Hyderabad Vs Bhagyanagar: भाग्यनगर कैसे बन गया हैदराबाद? सुलतान का इश्क या हीरों का कारोबार, क्या है वजह!

Updated : Jul 07, 2022 22:25
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Editorji News Desk

भारत (India) में, जगहों का नाम बदले जाने का विवाद हमेशा सामने आते रहता है. इन्हीं विवादों की सूची में एक विवाद हैदराबाद का नाम 'भाग्यनगर' करने की मांग (Bhagyanagar Name Controversy) से भी जुड़ा हुआ है. ऐसा दावा किया जाता रहा है कि शहर का नाम हैदराबाद (Hyderabad City) रखे जाने से पहले इसका वास्तविक नाम 'हिंदू' ही था... 

तो भाग्यनगर Vs हैदराबाद विवाद का सच क्या है? इन सवालों के दो अहम सिरे हैं-

कहां से आया भाग्यलक्ष्मी का नाम?

पहला, ऐसा कहा जाता है कि 'भाग्यनगर' या 'भागनगर' को 'भागमती' नाम से लिया गया है. 'भागमती' के बारे में कहा जाता है कि वह एक खूबसूरत महिला थीं जिनकी शादी 'गोलकुंडा सल्तनत' के 5वें सुल्तान मुहम्मद कूली कुतुब शाह (1565-1612) से हुई थी. घुड़सवारी के दौरान नौजवान शहजादे कूली कुतुब शाह (Sultan Muhammad Quli Qutb Shah) ने जवान और खूबसूरत 'भागमती' को मूसी नदी के छोर पर 'चिचलम' गांव में देखा.

भागमती (Bhagmati) को देखते ही शहजादे कूली का दिल उसपर आ गया. वह भागमती से मिलने के लिए नदी को पार करने का इरादा पाल बैठा और मानसून में उफनाई नदी में लगभग डूब गया था. पिता को शहजादे का प्यार मंजूर नहीं था, इसलिए पिता सुल्तान इब्राहीम कुतुब शाह ने उसे गोलकोंडा किले में बंदी बना दिया... यहां पर कूली ने अपने प्यार के लिए कई नज्में भी लिखीं...

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पिता की मौत के बाद, कूली कुतुब शाह ने सुल्तान की गद्दी संभाली और तब उसने भागमती से निकाह किया... कहा जाता है कि तभी कूली ने एक नया शहर 'भागनगर' (भागमती के नाम पर) बसाया था... यह शहर उसी जगह बनाया गया जहां चीचलम गांव हुआ करता था... भागमती ने इस्लाम कबूल कर लिया और उसे हैदर बेगम का नाम दिया गया. इसका नतीजा ये हुआ कि शहर को उसका दूसरा नाम 'हैदराबाद' मिला.

भागमती का मकबरा क्यों नहीं?

हालांकि ये एक खूबसूरत और रोमांटिक कहानी है लेकिन इसे जुड़ा एक सच और भी है. सच ये है कि भागमती का सच बताने वाला कोई ऐतिहासिक दस्तावेज मौजूद नहीं है. उदाहरण के तौर पर अगर वो सुल्तान को बेहद पसंद थी, तो उसके सम्मान में कोई मकबरा जरूर होना चाहिए था... जो कि नहीं है. साथ ही, इसे साबित करने वाला कोई ऐतिहासिक साक्ष्य भी नहीं है.

रोमांटिक प्रेम कहानी से आगे, हैदराबाद शहर के बनने का सच कहीं ज्यादा प्रैक्टिकल नजर आता है. शहर के इतिहासकार सज्जाद शाहिद ने Live History को दिए इंटरव्यू में बताया था कि 14वीं सदी में कोलकुंडा किंग्डम ही दुनिया में हीरों का एकमात्र स्रोत था. ये हीरे कृष्णा नदी के तट पर पाए जाते थे.. गोलकुंडा (Golconda) के हीरे दुनिया भर के व्यापारियों को आकर्षित करते थे और इस वजह से ये जगह अंतरराष्ट्रीय व्यापार का केंद्र बन गई थी...

गोलकुंडा की संपत्ति की वजह से ही ये शहर भीड़भाड़ से भरा भी बन गया था.. ऐसा 16वीं सदी के मध्य तक हो चुका था. ज्यादा भीड़ और सेनिटेशन की कमी की वजह से शहर में कई आपदाएं भी आईं. गोलकुंडा की संभ्रांत आबादी ने भी शहर से दूर कई गार्डन हाउस या बाग बनाने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान मूसी नदी के दूसरे छोर पर मछलीपट्टनम हाईवे (Machilipatnam Highway) के नजदीक एक नई टाउनशिप बसाई गई. इसे ही भाग नगर या गार्डन का शहर कहा गया जो बाद में भागनगर बना...

1580 में जब सुल्तान मुहम्मद कूली कुतुब शाह ने नई राजधानी बनाने का फैसला किया, तो इसके लिए उन्होंने भागनगर को ही चुना.. ऐसा इसलिए क्योंकि ये शहर हाईवे के पास और नदी के मुहाने पर था. प्रधानमंत्री मीर मोमिन अस्त्राब्दी की देखरेख में 1591 में हैदराबाद या हैदर का शहर (City of Hyder) बनाया गया... हैदर, पैगंबर मोहम्मद का ही एक दूसरा नाम है.

