Independence Day 2022 : भारत ने आजादी के 75 साल देख लिए हैं... देश आजादी का अमृत महोत्सव (Azadi Ka Amrit Mahotsav) मना रहा है. आजादी के इन 75 सालों में देश किन किन पड़ावों से गुजरा? कैसे खड़ा हुआ अपना प्यारा भारत? कैसे आबाद हुआ अपना वतन? इस स्वतंत्र राष्ट्र की कहानी आपको बताने आया है editorji... चलिए चलते हैं आजाद भारत के सफरनामे पर ...
2 सितंबर 1946 की सुबह... नेहरू की अध्यक्षता में भारत की अंतरिम सरकार के प्रतिनिधि वायसरॉय हाउस (अब राष्ट्रपति भवन) पहुंचते हैं... लंबे वक्त तक गुलामी की बेड़ियों में बंधा भारत अब आजाद होने जा रहा था... और सत्ता देशवासियों के पास आने को तैयार थी.. भारत के वायसराय-गवर्नर जनरल लॉर्ड वेवेल (VIceroy Governor General Lord Wavell) ने प्रतिनिधियों का स्वागत किया... भारत की अंतरिम सरकार (interim government of india) ने शपथग्रहण किया और यहीं पर नेहरू ने पहली कैबिनेट बैठक की... मुस्लिम लीग ने पहले इस सरकार में शामिल होने से इनकार कर दिया था... लेकिन बाद में वह इसमें शामिल हुई... बैठक के बाद नेहरू और उनके सहयोगी वायसरॉय हाउस (Viceroy's House) की बालकनी में आए, तो बाहर खड़ा जनसैलाब अपनी खुशी को संभाल न सका... कुछ ने उनकी जय जयकार की तो भीड़ में से कुछ ने नारे लगाए... बनकर रहेगा पाकिस्तान!
अंतरिम सरकार की जरूरत थी क्यों? ऐसा इसलिए क्योंकि ब्रिटिश हुकूमत सोचती थी कि भारत के नेताओं के पास भारत जैसे विशाल देश को चला पाने का कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है... ऐसे में अंतरिम सरकार बनाने का विचार सामने आया... इसके सदस्यों का चयन राष्ट्रीय चुनाव के जरिए हुआ था... ब्रिटिश सरकार सोचती थी कि भारत डोमिनियन स्टेट (Dominion State of India) बने... एक शैडो गवर्नमेंट का फॉर्मेशन किया जाए.. जिसमें भारतीय नेताओं के साथ साथ अंग्रेज अफसर भी हों... नेता अधिकारियों से देश चलाना सीखेंगे... कैबिनेट मिशन के प्रावधानों के अनुसार संविधान सभा के निर्वाचन के बाद लॉर्ड वेवेल ने जवाहर लाल नेहरू को अंतरिम सरकार के गठन के लिए 14 अगस्त 1946 को आमंत्रित किया. इसके बाद जवाहर लाल नेहरू ने 2 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार का गठन किया.
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नेहरू कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष की भूमिका में थे और उनके पास प्रधानमंत्री की शक्तियां थीं. पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री लियाकत अली खान (Pakistan First Prime Minister Liaquat Ali Khan), तब भारत की इस सरकार में वित्त मंत्री की भूमिका में थे. अंतरिम सरकार का बहिष्कार करने वाली जिन्ना की मुस्लिम लीग बाद में इसमें शामिल भी हुई. कांग्रेस-मुस्लिम लीग में तनातनी तो थी लेकिन दोनों ने साथ मिलकर कुछ ऐतिहासिक फैसले भी लिए. दोनों की इस सरकार ने IFS अफसरों के पहले बैच की नियुक्ति और नमक टैक्स हटाने जैसे अहम फैसले लिए... नमक टैक्स हटाने की मांग वही पुरानी डिमांड थी जिसके लिए महात्मा गांधी ने दांडी तक की पैदल यात्रा की थी. सरकार ने प्लानिंग को लेकर एक रिपोर्ट भी तैयार की जो आगे बनने वाली पंचवर्षीय योजना (Panchvarshiya Yojana) की नींव बनी..
लेकिन संविधान सभा का हिस्सा बनने और संविधान का ड्राफ्ट तैयार करने को लेकर दोनों धड़े एकमत नहीं हुए... इन दोनों की सबसे बड़ी नाकामी ये रही कि ये हिंदू-मुस्लिम की खाई को खत्म नहीं कर सके... और फिर बंटवारे की आहट होते ही 1947 में देश दंगों की आग में जल उठा... आखिरकार देश को बंटवारे का दंश झेलना ही पड़ा... आखिरी कैबिनेट बैठक में लॉर्ड माउंटबेटन ने इस गठबंधन को तकनीकी दौर पर पेचिदा बताया और यहीं भारत के विभाजन पर मानों मुहर लग गई थी... और फिर उदय हुआ डोमिनियन ऑफ इंडिया (Dominion of India) का...
