History of Madras: मद्रास वाया वाइट टाउन टू Chennai, जानें कैसे बना भारत का चौथा महानगर | Jharokha 22 Aug

Updated : Aug 27, 2022 13:30
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Mukesh Kumar Tiwari

History of Chennai : चेन्नई (Chennai) का पुराना नाम मद्रास (Madras) है. दक्षिण भारत में मद्रास एक तटीय शहर था. यह शहर बंगाल की खाड़ी के कोरोमंडल तट (Coromandel Coast) पर स्थित था. जिस शहर को हम आज जानते हैं, उसके बनने की शुरुआl फोर्ट सेंट जॉर्ज (Fort St. George) में एक अंग्रेजी बस्ती (English settlement) के रूप में हुई थी. यहां पर तब विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagara Empire) का शासन था और उन्होंने नायक सरदारों (Nayaka Sardar) को यहां नियुक्त किया था.  आज इस लेख में हम मद्रास/चेन्नई का इतिहास (Chennai or Madras History) जानेंगे और समझेंगे कि कब और कैसे अंग्रेजों का या ईस्ट इंडिया कंपनी (Britishers or East India Company) का इस जमीन पर आगमन हुआ...

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नेल्लोर की पेन्ना नदी (Penna River, Nellore) और कुड्डालोर की पोन्नेयर नदी (Ponnaiyar River, Cuddalore) के बीच एक बंजर जमीन का टुकड़ा सदियों पहले सुदूर यूरोप से आई एक कंपनी को दिया गया था... इस कंपनी ने यहां एक किला बनाया और इस किले में बनाई अपनी रिहाइश... एक किले से आबाद हुई जमीन आज भारत के 4 महानगरों में गिनी जाती है... जिसका नाम है चेन्नई (Chennai)... आज की तारीख यानी 22 अगस्त का संबंध मद्रास के बनने (Madras State History) से है. मद्रास चेन्नई का पुराना नाम है... 22 अगस्त 1639 को इस शहर की नींव रखी गई थी. देश दुनिया के ऐतिहासिक शो झरोखा में आज हम जानेंगे दक्षिण भारत के ऐतिहासिक शहर मद्रास के बनने की कहानी...

22 अगस्त 1639 को मद्रास की स्थापना

22 अगस्त 1639 को ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने मद्रास (अब के चेन्नई) की स्थापना की थी. ईस्ट इंडिया कंपनी ने स्थानीय नायक शासकों से जमीन का वो टुकड़ा खरीदा था जिसपर मद्रास बनाया गया. प्राचीनकाल में, चेन्नई शहर को मद्रासपट्टनम (Madrasapattinam) के नाम से जाना जाता था. इस क्षेत्र में चोलों (Chola dynasty), पल्लवों (Pallava dynasty), पांडिया (Pandya dynasty) और विजयनगर साम्राज्य (Vijayanagara Empire) के शासन का इतिहास रहा है.

पुर्तगालियों, डचों के बाद आए थे ब्रिटिश

1522 में इस क्षेत्र में सबसे पहले बाहर से पुर्तगाली (Portuguese) आए. इन्होंने सेंट थॉमस (Saint Thomas Harbor) के बाद यहां साओ टोम (São Tomé harbour) नाम के बंदरगाह को बनाया. 1612 में पुर्तगालियों के बाद डच (Dutch) आए जिन्होंने चेन्नई के उत्तर में पुलिकट में अपना बेस बनाया. डचों के बाद, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) आई, जिसने स्थानीय नायक शासकों से कोरोमंडल तट (Coromandel Beach) के साथ-साथ भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा खरीदा और उस क्षेत्र में एक किला, एक कारखाना और एक गोदाम बनाने की अनुमति भी हासिल की.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने बनाया फोर्ट सेंट जॉर्ज

मद्रास की नींव (Foundation of Madras) पड़ी थी 1639 में... तब ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारी फ्रांसिस डे ने तीन वर्ग किलोमीटर जमीन का टुकड़े लेने के लिए स्थानीय नायक शासकों (Nayak Rulers in Madras) से संधि की थी. चेन्नई शहर का जो स्वरूप आज दिखाई देता है, वह पूरी तरह से एक ब्रिटिश सैटलमेंट ही रहा है. जिसे फोर्ट सेंट जॉर्ज (Fort St. George, India) के नाम से जाना जाता था. क्षेत्र पर शासन करने वाले विजयनगर साम्राज्य के शासकों ने प्रांत के विभिन्न क्षेत्रों पर शासन करने के लिए नायक नाम के सरदारों को नियुक्त किया था.

