ये बात 15 अगस्त 1947 की है...घड़ी की सुईयां शाम पांच बजे का वक्त बता रही थीं और जगह था दिल्ली के इंडिया गेट के पास मौजूद प्रिसेंज पार्क (Princess Park near India Gate). आसमान साफ था लेकिन मौसम सुहाना बना हुआ था. तब के आला भारतीय अधिकारियों का मानना था कि पार्क में 30 हजार लोगों की भीड़ जुटेगी लेकिन आ पहुंचे थे करीब 5 लाख लोग. दरअसल आयोजन ही ऐसा था कि उस वक्त दिल्ली में मौजूद कोई भी शख्स खुद को रोक नहीं पा रहा था.
उस दिन पहली बार आजाद भारत का तिरंगा लहराया जाना था. लिहाजा प्रिसेंज पार्क में इतनी भीड़ थी कि तबके गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन (Lord Mountbatten) बग्घी से उतर ही नहीं पा रहे थे. उनकी बेटी को पामेला माउंटबेटन (Pamela Mountbatten) मंच तक पहुंचना चाह रही थी लेकिन वो भी बग्घी से उतर नहीं पा रही थी. तब नेहरू ने कहा- लोगों के सिर पर पैर रखकर मंच तक आ जाओ वो बुरा नहीं मानेंगे.
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पामेला थोड़ा हिचकिचाई तो जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) ने उन्हें डांटा और कहा- बेपकूफ लड़की मैं जैसा कहता हूं वो करो. इसके बाद पहले खुद नेहरू और उनकी देखा-देखी पामेला ने वैसा ही किया और इंसानी सिरों के कालीन पर चलते हुए वो मंच तक पहुंची. उधर माउंटबेटन जो बग्घी से नहीं उतर पाए थे वहीं से नेहरू से कहा- आप झंडा फहरा दो. मौके की नजाकत को देखते हुए नेहरू ने ऐसा ही किया. जैसे ही तिरंगा आसमान में शान से लहराया वहां मौजूद लोगों ने नारा लगाया- माउंटबेटन की जय, पंडित माउंटबेटन की जय. भारत के पूरे अंग्रेजी शासन के इतिहास में ये सम्मान किसी अंग्रेज को प्राप्त नहीं हुआ था. मानो भारत के लोग पलासी की लड़ाई, 1857 के अंग्रेजों के अत्याचार और जालियांवाला बाग का नरंसहार भी भूल गए थे.
आज की तारीख यानी 15 अगस्त का संबंध भारत की आजादी से है और आज हम बात करेंगे 14-15 अगस्त 1947 की. कहानी की शुरुआत 14 अगस्त से करते हैं. 14 अगस्त की शाम भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के 17 यॉर्क रोड स्थित घर के सामने एक कार रुकी. उस कार से दो शख्स उतरे...दोनों ने ही भगवावस्त्र पहन रखे थे. उनके हाथ में सफ़ेद सिल्क का पीतांबरम, तंजौर नदी का पवित्र पानी, भभूत और मद्रास के नटराज मंदिर में सुबह चढ़ाए गए उबले हुए चावल थे.
जैसे ही नेहरू को उनके बारे में पता चला, वो बाहर आए. उन्होंने नेहरू को पीतांबरम पहनाया, उन पर पवित्र पानी का छिड़काव किया और उनके माथे पर पवित्र भभूत लगाई. दिलचस्प ये है कि खुद नेहरू पूरी जिंदगी ऐसी रस्मों को नापसंद करते रहे हैं लेकिन उस दिन उन्होंने उन दोनों साधुओं के हर अनुरोध को मुस्कुराते हुए स्वीकार किया. इसके थोड़ी देर बाद नेहरू रात के खाने के लिए डिनर टेबल पर पहुंचे तो वहां इंदिरा गांधी (Indira Gandhi), फ़िरोज़ गांधी (Feroze Gandhi) और पद्मजा नायडू (Padmaja Naidu) पहले से मौजूद थे.
भोजन शुरू होता उससे पहले ही फोन की घंटी बजी. दूसरी तरफ वाला शख्स नेहरू से ही बात करना चाहते थे तो नेहरू खाना छोड़कर फोन लाइन पर पहुंचे और जब उन्होंने फोन रखा तो उनकी आंखों में आंसू थे. उन्होंने इंदिरा को बताया कि वो फ़ोन लाहौर से आया था. वहां के नए प्रशासन ने हिंदू और सिख इलाक़ों की पानी की सप्लाई काट दी है. लोग प्यास से पागल हो रहे थे. जो औरतें और बच्चे पानी की तलाश में बाहर निकल रहे थे, उन्हें चुन-चुन कर मारा जा रहा था.
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लोग तलवारें लिए रेलवे स्टेशन पर घूम रहे थे ताकि वहां से भागने वाले सिखों और हिंदुओं को मारा जा सके. फ़ोन करने वाले ने नेहरू को बताया कि लाहौर की गलियों में आग लगी हुई थी. नेहरू ने बेहद धीमी आवाज में कहा- मैं आज कैसे देश को संबोधित कर पाऊंगा ? मैं कैसे जता पाऊंगा कि मैं देश की आज़ादी पर ख़ुश हूं, जब मुझे पता है कि मेरा लाहौर, मेरा ख़ूबसूरत लाहौर जल रहा है. इसके बाद इंदिरा गांधी ने अपने पिता को दिलासा देने की कोशिश की. उन्होंने कहा आप अपने उस भाषण पर ध्यान दीजिए जो आपको आज रात देश के सामने देना है. लेकिन नेहरू का मूड उखड़ चुका था. खैर नेहरू ने खुद को संभाला और वो भाषण दिया जो इतिहास में दर्ज हो गया.
