भगवान सूर्य की उपासना का महापर्व छठ की शुरुआत 28 अक्टूबर से हुई है. चार दिनों तक चलनेवाले आस्था के इस महापर्व का आज तीसरा दिन है. व्रती आज जल में खड़े होकर भगवान भाष्कर की उपासना करती हैं. छठ पूजा के लिए बांस की बनी टोकरी, सूप आदि का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें फल- फूल आदि सजाए जाते हैं. सूप में नारियल समेत दूसरे फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू आदि को रखा जाता है.
आम तौर पर एक सूप में पांच फल रखे जाते हैं और इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ नदी, पोखर, तालाब या कहीं भी जल के किनारे ले जाकर सूर्य के डूबने का इंतजार किया जाता है और इसके बाद अस्ताचल सूर्य की उपासना की जाती है.
छठ पर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के नाम से भी जाना जाता है. ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है.. चैत्र और कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाने की वजह से इसे छठ कहा जाता है. सूर्यास्त के पहले लोग स्वजनों के साथ पहुंच जाते हैं और भगवान भाष्कर के डूबने के वक्त का इंतजार करते हैं इसके बाद उनकी पूजा अर्चना की जाती है. ये ऐसा पर्व है जिसमें व्रती निर्जला रहकर ही भगवान की उपासना करती है.