EWS Reservation: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आर्थिक रूप से कमजोर सामान्य वर्ग के लोगों को मिल रहे 10% आरक्षण को बरकरार रखा है, और इसी के साथ केंद्र सरकारी की बड़ी जीत मानी जा रही है. सोमवार को चीफ जस्टिस यूयू ललित के नेतृत्व में 5 जजों की संवैधानिक बेंच ने 3-2 से इस कोटे के पक्ष में फैसला सुनाया. यानी, 3 जजों ने इकोनॉमिकली वीकर सेक्शंस (EWS) रिजर्वेशन पर सरकार के फैसले को संवैधानिक ढांचे का उल्लंघन नहीं माना...मतलब, संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 को सही माना है. जबकि दो जजों ने उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में मिलने वाले EWS कोटे को गलत करार दिया और संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया.
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दरअसल, 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए सरकार ने संविधान में 103वां संशोधन कर सामान्य वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया था. जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 40 से ज्यादा याचिकाएं दायर हुई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था और सोमवार को पांच जजों की बेंच ने इसके हक में फैसला दिया.
पांच जजों की बेंच में CJI यूयू ललित, जस्टिस बेला त्रिवेदी, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस पारदीवाला और जस्टिस रवींद्र भट शामिल हुए. जिसमें से CJI यूयू ललित और जस्टिस भट्ट EWS के खिलाफ रहे, जबकि जस्टिस माहेश्वरी, जस्टिस त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में फैसला सुनाया. आइए जानते हैं कि पांचों जजों ने इस पर फैसला सुनाते हुए क्या कहा.
EWS के पक्ष में 3 जजों के फैसले
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी
EWS के पक्ष में फैसला सुनाते हुए जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने कहा कि 50% आरक्षण की सीमा अपरिवर्तनशील नहीं है. और 50% तय सीमा के आधार पर भी EWS आरक्षण संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है, और ना ही समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है.
जस्टिस बेला त्रिवेदी
जस्टिस बेला त्रिवेदी ने भी कहा कि EWS आरक्षण को आर्थिक रूप से कमजोर तबके को मदद पहुंचाने के तौर पर ही देखना जाना चाहिए. इसे गलत नहीं कहा जा सकता है. ये किसी तरह पक्षपात या मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं है.
जस्टिस पारदीवाला
वहीं, जस्टिस पारदीवाला ने भी EWS आरक्षण को सही करार दिया लेकिन साथ ही नसीहत भी दे दी. उन्होंने कहा कि आरक्षण अनंतकाल तक जारी नहीं रह सकता है. वरना यह निजी स्वार्थ में तब्दील हो जाएगा. आरक्षण किसी भी मसले का आखिरी समाधान नहीं हो सकता. यह किसी भी समस्या की समाप्ति की एक शुरुआत भर है. जो सामाजिक और आर्थिक असमानता खत्म करने के लिए है.
उधर, CJI यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट्ट ने EWS आरक्षण पर असहमति जताई और इसके विरोध में टिप्पणी की.
जस्टिस रवींद्र भट्ट
जस्टिस रवींद्र भट्ट ने कहा कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आरक्षण देना अवैध नहीं है, लेकिन इससे SC-ST और OBC को बाहर किया जाना असंवैधानिक है. ऐसे में EWS आरक्षण केवल भेदभाव और पक्षपातपूर्ण है. ये समानता की भावना को खत्म करता है. ऐसे में मैं EWS आरक्षण को गलत ठहराता हूं. उन्होंने कहा कि आर्थिक रूप से पिछड़ों की सबसे ज्यादा संख्या ओबीसी और एससी-एसटी समुदाय के लोगों में ही हैं. ऐसे में इन्हें अलग रख कर अलग से आरक्षण दिए जाने की क्या जरूरत है.
CJI यूयू ललित
चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा कि वो रवींद्र भट के विचारों से पूरी तरह से सहमत हूं और EWS आरक्षण से SC-ST और OBC को बाहर किए जाने को गलत मानते हैं.
केंद्र की दलील
वहीं केंद्र का कहना है कि आरक्षण के 50% बैरियर को सरकार ने नहीं तोड़ा है. यह आरक्षण 50% में आने वाले सामान्य वर्ग के लोगों के लिए ही है. यह बाकी के 50% वाले ब्लॉक को डिस्टर्ब नहीं करता है.