डोमिनियन स्टेट का मतलब था कि भारत 15 अगस्त 1947 को (Indian Independence Day) आंतरिक और बाहरी मामलों में आजाद तो हो गया था लेकिन भारत का राज्याध्यक्ष राष्ट्रपति ना होकर ब्रिटेन का सम्राट ही माना गया था, भले ये व्यवस्था नाममात्र की ही थी लेकिन 22 जून 1948 तक यही व्यवस्था रही. जिस ऐक्ट के तहत ये व्यवस्था बनी थी, उस ऐक्ट को हटाने के लिए कानून की भी जरूरत थी और भारत के संविधान का निर्माण होने के बाद जब कानून अमल में आया तब ये व्यवस्था हटाई जा सकी.
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उनमें मुस्लिम लीग का जवाहर लाल नेहरू सरकार का बहिष्कार करना
16 अगस्त 1946 को प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस के रूप में मनाया जाना
26 अक्टूबर 1946 को मुस्लिम लीग अंतरिम सरकार में शामिल हुई
मुस्लिम लीग ने संविधान सभा में शामिल होने से इनकार कर दिया
आजादी से पहले 2 सितंबर 1946 को गठित अंतरिम मंत्रिमंडल में शामिल थे
लॉर्ड माउंटबेटन- अध्यक्ष
मंत्रिमंडल के प्रधान व कार्यकारी परिषद के उपाध्यक्ष- पंडित जवाहर लाल नेहरू
गृह सूचना तथा प्रसारण मंत्री- सरकार वल्लभ भाई पटेल
रक्षा मंत्री - बलदेव सिंह
शिक्षा मंत्री- सी राजगोपालाचारी
उद्योग तथा आपूर्ति मंत्री- डॉ. जॉन मथाई
खाद्य एवं कृषि मंत्री- राजेंद्र प्रसाद
कार्य, खान, बंदरगाह मंत्री- सी. एच. भाभा
श्रम मंत्री- जगजीवन राम
रेलवे मंत्री- आसफ अली
वित्त मंत्री- लियाकत अली खान
कैबिनेट मिशन योजना के प्रावधानों के अनुसार संविधान सभा का गठन नवंबर 1946 में किया था. संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जिनमें से 292 प्रांतों से तथा 93 देशी रियासतों से चुने गए थे और 4 कमिश्ररी क्षेत्र से थे.
संविधान सभा (Constituent Assembly) का पहला अधिवेशन 9 दिसंबर 1946 दिल्ली में हुआ था जिसमें डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को सभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया था.
11 दिसंबर 1946 को हुई बैठक में डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुना गया व बी. एन. राव को संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार के पद पर नियुक्त किया गया. संविधान सभा में कांग्रेस सदस्यों की संख्या 208 थी जबकि मुस्लिम लीग की सदस्य संख्या 73 थी. चूंकि संविधान सभा में मुस्लिम लीग के निर्वाचित सदस्यों की संख्या (73) कांग्रेस (208) की तुलना में कम थी इसलिए उसने संविधान सभा की पहली बैठक से ही, संविधान सभा की कार्यवाहियों का बहिष्कार किया और पाकिस्तान की मांग रखी. 13 दिसंबर 1946 को जवाहर लाल नेहरू ने संविधान सभा में उद्देश्य प्रस्ताव प्रस्तुत कर संविधान के निर्माण का कार्य शुरू किया.
भारत विभाजन योजना के निश्चित होने के बाद भारत और पाकिस्तान का संविधान भी अलग अलग बनना था. अतः संविधान सभा का पुनर्गठन किया गया. मुस्लिम लीग के सदस्य पाकिस्तान चले गए और अब भारत की संविधान सभा में प्रांतों के 296 सदस्यों की जगह 235 सदस्य रह गए थे. देशी रियासत की सदस्य संख्या भी 93 की जगह 89 रह गई. इस तरह कुल सदस्य संख्या 389 से घटकर 324 रह गई.
हैदराबाद रियासत के प्रतिनिधि को छोड़कर, अन्य सभी रियासतों के प्रतिनिधि संविधान सभा में शामिल हुए. इस तरह विभाजन के बाद जबकि देशी रियासतों के प्रतिनिधित्व के अतिरिक्त संविधान सभा का गठन हो चुका था, अल्पसंख्यकों को 235 में से 88 अर्थात 36 फीसदी प्रतिनिधित्व प्राप्त था, अनुसूचित जातियों के भी 33 सदस्य थे.
नेहरू जी जब देश के प्रधानमंत्री बने तब 57 साल के थे, इसके बाद वो लगातार अगले 17 वर्षों तक इस पद पर बने रहे. 1952, 1957, 1962 में तीन बार वे देश के पीएम चुने गए. नेहरू जी ने सबसे पहले यूपी के इलाहाबाद के फूलपुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया.
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1951 में नेहरू ने एक ऐसा कार्यक्रम बनाया जिसका नाम 'टेम्पल्स ऑफ मॉडर्न इंडिया' था... इसमें सड़कें, बांध और पावर प्लांट बनाने के काम शुरू किए जिससे कि गरीबों को रोजगार मिलने के साथ ही देश में आवश्यक सुविधाओं का भी विकास हो... इसी साल देश में पहले परिवार नियोजन कार्यक्रम की घोषणा की गई. इसका मकसद 21वीं शताब्दी की शुरुआत तक जनसंख्या बढ़ोतरी की दर को शून्य तक पहुंचाना था.