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जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी एक कारखाना स्थापित करने के लिए इस क्षेत्र में पहुंची, तो उसकी मुलाकात तेलुगु राजा और शक्तिशाली सरदार, दरमाला वेंकटाद्री नायक (Darmala Venkatadri Nayaka) से हुई. वह इस क्षेत्र का प्रभारी था.. दारमाला ने अंग्रेजों को भूमि का एक टुकड़ा दिया. नायक सरदारों द्वारा अंग्रेजों को जो जमीन दी गई वह एक बंजर जमीन थी. यहीं अंग्रेजों ने फोर्ट सेंट जॉर्ज बनाया जो ब्रिटिश फैक्ट्री वर्कर, मर्चेंट्स और ब्रिटिश नागरिकों का सेटलमेंट था.

ब्रिटिश सेटलमेंट वाइट टाउन कहा जाने लगा

अंग्रेजों की इस छोटी सी बस्ती ने धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया के दूसरे व्यापारियों जैसे पुर्तगाली और डच का ध्यान खींचा और धीरे धीरे वे भी इस सेटलमेंट में शामिल हो गए. 1649 तक, फोर्ट सेंट जॉर्ज में 19,000 निवासी हो चुके थे, जिसकी वजह से ईस्ट इंडिया कंपनी ने एक और दीवार का निर्माण किया. नायकों के साथ हुई संधि के मुताबिक, ब्रिटिश और दूसरे यूरोपीय ईसाइयों को अपने घरों की बाहरी इमारत को सिर्फ सफेद रंग में रंगने की अनुमति थी. इस वजह से धीरे-धीरे इस क्षेत्र को "वाइट टाउन" (White Town in Madras) के नाम से जाना जाने लगा.

नायकों के साथ उनके समझौते के अनुसार, फोर्ट सेंट जॉर्ज में सिर्फ यूरोपीय लोगों को रहने की अनुमति थी. गैर-भारतीयों को क्षेत्र के बाहर संपत्ति खरीदने की अनुमति नहीं थी. दूसरी ओर, दूसरे यूरोपीय जैसे पुर्तगाली और अन्य कैथोलिक व्यापारियों का नायक के साथ एक अलग समझौता था, जिसके जरिए वे कारोबारी पोस्ट और गोदाम स्थापित कर सकते थे.

भारतीय समुदायों से हुई अंग्रेजों की झड़पें

दरअसल, क्षेत्र में व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा नियंत्रित किया गया था, इन गैर-ब्रिटिश व्यापारियों ने वाइट टाउन के पास ईस्ट इंडिया कंपनी की भूमि पर बसने के लिए अंग्रेजों के साथ एक दूसरे समझौते पर हस्ताक्षर किए. धीरे-धीरे, भारतीय भी इस क्षेत्र में पहुंचे लेकिन जल्द ही यूरोपीय लोगों की संख्या बढ़ गई. यूरोपीय लोगों के खिलाफ हिंदुओं, मुसलमानों और दूसरे भारतीय समुदायों के बीच हिंसक झड़पें हुईं.

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धीरे-धीरे, हिंदू और मुस्लिमों को वाइट टाउन के पास बस्ती बनाने की जगह दी गई और इस नई गैर-यूरोपीय बस्ती को वाइट टाउन से अलग करने के लिए एक दीवार का निर्माण किया गया. इस नए क्षेत्र को "ब्लैक टाउन" के रूप में जाना गया. मूल रूप से, वाइट टाउन और ब्लैक टाउन को एक साथ मिलाकर मद्रास के नाम से जाना गया, ये नाम अंग्रेजों ने ही दिया.

मद्रास शहर के लिए पहली पसंद इसलिए था क्योंकि यहां पहले से किसी तरह का पोर्ट नहीं था... कोई भी अगर यहां आता था तो उसके लिए छोटी छोटी नावों की मदद ली जाती थी.  कुछ सूत्र ये भी बताते हैं कि फ्रांसिस डे का दिल एक तमिल लड़की पर आया हुआ था... इसलिए उसने ईस्ट इंडिया कंपनी को सेटल करने के लिए इस जमीन को चुना, ताकि वह उसके पास रह सके और लगातार दोनों की मुलाकातें होती रहें.

लगभग चार शताब्दियों के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी (EIC) की साइट और आसपास के गांवों वाला ये शहर भारत के 4 महानगरों में से एक बन चुका है. आज, आप चेन्नई पर यूरोपियन प्रभाव साफ देख सकते हैं. शहर की प्रमुख इमारतों पर इसका असर साफ दिखाई देता है.

