Story of India: इंदिरा के Good Luck कहते ही दहल गया था पोखरण, जानें- भारत ने कैसे किए पाक के टुकड़े EP #3

Updated : Aug 14, 2022 13:25
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Mukesh Kumar Tiwari

Independence Day 2022 : भारत को जब आजादी मिली तो विरासत में एक तरह से देश को युद्धों का सिलसिला भी मिला... वक्त वक्त पर इन जंगों से देश को न सिर्फ आर्थिक नुकसान हुआ बल्कि इन लड़ाइयों ने देश की रफ्तार पर भी ब्रेक लगाने का काम किया... आइए भारत के बनने की कहानी में जानते हैं देश के युद्धों की कहानी (India's War History) को...  

ये भी देखें- Story of India: Nehru का विजन और Patel का मिशन- गजब की थी आजाद भारत की पहली उड़ान

कश्मीर युद्ध 1947-48 || Kashmir War 1947-48

15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद से भारत ने लगातार युद्ध झेलें... देश की आजादी के बाद कश्मीर ने मुश्किल से 70 दिन की आजादी ही देखी थी जब 22 अक्टूबर को पाकिस्तानी सेना ने कबाइलियों के साथ मुजफ्फराबाद की ओर कूच कर लिया. पहले जिन्ना ने इसे कबाइलियों का आक्रमण कहा और फिर कश्मीरी मुस्लिमों के प्रति भाईचारे की दुहाई देकर इसे जिहाद का नाम दिया...

27 अक्टूबर को पूर्ण विलय के हस्ताक्षर प्राप्ति के बाद ही भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) श्रीनगर भेजी गई. भारतीय सेना ने अद्भुत शौर्य और वीरता का प्रदर्शन किया. श्रीनगर में इंडियन एयरफोर्स के फाइटर प्लेन ने पाक सेना पर हमले शुरू किए. स्क्वॉड्रन के डाकोटा विमानों (Dakota Aircraft) ने कम समय में पाक सेना को खदेड़ दिया...

लेकिन जब भारतीय सेनाएं कबाइलियों और पाक सेनाओं को भयंकर रूप से भगा रही थीं और 7 नवंबर तक बारामूला को कबइलियों से मुक्त करा लिया गया था, युद्ध विराम घोषित कर दिया गया.

इसका नतीजा ये हुआ कि कश्मीर का 1 तिहाई हिस्सा जिसमें मुजफ्फराबाद, पुंछ, मीरपुर, गिलगित जैसे अहम इलाके थे, पाकिस्तान के पास चले गए. आज यही इलाका पाकिस्तानी घुसपैठियों व आतंकवादियों का अड्डा बन गया, जिसका अंजाम भारत 75 सालों से भुगत रहा है.

1962 का युद्ध || 1962 Indo-China War

सालों से बन रही टकराव की स्थिति के बाद 1961 तक चीन पूरी तरह भारत पर आक्रमण की सैन्य तैयारियों को पूरा करना शुरू कर चुका था... मई में सेनाएं चुसुल के पास पहुंच गईं, जुलाई में चेमीकार पीला जो कामेंग डिविजन में है और अगस्त तक चीन ने लद्दाख में तीन नई चौकियां स्थापित की.

1962 की शुरुआत में, जनवरी में चीनी सेनाओं ने लाग्जू पारकर रोई ग्राम तक और अप्रैल मई तक चिपचैप क्षेत्र में प्रभाव जमाकर लद्दाख में अपनी गश्त बढ़ाई. 2 जून को नई चौकियां बनाईं. इसी तरह 10 जुलाई को गलवान नदी पर नई चौकियां बनाई गईं. जुलाई 1962 में, चीन ने अपने नक्शों को दोबारा बदल दिया. अब उसने भारत भूमि के 50 हजार वर्ग मील इलाके की बजाय 70 हजार वर्ग मील इलाके पर अधिकार जताया. 

20 अक्टूबर 1962 से शुरू हुई जंग 21 नवंबर 1962 तक चली. एक ही महीने में चीन ने लद्दाख, नेफा, तेजपुर के बाहरी हिस्सों पर कब्जा कर लिया. भीषण सर्दी में भारतीय सैनिक बर्फीली चट्टानों पर सूती मोजे पहनकर पुराने हथियारों से ये जंग लड़े. 

