बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की औरंगाबाद पीठ (Aurangabad) ने एक महिला की ओर से घरेलू हिंसा के मामले में दर्ज कराए गये केस की सुनवाई के दौरान एक बड़ी टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि यदि एक विवाहित महिला से कहा जाता है कि वह परिवार के लिए घरेलू काम करे, तो इसकी तुलना घरेलू नौकरानी के काम से नहीं की जा सकती है और इसे क्रूरता नहीं माना जाएगा. गौरतलब है कि महिला ने अलग रह रहे पति और उसके माता-पिता पर घरेलू हिंसा और क्रूरता के तहत मामला दर्ज कराया था जिसे हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया.
जस्टिस विभा कांकनवाड़ी और जस्टिस राजेश पाटिल की खंडपीठ ने 21 अक्टूबर को उस व्यक्ति और उसके माता-पिता के खिलाफ दर्ज की गई FIR को रद्द कर दिया. जिसमें महिला ने अपनी शिकायत में आरोप लगाया था कि विवाह के बाद एक महीने तक ही उसके साथ अच्छा व्यवहार किया गया, लेकिन इसके बाद उससे घरेलू सहायिका की तरह व्यवहार किया जाने लगा. उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति और सास-ससुर ने शादी के एक महीने बाद चार पहिया वाहन खरीदने के लिए चार लाख रुपये मांगना शुरू कर दिया. उसने अपनी शिकायत में कहा कि इस मांग को लेकर उसके पति ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया.
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हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि महिला ने केवल इतना कहा है कि उसे प्रताड़ित किया गया, लेकिन उसने इस तरह के किसी विशेष कृत्य का अपनी शिकायत में जिक्र नहीं किया. अदालत ने कहा कि अगर विवाहित महिला से परिवार के लिए घर का काम करने को कहा जाता है तो इसकी तुलना घरेलू नौकरानी के काम से नहीं की जा सकती. अदालत के अनुसार, अगर महिला की दिलचस्पी घर का काम करने में नहीं है तो उसे यह बात विवाह से पहले स्पष्ट कर देना चाहिए ताकि पति और पत्नी बनने से पहले विवाह पर पुन:विचार किया जा सके.
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