहुत खर्चीला हो सकता है और इसे लागू करने में वर्षों लग सकते हैं.
पारंपरिक और गैर-पारंपरिक हथियारों से लैस हाइपरसोनिक मिसाइलें ज्यादा महत्वपूर्ण लक्ष्यों को निशाना बनाने में कारगर हैं, मसलन विमानवाहक पोत. इस तरह के लक्ष्यों को भेद पाने की सूरत में संघर्ष के नतीजों पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ेगा. हालांकि, हाइपरसोनिक मिसाइलें मंहगी होती हैं और बड़े पैमाने पर इनके उत्पादन की संभावना नहीं है.
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