चीनी सेना के बाद ऑटोमैटिक राइफलें थीं जबकि भारतीयों के पास 303 मार्क वाली राइफलें थीं. रेजांज दर्रे, तोपलेट दर्रे, लद्दाख क्षेत्र और दूसरे स्थानों पर भारत को बहुत नुकसान हुआ. एक आंकड़े के मुताबिक इस जंग में 725 चीनी सैनिक मारे गए जबकि 3840 भारतीय सैनिक शहीद हुए. 

चीन ने भारत के बड़े भूभाग पर कब्जा कर लिया... रेजांज दर्रे में सी कंपनी अपने आखिरी सैनिक और आखिरी गोली तक लड़ती रही. यह भी विचित्र था कि 21 नवंबर को चीनी सेनाओं ने खुद युद्ध समाप्त कर दिया.

1965 युद्ध || 1965 Indo-Pak War

पाकिस्तान के जनरल अयूब खां 1962 में चीन के आक्रमण के वक्त हालात का फायदा नहीं उठा सके थे. वह इस दौरान जम्मू-कश्मीर पर कब्जा न करने को 'खो दिया अवसर' मानते थे. 1965 में अमेरिकी मदद के बूते अयूब खां ने 26-33 हजार सैनिकों के साथ भारत पर आक्रमण कर दिया. इस हमले को 'ऑपरेशन जिब्राल्टर' (Operation Gibraltar) नाम दिया गया. शुरुआत में भारतीय सेना को कामयाबी नहीं मिली, उसने पर्वतीय इलाकों पर अधिकार किया.

पाकिस्तान ने तिथवाल, उरई, पुंछ  के हिस्सों पर कब्जा किया. भारत की सेनाओं ने पाक के कब्जे वाले कश्मीर के 8 किलोमीटर अंदर जाकर हाजी पीर दर्रे तक भारतीय झंडा लहरा दिया. अखनूर पर कब्जा करने के लिए पाकिस्तान का शुरू किया गया ऑपरेशन ग्रैंड सलाम (Operation Grand Slam) नाकाम रहा. हालांकि, पाकिस्तान की सेनाओं ने खेमकरण, भारतीय सेनाओं से छीन लिया. 

तीसरी जाट रेजिमेंट ने पाकिस्तान में बाटापुर नगर पर कब्जा कर लिया... 21 सितंबर को तीसरी जाट रेजिमेंट ने डोगराई पर विजय प्राप्त की. मेजर जनरल प्रसाद ने 15वीं डिवीजन को लेकर लाहौर के पूर्वी हिस्से पर अधिकार कर लिया था...  इसके बाद जल्द खेमकरण भारत के पास आ गया. 10 सितंबर को पाकिस्तानी प्रथम बख्तरबंद डिवीजन की भारतीय चौथी माउंटेन डिवीजन ने बुरी हालत कर दी.

भारतीय इतिहास में इस लड़ाई को असल उत्तर अर्थात पाकिस्तान को वास्तविक रूप से उत्तर दिया गया, कहा गया. इसमें अमेरिका में बने पाकिस्तानी टैंकों की भारी तबाही हुई. एक अनुमान के मुताबिक, पाकिस्तान के 97 टैंक नष्ट हुए और भारत के सिर्फ 32.

एक आंकलन के अनुसार इस युद्ध में भारत के लगभग 3000 और पाकिस्तान के 3800 सैनिक मारे गए. भारतीय सेनाओं ने 1840 वर्ग किलोमीटर पाकिस्तानी भूमि पर कब्जा किया जबकि पाकिस्तान ने सिर्फ 545 वर्ग किलोमीटर भारत भूमि पर कब्जा किया.

भारत ने सियालकोट, लाहौर और पीओके की जमीन पर उपजाऊ जमीनें कब्जाईं जबकि पाकिस्तान ने सिंध के दक्षिण में रेगिस्तान और कश्मीर के उत्तर में छंब क्षेत्र पर अधिकार किया. अमेरिका और सेवियत संघ ने कूटनीतिज्ञता का परिचय देते हुए दोनों देशों में युद्ध विराम कराया.

