Today in History June 20, Black Hole Tragedy : कलकत्ता शहर ( Calcutta City ) 1690 में बना... ये वह दौर था जब इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी ( English East India Company ) को बने लगभग एक सदी गुजरने को थी... इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के एजेंट जॉब चार्नोक ( British Agent Job Charnock ) हुगली के मुहाने पर बने गांव सुतानाती पहुंचते हैं... यहां वह अपना तंबू गाड़कर एक ऐसे शहर की नींव करते हैं जिसे बनाने के लिए आने वाली कई सदियों तक ब्रिटिश साम्राज्य ( British Empire in India ) को याद किया जाने वाला था... लेकिन जिन्होंने इसे गढ़ा उन्हें इसी शहर में 66 साल बाद शिकस्त मिलती है...
अंग्रेजी सेना के 146 सैनिक गिरफ्तार किए जाते हैं और उन्हें रातभर के लिए ऐसी कालकोठरी में ठूंस दिया जाता है, जहां तड़प तड़पकर इसमें से 123 अपनी जान गंवा देते हैं. भविष्य इस घटना को ब्लैक होल ट्रेजडी ( Black Hole Tragedy ) के नाम से जानता है... आज झरोखा में हम इतिहास के इसी दर्द भरे पन्ने को पलटेंगे जब एक नवाब के कहर से अंग्रेजी सेना कांप उठी थी...
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1756 में नए नवेले नवाब सिराज उद दौला ( Siraj ud-Daulah ) ताज पहनता है... नवाब अपनी छोटी सी सल्तनत को गहराई से समझने के दौर से गुजरता है. उसे लगता है कि दक्षिण की ओर, ब्रिटिशर्स अपनी हैसियत से ज्यादा होशियारी दिखा रहे हैं. उसकी कोशिश ब्रिटिशर्स की कमाई को पाने की थी.. नवाब को डच और फ्रेंच के अफसरों ने बताया गया था कि गोरों ने उसकी सल्तनत से कमाई कर करके तिजोरियां को भर लिया है...
नवाब ने कलकत्ता पर चढ़ाई कर दी. ये तारीख 16 जून 1756 की थी. इस दिन जंग थोड़ी हल्की रही लेकिन अंग्रेजी सेना पर बड़ा हमला 18 जून को किया गया. सिर पर हार का खतरा मंडराता देखकर फोर्ट विलियम का प्रेजिडेंट रोजर ड्रेक ( Fort William President Roger Drake ) हुगली में खड़े अपने जहाज पर सवार होकर परिवार, बच्चों और कई दूसरे अफसरों के साथ भाग जाते हैं. कंपनी की सेना उतना भी मुकाबला नहीं कर पाई, जिसकी उम्मीद नवाब ने की थी. सिराज उद दौला की सेना 146 सैनिक और अफसरों को बंधक बना लेती है.
20 जून 1756 को सिराज उद दौला की सेना जीत के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के किले में दाखिल होती है. कंपनी का सिराज उद दौला के सामने ये दूसरा सरेंडर था. इससे एक महीने पहले ही कासिमबाजार में पहला सरेंडर ( Surrender of Kossimbazar ) सेना कर चुकी थी...
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अंग्रेजों के 146 सैनिकों को बाद में सिराज उद दौला के दरबार में पेश किया गया. सैनिकों ने नवाब से अपनी जान बख्श देने की मिन्नतें की. नवाब ने भी उन्हें पूरा सम्मान दिया...
अर्ली रिकॉर्ड्स ऑफ ब्रिटिश इंडिया ( Early Records of British India ) के वॉल्यूम 1 के पेज 160 पर ब्रिटिश इतिहासकार जेम्स मिल ( Historian James Mill ) के हवाले से लिखा गया है जब मिस्टर हॉलवेल ( कंपनी के कलकत्ता हाउस के प्रमुख ) को नवाब के सामने पेश किया गया, तब नवाब ने तुरंत ही हथकड़ियों को हटाने और उन्हें पूरा सम्मान देने का आदेश दिया.
हालांकि कुछ ही घंटों में नवाब के सैनिकों का हॉलवेल और दूसरे कैदियों के प्रति नजरिया बदल गया. दरअसल, एक अंग्रेज सिपाही ने नशे में धुत होकर पिस्तौल नवाब के एक सिपाही पर चला दी थी जिससे उसकी मौत हो गई थी.
शिकायत नवाब तक कैसे न पहुंचती... बादशाह ने बदसलूकी करने वाले सैनिक के बारे में पता किया, पता चला कि वह अकूबतखाने में है... अधिकारियों ने सलाह दी कि रातभर इतने कैदियों को खुला छोड़ना खतरनाक होगा... सिराज उद दौला ने ऐसा ही किया... नवाब का आदेश पाकर सिपाहियों ने अंग्रेज़ अफसरों की रैंक की परवाह किए बग़ैर कुल 146 अंग्रेज सैनिकों को 18 फीट लंबी और 14 फीट चौड़ी कालकोठरी में डाल दिया. जो कालकोठरी सिर्फ 4 लोगों के लिए थी उसमें 146 अंग्रेज सैनिक जिसमें महिलाएं भी थी... रात भर भूख और प्यास से तड़पते रहे... इसमें हवा के लिए सिर्फ दो छोटी खिड़कियां थीं... 21 जून की सुबह 6 बजे जब ये कालकोठरी खोली गई तब तक 123 सैनिक अपनी जान गंवा चुके थे और बाकी बचे 23 अधमरे हो चुके थे...
