बात 16 दिसंबर 1971 की है. आज के बांग्लादेश की राजधानी ढाका (Bangladesh Capital Dhaka) के रेसकोर्स मैदान में पाकिस्तानी सेना को वो शर्मनाक काम करना पड़ा जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में नहीं मिलती...उस दिन पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने भारत के सामने सरेंडर (93,000 Pakistani soldiers surrendered) किया था. ये दुनिया में अब तक का सबसे बड़ा सरेंडर है...इसके साथ ही जन्म हुआ नए देश बांग्लादेश का और भारत को मिली एक ऐसी जीत जो पूरी दुनिया में अपनी तरह की इकलौती है....लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत की इस जीत में इन दिनों यूक्रेन पर हमला कर रहे व्लादिमीर पुतिन के देश रूस (Vladimir Putin Country Russia) का भी बड़ा हाथ था... तब भारत के समर्थन में रूस आधी दुनिया से लड़ गया था.
हुआ यूं था कि बांग्लादेश के मसले पर 1971 में पाकिस्तान ने भारत (Indo-Pakistani War of 1971) पर अटैक कर दिया लेकिन अमेरिका ने उल्टे भारत को ही विलेन कहना शुरू कर दिया. उसके साथ ही UK, फ्रांस, UAE, टर्की, इंडोनेशिया और चीन ने भी पाकिस्तान का सपोर्ट किया. भारत अकेला पड़ता दिख रहा था..इस पर तुर्रा ये कि अमेरिका ने परमाणु हथियारों से लैस अपना सातवां बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजने का ऐलान कर दिया. उस वक्त भारत के पास केवल आईएनएस विक्रांत था जो इस बेड़े के मुकाबले 5 गुना छोटा था. ऐसी स्थिति में सामने आया सोवियत संघ उसने भी प्रशांत महासागर में अपने 10th Operative Battle Group जंगी बेड़े को अमेरिकी बेड़े की तरफ भेज दिया. मजबूरन अमेरिका को पीछे हटना पड़ा और भारत के लिए मैदान साफ हो गया. अब सवाल ये है कि आखिर रूस ने भारत के लिए अमेरिका से जंग मोल लेने की जहमत क्यों उठाई...इसी का जवाब छुपा है आज की तारीख में...
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आज ही के दिन यानी 9 अगस्त 1971 को भारत ने रूस के साथ शांति, शांति, मैत्री और सहयोग की नई संधि की थी...जिसकी बदौलत आज भी जब भारत संकट में होता है तो रूस हमारे साथ खड़ा दिखता है.
9 अगस्त 1971 की सुबह-सुबह सोवियत संघ के विदेश मंत्री अंद्रेई ग्रोमिको (Soviet Union Foreign Minister Andrei Gromyko) का फ्लाइट दिल्ली में लैंड हुआ. तब पूरी दुनिया को नहीं पता था कि इस फ्लाइट की लैंडिंग दुनिया में ऐतिहासिक परिवर्तन लाने वाली है. ग्रोमिको के भारत आने का मसौदा पहले ही तैयार हो चुका था. दिनभर चली वार्ता के बाद शाम को ग्रोमिको ने तब के भारतीय विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह (Indian Foreign Minister Sardar Swaran Singh) के साथ सोवियत-भारत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए. यह संधि दोनों देशों के दोस्ताना संबंधों में एक मील का पत्थर बन गई.
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इस संधि के तुरंत बाद सोवियत संघ ने ऐलान किया था कि भारत पर हमला उसके ऊपर हमला माना जाएगा. यही वह कारण है कि 1971 युद्ध के दौरान अमेरिकी नौसैनिक बेड़े को भारत के ऊपर हमला करने की हिम्मत नहीं हुई. दोनों देशों के संबंधों की ताकत इतनी थी कि इसने तत्कालीन विश्व के समीकरण में आमूल परिवर्तन कर दिए. इसने न केवल दक्षिणी एशिया बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देशों की विदेश नीति को भी प्रभावित किया था.
वैसे भारत-रूस के बीच इस इस पक्की वाली दोस्ती की शुरुआत 1947 में ही हो गई थी. बात तब की है जब भारत को आजादी मिले 4 महीने गुजर गए थे और भारत दुनिया में अपना कोई असली दोस्त ढूंढ रहा था.