1971 की जंग || 1971 Indo-Pak War

1971 की जंग पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान की जंग से शुरू हुई थी. हुआ यूं था कि 1970 के चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग ने 169 में से 167 सीटें जीती थीं और कुल 303 सीटोंवाली पाकिस्तान की संसद मजलिस ए शूरा में बहुमत हासिल किया था.

अब आवामी लीग के नेता मुजीबुर्रहमान ने 6 सूत्री बिंदुओं के आधार पर पूर्वी पाकिस्तान में संपूर्ण पाकिस्तान के अध्यक्ष याह्या खां से पूर्वी पाकिस्तान में सेना स्थापित करने का अधिकार मांगा था. लेकिन पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने इसे खारिज कर दिया और आवामी लीग के खिलाफ सेना बुला ली. पूर्वी पाकिस्तान में कई नागरिकों को गिरफ्तार कर लिया गया और वहां की सेना व पुलिस को नि: शस्त्र करने की कोशिश की गई.

इस ऐक्शन ने असंतोष और फिर जन आंदोलन का रूप ले लिया. 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान के शासकों ने ढाका पर सेना भेजकर आक्रमण कर दिया. आवामी लीग को गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया. मुजीबुर्रहमान को 25-26 मार्च की रात गिरफ्तार कर पश्चिमी पाकिस्तान भेज दिया गया. पूर्वी पाकिस्तान की सेना को मुक्तिवाहिनी नाम दिया गया और इसका मुख्य सेनापति जनरल मोहम्मद आतुल गनी उस्मानी को बनाया गया.

पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान की जनता का कत्लेआम किया और लगभग 1 करोड़ लोगों ने  भारत में शरण ली. पाकिस्तान के जनरल टिक्का खां ने भयंकर हत्याकांड किया. उसे बंगाल के कसाई के नाम से पुकारा गया. उसने सेना को आदेश दिया था- मुझे व्यक्ति नहीं, जमीन चाहिए. पाकिस्तानी सेना ने 4 लाख औरतों का बलात्कार किया. 

भारत यह सब होते हुए भी युद्ध में प्रत्यक्ष तौर पर शामिल नहीं हुआ था... हां, वह मुक्ति वाहिनी की पर्दे के पीछे से मदद कर रहा था... आखिर 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायु सेना ने शाम 5 बजकर 40 मिनट पर भारत के उत्तर पश्चिम में ग्यारह हवाई ठिकानों पर हमला कर दिया. ये हमे आगरा में भी किए गए. इसे ऑपरेशन चंगेज खां नाम दिया गया. भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसी शाम पाकिस्तान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.

जल्द ही यह युद्ध एयरफोर्स, नेवी और थल सेनाओं की लड़ाई बन गया. जंग में जहां भारत का लक्ष्य पूरब में बांग्लादेश की आजादी थी वहीं पश्चिम में पाकिस्तान को सीमा में घुसने से रोकने की भी थी.

भारतीय नौसेना के वाइस एडमिरल एस एन कोहली ने 4-5 दिसंबर की रात ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत कराची पोर्ट पर हमला किया. पाक की खैबर मुहाफिज और शाहजहां पनडुब्बियों को भारी नुकसान पहुंचाया गया. 720 पाक सैनिक मारे गए या घायल हो गए.

4 दिसंबर को भारत के विक्रांत के अनेक समुद्री लड़ाकू आक्रमणों ने पूर्वी पाकिस्तान के तटीय नगरों चटगांव काक्स बाजार को हानि पहुंचाई. पाक की गाजी पनडुब्बी रहस्यमयी तरीके से डूब गई लेकिन 9 दिसंबर को भारतीय नेवी को खासा नुकसान हुआ. 

इस दिन पाकिस्तान की पनडुब्बी हनगोर ने भारत के जलयान खूखरी को अरब सागर में डुबो दिया. इसमें भारत के 18 अधिकारी और 176 नाविक मारे गए. यह भारत की सबसे बड़ी युद्धकालीन हानि थी.