इस घटना के कुछ घंटों बाद सिराज उद दौला ने कलकत्ता का नाम अलीनगर ( Renamed Calcutta as Alinagar ) कर दिया और हिंदू दीवान राजा मणिक चंद ( Diwan Manik Chand ) को यहां का गवर्नर बना दिया... 24 जून को वह कलकत्ता से मुर्शीदाबाद के लिए चला... हुगली में उसने दरबार लगाया जिसमें फ्रेंच और डच प्रतिनिधि भी पहुंचे. अंग्रजों के खिलाफ नवाब का साथ देने और ईमानदारी के ऐवज में इन्हें साढ़े 3 लाख और 4 लाख रुपये की धनराशि दी गई. सिराज ने उन्हें कलकत्ता में व्यापार करने की खुली छूट दी.
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11 जुलाई को सिराज उद दौला मुर्शिदाबाद पहुंचा. 3 महीने बाद 16 अक्टूबर को उसने पूर्णिया के नवाब शौकत जंग के विद्रोह को कुचल दिया और हिंदू राजा युगल सिंह को पूर्णिया की गद्दी सौंपी. इसी वक्त 123 सैनिकों की मौत की खबर भी लंदन पहुंच चुकी थी... रॉबर्ट क्लाइव ने सात अक्टूबर 1756 को विलियम मोबाट को पत्र लिखा जिसमें इस घटना का जिक्र हुआ था...
ये सब हुआ लेकिन सच ये भी है कि अगले 100 साल तक इस नरसंहार का जिक्र कंपनी के किसी भी रिकॉर्ड में नहीं किया गया... सिराज उद दौला के हमले में मारे गए जिन 56 लोगों का जिक्र एक लिस्ट में किया गया उसमें से किसी की भी मौत की वजह दम घुटना नहीं बताया गया था. राबर्ट क्लाइव और वॉट्सन ने भी दिसंबर 1756 में सिराज को लिखे गए पत्र में इसका कहीं जिक्र नहीं किया... 1 अक्टूबर 1765 को क्लाइव ने कोट किया- इस घटना में कोई सत्य नहीं है. कुछ ऐसे लोग जिनके बारे में माना जाता है कि वे आदेश के बाद मौत का शिकार हुए, वे आज भी जिंदा हैं... सिर्फ दो को छोड़कर... कई इतिहासकार भी 123 सैनिकों के मारे जाने के दावे पर सवाल उठाते हैं. इसमें एक प्रमुख नाम जादुनाथ सरकार का है.
इन सभी घटनाओं के बीच 14 दिसंबर 1756 को अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी कलकत्ता पहुंची. 2 जनवरी 1757 को बगैर किसी मारकाट के कलकत्ता पर फिर से अंग्रेजों ने अधिकार जमा लिया.. इसके बाद 1757 में अलीनगर की संधि होती है. इस संधि को वही नाम मिला जो नाम कलकत्ता को सिराज उद दौला ने दिया था. संधि को अंग्रेजों ने तोड़ दिया और फिर हुआ प्लासी का युद्ध. 23 जून 1757 को वही नवाब जिसने एक साल पहले अंग्रेजों को शिकस्त दी थी, अब एक साल बाद मोहन लाल और मीर जाफर ( Mir Jafar ) के विश्वासघात की वजह से करारी शिकस्त झेलता है. मीर जाफर का बेटा उसकी बर्बर हत्या कर देता है..
इस जंग में अंग्रेजों की जीत सिर्फ जीत नहीं थी, बल्कि आने वाले 180 सालों तक इसी जीत ने हिंदुस्तान में उनकी हुकूमत की पटकथा भी लिख डाली थी...
चलते चलते एक नजर इतिहास में आज ही के दिन हुई दूसरी घटनाओं पर भी डाल लेते हैं
712, मुहम्मद बिन क़ासिम ( Muhammad ibn Qasim ) ने सिंध पर हमला किया, जंग जीती और उस पर कब्जा कर लिया. कासिम ने इस जंग में हिंदू राजा, दाहिर ( Sindh Ruler Raja Dahir ) को शिकस्त दी और उन्हें मार डाला.
1990, ईरान में भूकंप ( Earthquake in Iran ) से 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौत.
1991, एक हो चुके जर्मनी की राजधानी फिर से बर्लिन को बनाने के प्रस्ताव को संसद ने मंजूरी दी.
2001, जनरल परवेज मुशर्रफ़ ( Pervez Musharraf ) पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने.
1869, लक्ष्मणराव किर्लोस्कर ( Laxmanrao Kirloskar ) का जन्म आज ही के दिन हुआ था. उन्होंने ही किर्लोस्कर ग्रुप की नींव रखी थी.