1956 में सामंतों के शासन को पूरी तरह खत्म कर दिया गया और उनकी संपत्ति को सरकार ने अपने संरक्षण में ले लिया. लाल क्रांति के अंतर्गत देश में बेरोजगारों की संख्या बढ़ने से होने वाली क्रांति की संभावनाएं भी बढ़ने लगी थी क्योंकि आर्थिक असमानताएं बढ़ रही थीं.
आजादी के बाद नेहरू ने सही मायने में देश को मजबूत बनाने की आधारशिला रखी. देश की सबसे बड़ी समस्या गरीबी की थी. इसके हल के लिए और देश को आगे बढ़ाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाई गईं. इससे भारत में नए युग की शुरुआत हुई..
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भारत में योजना आयोग का गठन किया गया और इसके साथ ही पंचवर्षीय योजना भी लागू हुई. गरीबी, अशिक्षा, उद्योगों का विकास और कृषि पर ध्यान केंद्रित किया गया. पंजाब में भाखड़ा नांगल बांध, उड़ीसा में हीराकुंड बांध, आंध्र प्रदेश में नागार्जुन सागर बांध को बनाकर सिंचाई की परेशानी को दूर किया गया. साइंस और टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देने के लिए 1954 में आणविक ऊर्जा संयंत्र, ट्राम्बे, और 1967 में भाभा आणविक केंद्र बनाया गया. 1951 में आईआईटी की शुरुआत हुई. भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाई.
पहली पंचवर्षीय योजना, विभाजन के बाद जंग के दौर के बाद जो असंतुलन पैदा हुआ था, उस मायने में सफल कही जा सकती है. इस दौरान खाद्यान्न का उत्पादन लक्ष्य से अधिक रहा. मुद्रास्फीति पर काबू पा लिया गया. राष्ट्रीय आय में 18 फीसदी की बढ़ोतरी हुई और प्रति व्यक्ति आय भी 11 फीसदी बढ़ी. पूंजी विनियोग 3600 करोड़ रुपये हुआ. पहली पंचवर्षीय योजना में 44 लाख लोगों को नौकरियां दी गईं. हालांकि, पहली पंचवर्षीय योजना ट्रायल एंड एरर पर आधारित कोशिश थी.
भारत जब बन रहा था तब खेलों के एक आयोजन के लिए भी देश ने रफ्तार पकड़ी... एशियन गेम्स, एशिया में आयोजित होने वाला सबसे बड़ा खेल उत्सव है. पहले एशियाई खेलों का आयोजन 4 मार्च 1951 को नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में हुआ था. पहले एशियाई खेल 4 से 11 मार्च 1951 के बीच नई दिल्ली में आयोजित हुए थे. इसे एशियाड गेम्स के नाम से भी जाना जाता है. एशियाई खेल का नामकरण भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही किया था... एशियाई खेलों के लिए पं. नेहरू ने जो उद्देश्य तय किया था, वह था- सदा आगे... इसका चिह्न उगता हुआ सूर्य है. इसमें कई चक्र आपस में गुंथे हुए हैं.
1949 में ही एशियाई गेम्स फेडरेशन का गठन हुआ था. रिफ्यूजी की समस्या, फंड और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से भारत में सरकार या मंत्रालय ने इसका आयोजन नहीं किया. राजा महाराजाओं, सिविल सेवकों और कुछ दूसरी हस्तियों ने बाहरी मदद के बूते इन गेम्स का आयोजन किया. पहले एशियाई खेलों के लिए पटियाला के महाराजा ने मशाल एवं झंडा दिया था. यह आज भी एशियाई खेलों में जारी है. 11 देशों के 500 एथलीटों ने 57 इवेंट्स में भाग लिया... भारत ने इन खेलों में मजबूत उपस्थिति दर्ज की. फुटबॉल में भारत ने एशिया के हेवीवेट ईरान को पटखनी दी थी... भारत के लेवी पिंटो एशिया के सबसे तेज धावक बने...
ये खेल पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 1950 में होने थे लेकिन तैयारियों में देरी के चलते इन्हें 1951 तक टाल दिया गया था. इन खेलों में भारत ने दूसरा स्थान हासिल किया था. पहले एशियाई खेलों का शुभंकर जंतर-मंतर था. पहले एशियन गेम्स में 15 स्वर्ण जीतकर भारत दूसरे स्थान पर रहा...
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भारत के बनने की कहानी में अभी और भी कई पन्ने बाकी हैं... आगे देखिए देश ने कैसे इंजीनियरों और मैनेजमेंट प्रोफेश्नलों को तैयार करने के लिए आईआईटी और आईआईएम की शुरुआत की... देश के खेत किस तरह हरित क्रांति में खिलखिला उठे? और श्वेत क्रांति ने दूध उत्पादन में देश को अग्रणी बना दिया...
मिलेंगे अगले हिस्से में... कई नए किस्से लेकर... जय हिंद