हालांकि, इस जंग में ज्यादा नुकसान पाक को हुआ. एक पाकिस्तानी विद्वान ने यहां तक कहा कि जंग में 1 तिहाई पाक सेना नष्ट हो गई. जंग में भारत ने पाकिस्तान के 14 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया. भारतीय सेना ने पूर्वी क्षेत्र में बंगाल की मुक्तिवाहिनी से मिलकर मित्रो वाहिनी सेना बनाई. आखिरकार 15 दिसंबर को ढाका पर भारतीय मुक्तिवाहिनी सेना ने अधिकार कर लिया. 

लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने 8वीं, 23वीं और 57वीं डिवीजन का नेतृत्व किया था, उन्हीं के सामने 16 दिसंबर दोपहर 4:31 मिनट पर ढाका के रमण रेसकोर्स में पाकिस्तानी सेना ने सरेंडर कर दिया. समर्पण के दस्तावेजों पर पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए ए के नियाजी ने हस्ताक्षर किए. जैसे ही नियाजी ने अपनी विशाल सेना सहित सरेंडर किया, रेसकोर्स में इकट्ठा भारी भीड़ ने नियाजी और पाकिस्तान के विरोध में नारे लगाने शुरू कर दिए.

पाकिस्तान के लगभग 90 हजार युद्ध बंदी बनाए गए. इसमें 79,626 कैदी यूनिफॉर्म में थे. इसमें से भी 55,692 सेना के, 16,354 पैरामिलिट्री, 5296 पुलिस, 1,000 नेवी और 800 पाक एयरफोर्स के थे. gfx out बाकी सैनिक परिवारों और उनके समर्थक यानी रजाकारों के थे. जनरल नियाजी और दूसरे सैनिकों को भारत में जबलपुर की और दूसरी जेलों में रखा गया.

परमाणु परीक्षण || Nuclear Test of India

18 मई 1974... पोखरणः शुष्क राजस्थानी रेगिस्तान की स्वाभाविक सुबह थी... आम दिनों की तुलना में हल्की सी ठंडक थी. जहां तक आंखें देख पा रही थीं, दूर दूर तक कोई बादल नहीं दिख रहा था. गांव में पगड़ी बांधे लोग कंधों पर रखे डंडे के सिरे पर अपना खाना बांधे काम के लिए अपने अपने घरों से निकलना शुरू कर चुके थे. महिलाएं पीने का पानी लाने के लिए घड़ों को लेकर 5 मील दूरी के रास्ते पर चल पड़ी थीं. 

सड़क पर ज्यादातर सेना के ट्रक व जीपें ही आ जा रही थीं. ये गाड़ियां सीधे बालागढ़ में पोखरण किले की ओर जाते थे... जो कि सन 1952 के बाद से ही इस्तेमाल नहीं हो रहा था. तब चंपावत राठौड़ वंश के आखिरी उत्तराधिकारी भवानी सिंह ने इस जमीन और संपत्ति के राष्ट्रीयकरण के तहत किले का स्वामित्व भारत सरकार को सौंप दिया था.

एक दिन पहले ही करीब दर्ज भर ट्रक किले तक पहुंचे थे... इसमें वर्दियां पहने सैन्य अधिकारी थे और सफेद कोट पहने कुछ वैज्ञानिक भी... ये सब मिलकर उस जगह चीजें व्यवस्थित कर रहे थे और किसी बड़े काम की तैयारी में लगे थे. अधिकारियों और वैज्ञानिकों के रोजमर्रा के स्वागत के स्वागत में रसोइए, नौकर चाकर एक दिन पहले ही किले को तैयार करने के लिए पहुंच चुके थे. किले की तीसरी और सबसे ऊंची मंजिल के डाइनिंग हॉल में रात का भोजन लगाया जा चुका था, यहां से थार के विशाल रेगिस्तान का साफ नजारा दिखता था.

अगली सुबह यानी 18 मई को यही टीम 3 बजे उठ गई... तड़के कई तैयारियां की गईं... 8 बजे फोन की घंटी बजी... अफसरों को जैसे उसी कॉल का इंतजार था. एक अफसर रिसीवर उठाते हैं और कहते हैं- प्रधानमंत्री जी, हम एकदम तैयार हैं. क्या आपकी अनुमति है? 