फिर तारीख आई 21 दिसम्बर 1947, दिन था- रविवार. एक रूसी पति-पत्नी अपने बच्चों को लिए दिल्ली हवाईअड्डे पर उतरे. उनका नाम था- किरिल नोविकोव (Kirill Novikov ). इन्होंने ही भारत और रूस के अटूट रिश्ते की नींव रखी. वे आजाद भारत के पहले रूसी एंबेसडर थे. किरिल 7-8 सालों से अधिक समय तक भारत में रहे और दोनों देशों की दोस्तों की दोस्ती को परवान चढ़ाते रहे. इसी बीच 1962 में पाकिस्तान ने यूएन सुरक्षा परिषद में कश्मीर का मुद्दा उठाया. तब सोवियत संघ ने वीटो करके पाकिस्तान और अमेरिका को बैकफुट पर ला दिया.
इसी दौर का एक और दिलचस्प वाक्या है. वो तारीख थी- 27 मार्च 1960. तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को रूस की सरकार ने एक गाय गिफ्ट की. जब सोवियत राजदूत इवान बेनेडिक्टोव ने गाय की रस्सी नेहरू को थमाई तो वो तुरंत उसे चारा खिलाने लगे. बहरहाल दोस्ती की ये गाड़ी आगे बढ़ने लगी. साल 1966 में भारत सरकार ने तय किया कि अब अगर देश को आगे बढ़ाना है तो उसे स्टील प्लांट लगाना ही पड़ेगा पर तब हमारे पास प्लांट लगाने के लिए पर्याप्त व्यवस्था न थी. भारत ने दोस्त रूस की ओर देखा, उसने तुरंत खास मदद भेजने का ऐलान कर दिया.
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नतीजा ये हुआ कि रूस के सहयोग से तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (indira Gandhi) ने बोकारो स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant) की आधारशिला रखी. इसके बाद साल 1971 में भारत (India) को लगा कि पाकिस्तान (Pakistan) से युद्ध का खतरा पैदा हो गया है. तब भी इंदिरा ने रूस की ओर ही देखा. रून ने भी निराश नहीं किया और उस ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किया जिसकी बदौलत आज भी भारत-रूस की बेहद खास दोस्ती कायम है. इस समझौते की पहली परीक्षा तुरंत ही हो गई.
भारत-पाक युद्ध के बीच यूएन सिक्योरिटी काउंसिल में भारत के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया. काउंसिल के देशों ने भारत से युद्ध विराम करने को कहा लेकिन तब रूस ने तुरंत ही वीटो करके उसे रोक दिया.
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इस के बाद तारीख आई 27 नवंबर 1986 की. तब दिल्ली आए थे सोवियत नेता मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev India Visit). उन्होंने और राजीव गांधी ने एक ऐसे समझौते पर हस्ताक्षर किया जिससे अमेरिका और यूरोप सन्न रह गए. इस समझौते को दुनिया दिल्ली डिक्लयरेशन (Delhi Declaration) के नाम से जानती है. तब राजीव का हाथ थामे मिखाइल गोर्बाचेव ने कहा था अगर भारत की अखंडता और एकता पर कोई भी खतरा पैदा हुआ तो सोवियत संघ चुप नहीं बैठेगा. उनकी अगली लाइनें थीं - हम अपनी विदेश नीति में एक कदम भी ऐसा नहीं बढ़ाएंगे जिससे भारत के वास्तविक हितों पर चोट पहुंचती हो. सोवियत संघ के विघटन के बाद भी दोस्ती की ये गांठ कमजोर नहीं हुई.
साल 1993 में एक बार फिर भारत-रूस के बीच 1971 जैसा ही समझौता हुआ. इन समझौतों की अहमियत इसी से समझी जा सकती है कि आज भारत के अधिकांश हथियार रूसी ही हैं. भारत ने रूस से पनडुब्बियां और नौसेना के जहाज भी लीज पर ले रखे हैं. जब पहला भारतीय अंतरिक्ष में गया तो वो रॉकेट भी रूस का ही था. आज जब भारत जब पहले स्वदेशी विमान में अपने अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में भेजना चाहता है तो उसके लिए ट्रेनिंग भी रूस ने ही दी है. दोनों देशों के बीच दोस्ती की स्थिति ये है कि दुनिया कहती है कि अगर भारत को कांटा चुभता है तो दर्द रूस को होता है.
अब चलते-चलते 9 अगस्त को हुई दूसरी अहम घटनाओं पर भी निगाह डाल लेते हैं.
1831 : अमेरिका में पहली बार स्टीम इंजन ट्रेन चली
1925 : क्रांतिकारियों ने काकोरी में एक ट्रेन लूट ली. इसमें ब्रिटिश सरकारी खजाना था.
1945 : अमेरिका ने जापान के नागासाकी शहर पर परमाणु बम (Atomic bombings of Nagasaki) गिराया
1970 : देश के महान स्वतंत्रता सेनानी त्रिलोकीनाथ चक्रवर्ती (Trailokyanath Chakraborty) का निधन
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