चेन्नई में इस औपनिवेशिक प्रभाव का सबसे साफ संकेत फोर्ट सेंट जॉर्ज है. यह किला ब्रिटिश काल का है. 1644 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा बनाया गया, फोर्ट सेंट जॉर्ज दक्षिण भारत में ब्रिटिश मौजूदगी का प्रशासनिक और सैन्य केंद्र था.

ईस्ट इंडिया कंपनी का मिशनरियों से भी रहा विवाद

ईस्ट इंडिया कंपनी का मिशनरियों (Christian Missionaries) से विवादों भरा रिश्ता था. इस दौर में मिशनरियों को भारत में प्रवेश की इजाजत नहीं मिली थी क्योंकि ईस्ट इंडिया कंपनी को डर था कि अगर मिशनरियों ने स्थानीय धर्मों और परंपराओं में हस्तक्षेप किया तो यह व्यापारिक रिश्ते में अड़चन पैदा कर सकता था. 1813 में जब कर्ज में डूबी ईस्ट इंडिया कंपनी को लोन की जरूरत पड़ी, तब ब्रिटिश सम्राट ने जोर दिया कि आर्थिक मदद के बदले कंपनी को मिशनरियों को भारत में खुले तौर पर धर्मांतरण की अनुमति देनी होगी. मद्रास यानी चेन्नई में इसकी स्पष्ट विरासत दिखाई देती है, शहर भर में कई पुराने चर्च आज भी दिखाई देते हैं.

सबसे पुराने चर्चों में से एक अर्मेनियाई चर्च (Armenian Church in Madras) है जिसकी स्थापना 1712 में आर्मेनिया के कारोबारियों ने की थी. एग्मोर स्टेशन के पास एक जानी पहचानी हवेली है- सेंट एंड्रयूज चर्च. इसे मद्रास कॉलोनियन आर्मी में कई स्कॉट्समैन के लिए बनाया गया था.

भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद की वकालत करने वाले अक्सर यह तर्क देते हैं कि अंग्रेजी शासन और उच्च हिंदू वर्ग एक बात पर सहमत था और वो था महिलाओं को समाज में आगे ले जाना... दोनों ने साथ मिलकर देशभर में इसके लिए कार्य भी किए.

मद्रास में कई कॉलेज भी खोले गए

महिलाओं को आगे ले जाने का सबसे बेहतर तरीका शिक्षा थी...  मद्रास का क्वीन मैरी कॉलेज (Queen Mary's College, Madras) 1914 में भारत में खोले गए पहले तीन महिला कॉलेजों में से एक था...

जब पुरुषों के कॉलेजों में छात्र मैथ्स, हिस्ट्री, साइंस की पढ़ाई कर रहे थे... QMC में महिलाओं को बेहतर गृहिणी और मां बनाने के मकसद से पढ़ाया जाता था. गृह अर्थशास्त्र जैसे विषयों की यहां पढ़ाई होती थी. क्यूएमसी में पढ़ाई के बाद महिलाएं प्रोफेश्नल कॉलेजों का रुख करती थीं. ये कॉलेज आमतौर पर लेडी विलिंगडन कॉलेज ऑफ एजुकेशन - Lady Willingdon College of Education (1922 में स्थापित) और मद्रास मेडिकल कॉलेज - Madras Medical College (1875 में महिलाओं के लिए खोला गया) थे.

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हालांकि प्रेसीडेंसी कॉलेज मद्रास में स्थापित पहला शिक्षा संस्थान था, वहीं, मद्रास विश्वविद्यालय, प्रेसीडेंसी (भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का एक प्रशासनिक प्रभाग) में उच्च शिक्षा का पहला संस्थान था. 

रेल नेटवर्क पर भी ब्रिटिश सरकार ने खासा काम किया

भारत में मद्रास में औपनिवेशिक शासन ने रेलवे लाइनों पर भी खासा काम किया. रेल नेटवर्क बनाने का मकसद कारोबार को बढ़ावा देना, माल ढुलाई करना और 1857 जैसे किसी दूसरे विद्रोह को दबाने के लिए सेनाओं की टुकड़ी किसी स्थान पर जल्द पहुंचाना था.