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की स्पीकर पर आवाज आती है- बिल्कुल मेरी अनुमति है... गुड लक और हम सबका गौरव बढ़ाओ. जय हिंद. कमरे में तालियां बजी और सबने मिलकर कहा- जय हिंद

फोन रखते ही अफसर ने कहा- काउंटडाउन शुरू करो... 

अफसर ने 8 बजकर  मिनट पर डेटोनेशन बटन दबाया. सालों का सैन्य प्रशिक्षण और दमदार व्यक्तित्व लिए अफसर उस वक्त अपने हाथों की कंपकपाहट को रोक नहीं पा रहे थे. 
बटन दबाते ही कमरे में अचानक सब थम सा गया और एकदम चुप्पी छा गई.

इंतजार असहनीय हो रहा था, इसलिए कोई अपनी जगह से हिला तक नहीं और तभी- भड़ाम... विस्फोट का तेज झटका उन लोगों को महसूस हुआ. उसकी तीव्रता ने हर किसी को हैरान कर दिया. पूरे किले की नींव हिल गई थी. खिड़कियां, फानूस, कुर्सियां भड़भड़ाकर गिर गईं. स्माइलिंग बुद्धा की करीब 12 किलो टन की ताकत का तेज झटका रिक्टर पैमाने पर 7 की तीव्रता के भूकंप के बराबर था. ये बातें उदय सिंह की पुस्तक पोखरण से ली गई हैं.

यह भारत का पहला परमाणु परीक्षण था... इसे पोखरण 1 के नाम से जाना जाता है. परीक्षण संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देशों के के बाहर किया गया पहला परीक्षण था उस समय भी इस परीक्षण की भनक अमेरिका और दुनिया की अन्य गुप्तचर संस्थों को नहीं लगने दी थी. इस परीक्षण से भारत अमेरिका, सेवियत यूनियन, फ्रांस, और चीन के बाद सफलता पूर्वक परमाणु परीक्षण करने वाला छठा देश बन गया था.इस परीक्षण की वजह से अमेरिका और अन्य बड़े औद्योगिक देशों ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे. उनका दावा था इससे परमाणु प्रसार को बढ़ावा मिलेगा.

रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह परीक्षण इंडियन न्यूक्लियर रिसर्च इंस्टिट्यूट भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के तत्कालीन निदेशक राजा रमन्ना की देखरेख में किया गया था. इस ऑपरेशन को 'स्माइलिंग बुद्धा' इसलिए कहा गया क्योंकि यह उस साल बुद्ध पूर्णिमा पर इसे अंजाम दिया गया था. रिपोर्ट्स बताती हैं कि परीक्षण के बाद डॉ रमन्ना ने तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी से कहा था, 'बुद्ध मुस्कुराए हैं.' 

भारत ने जिस परमाणु बम का विस्फोट किया था, वह आकार में उस परमाणु बम से छोटा था जो 1944 में हिरोशिमा पर गिराया गया था.

इसके 24 साल बाद भारत ने पोखरण 2 को दोहराया. 11 मई 1998 की सुबह अटल बिहारी वाजपेयी सफदरजंग रोड का अपना निवास छोड़कर प्रधानमंत्री के आधिकारिक आवास, 7 रेसकोर्स रोड में आ गए थे. गृह प्रवेश के अवसर पर हुई पूजा संपन्न हो चुकी थी लेकिन इससे ज्यादा अहम बात की वजह से वह दिन देश के लिए कभी न भूलने वाला दिन बनने वाला था.

पीएम आवास में अटल के साथ लाल कृष्ण आडवाणी, रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडीज, योजना आयोग के उपाध्यक्ष जसवंत सिंह, वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा, पीएम के राजनीतिक सलाहकार प्रमोद महाजन, पीएम के प्रधान सचिव ब्रजेश मिश्रा थे. ये सभी बेचैनी से राजस्थान के पोखरण से एक मेसेज का इंतजार कर रहे थे. शाम 4 बजे से कुछ पहले रैक्स लाइन पर संदेश आया- परीक्षण सफल.

भारत के परमाणु वैज्ञानिक सफलतापूर्वक एक साथ तीन विस्फोट करके भारत के एक परमाणु अस्त्र संपन्न देश बनकर उभरने की घोषणा कर चुके थे. कक्ष में कोई भी अपनी भावनाओं को रोक न सका.. आडवाणी की आंख से छलछलाकर आंसू बह निकले... इसका जिक्र उन्होंने खुद अपनी आत्मकथा में किया है.