सदियों बाद, सुल्तान कुली कुतुब शाह, भागमती और भागनगर के शहरीकरण ने एक नया मोड़ ले लिया है. इसे सदियों तक अलग अलग रूप से वर्णित किया जाता रहा और आज इन कथनों से सच पता लगा पाना बेहद मुश्किल है.

हैदराबाद, भाग्यनगर और गोलकुंडा!

1816 में हैदराबाद का एक नक्शा ब्रिटिश नागरिक Aron Arrow Smith ने तैयार किया था. इस नक्शे में हैदराबाद बड़े बड़े अक्षरों में लिखा गया था. इसके नीचे भाग्यनगर भी लिखा हुआ था और इसके नीचे गोलकुंडा... इस नक्शे को नानीशेट्टी शीरीश की किताब गोलकुंडा, हैदराबाद और भाग्यनगर में भी दिखाया गया.

लेकिन शहर से जुड़ी प्रेम कहानी ने एक दूसरा टर्न 20वीं सदी की शुरुआत में लिया जब धार्मिक ताकतों ने देश में सिर उठाना शुरू किया. 1920 के दशक में सांप्रदायिक राजनीतिक अलग दौर में पहुंच गई और हैदराबाद भी इससे अछूता नहीं रहा. हैदराबाद निजामों के अधीन एक प्रिंसली स्टेट था.... यहां बहुसंख्यक आबादी हिंदू थी. तब यहां सिर्फ 2 फीसदी मुस्लिम आबादी थी. मुस्लिम आबादी थी तो बेहद कम लेकिन सरकार में उसकी हिस्सेदारी 80 फीसदी थी. सरकार में उच्च पदों पर बैठे लोगों ने हिंदू समुदाय के भीतर नाराजगी को बढ़ाने का काम किया. साथ ही, सत्ता जाने के डर ने उच्च मुस्लिम वर्ग और मिडिल क्लास के मुस्लिम वर्ग में भी असहजता का भाव पैदा कर दिया था...

लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व की मांग को रोकने के लिए निजाम और सत्ता ने हैदराबाद को आदर्श इस्लामिक स्टेट के तौर पर पेश करना शुरू किया जहां मुस्लिम ही हुक्मरान कौम थी. जब 1930 में पहली बार इस्लामिक देश के तौर पर पाकिस्तान गठन का प्रस्ताव पेश किया गया, तब डक्कन में 'ओस्मानिस्तान' (Osmanistan) बनाने का प्रस्ताव भी सामने आया था.

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हैदराबाद स्टेट कांग्रेस और कम्युनिस्ट्स के साथ साथ आर्य समाज भी निजाम सरकार के विपक्षी धड़े का हिस्सा था. ये 1930 या 40 के दशक का दौर था. हैदराबाद की धारणा को पीछे करने के लिए भाग्यनगर की कहानी को जोर जोर से उछाला जाने लगा... कई किताबें, पैंपलेट के जरिए भाग्यनगर सत्याग्रह चलाया गया. ऐसा कहा जाने लगा कि यह वास्तव में एक हिंदू शहर था जिसे इस्लामिक रूप दिया गया..

1948 में भारत के अधीन आया हैदराबाद

15 अगस्त 1947 को देश की आजादी के बाद निजाम और रजाकार ने हैदराबाद की आजादी की मुहिम चलाई. निजाम की नाफर्मानी और रजाकार के अत्याचारों को रोकने के लिए भारतीय सेना ने 1948 में हैदराबाद पर कब्जा कर लिया और असफ जाही (Asaf Jahi) की सत्ता को खत्म कर दिया..

लेकिन भाग्यनगर की कहानी को नई संजीवनी भी मिली... चारमिनार के पास एक नया मंदिर देवी भाग्यलक्ष्मी (Bhagyalaxmi Devi) के नाम पर बनाया गया. चारमिनार (Charminar) की पुरानी तस्वीरें और आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Archaeological Survey of India) की रिपोर्ट बताती हैं कि 1960 से पहले यहां इस तरह का कोई मंदिर नहीं था. ASI के आर्काइव्स में 1959, 1980 और 2003 की तस्वीरों में दिखाई देता है कि मंदिर का निर्माण बाद के दौर में हुआ... इस मंदिर का आकार समय के साथ बढ़ता गया जब तक की 2013 में कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश नहीं दे दिया. यह मंदिर पुराने हैदराबाद शहर में विवाद का नया केंद्र बन गया है. 

भाग्यलक्ष्मी मंदिर (Shri Bhagya Laxmi Mandir, Charminar) पर नवंबर 1979 में हमला भी किया गया. इसके बाद सितंबर 1983 में भी हिंसा हुआ. इस हिंसा में 45 लोग मारे गए थे.

बीजेपी के नेताओं ने मंदिर भाग्यलक्ष्मी को हैदराबाद से जोड़ने का काम जोर शोर से किया... अब एकबार फिर हैदराबाद पहचान, पॉलिटिक्स और धर्म के नए द्वंद में उलझता दिखाई दे रहा है.  

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