इस ऐतिहासिक भाषण के तुरंत बाद एक और दिलचस्प घटना घटी थी. हुआ यूं कि जवाहर लाल नेहरू और राजेन्द्र प्रसाद, लॉर्ड माउंटबेटन को औपचारिक तौर पर भारत के गवर्नर जनरल बनने का न्योता देने तब के गवर्नर हाउस और अब के राष्ट्रपति भवन गए. वहां माउंटबेटन ने उनका अनुरोध स्वीकार कर लिया. इसके बाद खुद माउंटबेटन ने वाइन की एक बोतल निकाली और अपने हाथों से मेहमानों के गिलास में डाल दी. फिर अपना गिलास ऊपर कहा- टू इंडिया. एक घूंट लेने के बाद नेहरू ने माउंटबेटन की तरफ अपना ग्लास ऊपर करके कहा- किंग जॉर्ड षष्टम के लिए.
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वहां से लौटते वक्त नेहरू ने माउंटबेटन को एक लिफाफा दिया और कहा कि इसमें उन मंत्रियों के नाम हैं जिन्हें कल शपथ दिलाई जानी है. नेहरू और राजेन्द्र प्रसाद के जाने के बाद जब माउंटबेटन ने वो लिफाफा खोला तो वो खाली था. दरअसल, नेहरू हड़बड़ी में उसमें कागज रखना ही भूल गए थे.
अब बात 15 अगस्त यानी आजाद भारत के पहली सुबह की. सुबह 8 बजे संसद भवन में नेहरू के मंत्रिमंडल के मंत्रियों को लॉर्ड माउंटबेटन ने शपथ दिलाई. उधर बाहर दिल्ली की सड़कों पर हाथों में तिरंगा लिए लोग उत्साह में सराबोर दिख रहे थे. नेहरू ने इस मौके के लिए विशेष तैयारी करवा रखी थी. वे चाहते थे कि आजादी की पहली सुबह का स्वागत उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई से हो. जिसके लिए उन्होंने स्वतंत्रता दिवस समारोह का इंतज़ाम देख रहे संयुक्त सचिव बदरुद्दीन तैयबजी को ये जिम्मेदारी दी कि वो खां साहब को ढूंढ कर लाएं.
कहा जाता है कि बिस्मिल्लाह खां साहब उस दिन बनारस में थे जहां से उन्हें एयरफोर्स के विमान से दिल्ली लाया गया और सुजान सिंह पार्क में राजकीय अतिथि के तौर पर ठहराया गया. खुद खां साहब इस बड़े अवसर पर शहनाई बजाने का मौका मिलने पर उत्साहित थे, लेकिन उन्होंने पंडित नेहरू से कहा कि वो लाल किले पर चलते हुए शहनाई नहीं बजा पाएंगे.
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नेहरूजी ने उनसे कहा, आप लाल किले पर एक साधारण कलाकार की तरह नहीं चलेंगे. आप आगे चलेंगे. आपके पीछे मैं और पूरा देश चलेगा. अंजाम ये हुआ कि बिस्मिल्लाह खां (Bismillah Khan) और उनके साथियों ने राग काफ़ी बजा कर आजादी की उस सुबह का स्वागत किया.
खास बात ये है कि साल 1997 में जब देश अपनी आजादी की पचासवीं सालगिरह मना रहा था तो उन्हीं बिस्मिल्लाह खां ने एक बार फिर से लाल किले के प्राचीर से ही शहनाई बजाई थी. शाम को जब नेहरू ने झंडा फहराया तो वहां मौजूद सभी लोगों की आंखे खुली की खुली रह गई क्योंकि एकदम साफ और खुले आसमान में इंद्रधनुष नजर आया. ऐसा लगा कि कुदरत भी इस ऐतिहासिक मौके पर अपनी खुशी का इजहार कर रहा हो. इस घटना का जिक्र खुद माउंटबेटन ने 16 अगस्त 1947 को लिखी अपनी 17वीं रिपोर्ट में भी किया है, जिसे उन्होंने ब्रिटिश क्राउन को सौंपा था.
अब चलते-चलते इस दिन हुई दूसरी ऐतिहासिक घटनाओं को भी जान लेते हैं
1854: ईस्ट इंडिया रेलवे (East India Railway) ने कोलकत्ता से हुगली तक पहली यात्री ट्रेन चलाई
1947: रक्षा वीरता पुरस्कार- परमवीर चक्र, महावीर चक्र और वीर चक्र की शुरुआत
1982: भारत में राष्ट्रव्यापी रंगीन प्रसारण और टीवी के राष्ट्रीय कार्यक्रम की शुरुआत
2004: ब्रायन लारा (Brian Lara) सबसे तेज 10,000 रन बनाने वाले बल्लेबाज बने
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