अटलजी ने उन वैज्ञानिकों को धन्यवाद दिया, जिन्होंने यह कर दिखाया था... खासतौर से डीआरडीओ के चीफ डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, परमाणु ऊर्जा विभाग के प्रमुख आर चिदंबरम, डॉ. अनिल काकोदकर को.

11 मई 1998 को दोपहर 3 बजकर 45 मिनट पर राजस्थान की पोखरण रेंज में एक साथ तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण कर भारत ने सबको चौंका दिया. 

इन परीक्षणों से भारत ने विश्व को यह बता दिया कि वह उन कुछ देशों की श्रेणी में आ गया जो परमाणु शक्ति संपन्न हैं. भारत के इन परीक्षणों पर चीन, रूस, जापान एवं यूरोपीय संघ ने अमेरिका और दूसरे पश्चिमी देशों की तरह भारत की निंदा की. कुछ देशों को सहन न हो सका तो उन्होंने राजदूतों को वापस बुलाने की घोषणा कर दी और आर्थिक प्रतिबंधों की धमकी भी दी. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हंगामा होता रहा लेकिन भारत ने वही किया जो उसे करना था. 

इसके दो दिन बाद ही 13 मई 1998 को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर भारत ने राजस्थान की पोखरण रेंज में ही दो और अंडरग्राउंड परमाणु परीक्षण किए.

करगिल युद्ध || Kargil War

करगिल युद्ध (Kargil War) की शुरुआत मई 1999 में हुई थी और इसके लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय (Operation Vijay) चलाया था. 26 जुलाई 1999 को उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस युद्ध में भारत की जीत का ऐलान किया था. तब से हर साल 26 जुलाई को विजय दिवस (Vijay Diwas) के तौर पर मनाया जाता है. 

भारत को पाकिस्तान की इस हरकत के बारे में मई में पता चला लेकिन इसकी तैयारी दुश्मन ने कई महीनों पहले से ही शुरू कर दी थी. नवंबर 1998 में पाकिस्तानी सेना के एक ब्रिगेडियर को करगिल सेक्टर की रेकी करने भेजा गया था. उनकी रिपोर्ट के आधार पर ही इस पूरे प्लान को अंजाम दिया गया.

मई 1999 तक भारत को पाकिस्तानी घुसपैठियों की इस हरकत के बारे में पता ही नहीं चल सका. फिर एक दिन जब चरवाहे वहां तक पहुंचे तो उन्होंने देखा कि कुछ हथियारबंद लोग भारतीय चौकियों पर कब्जा किए हुए हैं. उन्होंने आकर पूरी बात भारतीय सेना को बता दी. 

8 मई 1999 को ये जंग शुरू हुई. भारतीय जवानों ने भी ऊंचाई पर पहुंचना शुरू कर दिया और फिर ऑपरेशन विजय की शुरुआत हुई. इस जंग में भारतीय सेना के साथ-साथ वायुसेना ने भी मोर्चा संभाला. भारतीय सेना के साथ एक दिक्कत ये भी थी कि वो नीचे थी और घुसपैठिए ऊंचाई पर थे, लेकिन उसके बावजूद भारतीय सेना उन्हें खदेड़ती चली गई. और 26 जुलाई 1999 को करगिल में भारतीय तिरंगा लहरा दिया.

करगिल युद्ध के बाद पाकिस्तान के 600 से ज्यादा सैनिक मारे गए और जबकि 1500 से अधिक घायल हुए. भारतीय सेना के 562 जवान शहीद हुए और 1363 अन्य घायल हुए. विश्व के इतिहास में करगिल युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे क्षेत्रों में लड़ी गई जंग की घटनाओं में शामिल है. दो महीने से ज्यादा चले इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मार भगाया था. आखिरकार 26 जुलाई को आखिरी चोटी पर भी जीत मिली और ये दिन करगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

ये भी देखें- Story of India: Nehru का विजन और Patel का मिशन- गजब की थी आजाद भारत की पहली उड़ान | 15 August 2022 EP #1

Independence Day 2022Kargil Warnuclear testkashmir war

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