पिछले कुछ समय से डॉलर (Dollor) के मुकाबले भारतीय रुपये (Indian Currency) में जबर्दस्त गिरावट दखने को मिली है. आलम ये है कि अमेरिकी डॉलर (American Dollar) के मुकाबले भारतीय रुपया 80 के करीब पहुंच गया है. रुपये में गिरावट से दूसरे देशों से आयात (Import) होने वाले सामान महंगे हो जाएंगे. इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ेगा. वहीं देश का एक वर्ग ऐसा भी है. जिनके लिए रुपये में हो रही गिरावट फायदे का सौदा साबित हो सकती है.
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इस वर्ग को फायदा
दरअसल भारत से बड़ी संख्या में लोग अमेरिका में नौकरी करते हैं. चूंकि डॉलर अमेरिकी करेंसी (American Currnecy) है. लिहाजा, वहां नौकरी करने वालों को डॉलर में ही सैलरी (Sallary) मिलती है. मान लिया जाए कि कोई व्यक्ति अपनी सैलरी का कुछ हिस्सा (Dollor) भारत भेजता है. ऐसे में भेजी गई रकम एक्सचेंज (Currency Exchange) के बाद भारतीय रुपये में मिलती है. चूंकि एक डॉलर की वैल्यू भारतीय रुपये के मुताबिक इस वक्त करीब 80 रुपये है. इसलिए आपकी ओर से भेजी गई रकम भी इसी हिसाब से मिलेगी. इसे ऐसे समझें, अगर किसी ने अपने परिवार को 200 डॉलर की रकम भेजी है. तो भारतीय करेंसी के मुताबिक इसकी वैल्यू 16 हजार रुपये होगी. यही अगर डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 60 रुपये होती, तो ये रकम 12000 बैठती. यानी 4 हजार रुपये कम. कुल मिलाकर देश का ये वर्ग रुपये में गिरावट से मुनाफा कमा रहा है.
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क्या कहते हैं आंकड़ें
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट (World Bank Report) की मानें तो साल 2020 में भारतीयों ने रेमिटेंस (Remittance) के तौर पर करीब 83 अरब डॉलर से अधिक रुपया भेजा. जो अगले साल यानी 2021 में बढ़कर 87 अरब डॉलर हो गया. इससे निर्यात (Export) करने वाले भी फायदा होता है. क्योंकि उनके सामान की कीमत डॉलर में मिलती है. हालांकि महंगाई (Inflation) चलते कभी-कभी एक्सपोर्टर (Exporter) को उतना फायदा नहीं मिल पाता है. खाद्य तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स सामान और पेट्रोलियम उत्पादों (Edible Oil, Electronics, Petrolium Products ) को हम दूसरे देश से इंपोर्ट करते हैं. ऐसे में हमें ज्यादा पैसा चुकाना पड़ता है.