एक पुर्तगाली व्यापारी की संपत्ति पर बने, चेन्नई सेंट्रल रेलवे स्टेशन (Chennai Central Railway Station) का निर्माण 1873 में किया गया था. यह सबसे महत्वपूर्ण स्टेशनों में से एक बन गया था. इसे 1907 में मद्रास रेलवे कंपनी का मुख्यालय बनाया गया. चेन्नई सेंट्रल दक्षिणी रेलवे का हब है, लेकिन यह मद्रास का एकमात्र "सेंट्रल" रेलवे स्टेशन नहीं है. एग्मोर स्टेशन, एक ऐसा स्टेशन है जो दक्षिण की ओर जाने वाले सभी रेल ट्रैफिक को संभालता है. इसका काम 1908 में पूरा हुआ था. शुरुआत में अधिकारी इस स्टेशन का नाम रॉबर्ट क्लाइव (Robert Clive) के नाम पर रखना चाहते थे, जिन्हें इंग्लैंड में "क्लाइव ऑफ इंडिया" के रूप में जाना जाता है. लंबी बहस के बाद, इसे स्थानीय नाम एग्मोर के नाम से जाना गया.

टेलीग्राफ और पोस्टल सिस्टम को मजबूत किया

रेलवे के अलावा, ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए सबसे काम का साधन टेलीग्राफ और पोस्टल सिस्टम (Telegraph and Postal System) था. 1857 क्रांति के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों ने संचार व्यवस्था को गंभीरता से लिया. हालांकि, भारत में तब पोस्टल सिस्टम था लेकिन ब्रिटिश राज के अफसरों को घर पर चिट्ठियां लिखनी होती थीं, इसके बाद 19वीं सदी के आखिरी दौर में टेलिग्राफ सर्विस में तेजी से इजाफा किया गया. मद्रास में जनरल पोस्ट ऑफिस 1786 में स्थापित किया गया. यह किले के बाहर ही था. 1884 में, इसे नया ठिकाना मिला.

प्रथम विश्व युद्ध की लपटें मद्रास तक आ पहुंची थीं

1858 में राजशाही लागू होने के बाद, जब इंग्लैंड को युद्ध का सामना करना पड़ा, तो उसके उपनिवेशों ने भी उसका साथ दिया. भारतीय सैनिक दोनों विश्व युद्धों में मित्र देशों के युद्ध प्रयासों का अभिन्न हिस्सा बने. 22 सितंबर, 1914 को, जर्मन क्रूजर एम्डेन बंगाल की खाड़ी में पहुंचा और शहर पर गोलाबारी की. कुछ ही मिनटों में दो तेल टैंकरों में आग लग गई.

गोलीबारी तीस मिनट तक जारी रही, और शहर में कई दिन तक हड़कंप मचा रहा. हजारों लोग शहर छोड़ने के लिए दौड़ पड़े, और सड़कें और रेलवे पूरी तरह से जाम हो गए. जंग के बाद अंग्रेजी सरकार ने मद्रास में भी युद्ध स्मारक बनाया. हालांकि नई दिल्ली में इंडिया गेट जितना प्रभावशाली नहीं था. आज, युद्ध स्मारक चेन्नई की सबसे व्यस्त सड़कों में से एक है.

उत्तरी चेन्नई में "पुराने मद्रास" में अभी भी ब्रिटिश छाप साफ दिखाई देती है, वहीं, चेन्नई में औपनिवेशिक विरासत की छाप अब शहर के विस्तार होने से खत्म सी हो गई है.

17 जुलाई 1996 को मद्रास का नाम चेन्नई कर दिया गया

17 जुलाई 1996 को, राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि (M. Karunanidhi) ने शहर का नाम मद्रास से बदलकर चेन्नई (Madras renamed as Chennai) कर दिया गया, चेन्नई का नया नाम फोर्ट सेंट जॉर्ज के पास एक छोटे से शहर चेन्नई पट्टनम (Chennai Pattanam) से लिया गया था. अंग्रेजों द्वारा दिए गए नाम को छोड़ने और स्थानीय भाषा में शहर को नया नाम देने के लिए इस शहर को नया नाम दिया गया.

चलते चलते आज की दूसरी अहम घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं...

1894 - महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) ने दक्षिण अफ्रीका में नेटाल भारतीय कांग्रेस (Natal Indian Congress) की स्थापना की.

1910 - जापान ने 5 साल तक कोरिया का संरक्षण करने के बाद उस पर कब्जा किया.

1969 - अमेरिका में समुद्री तूफान आने से 255 लोगों की मौत.

1955 - मशहूर ऐक्टर और राजनीतिज्ञ चिरंजीवी (Chiranjeevi) का जन्म हुआ.

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