यह कहना खतरनाक कि लोक कल्याण के लिए निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता': सुप्रीम कोर्ट

Updated : Apr 25, 2024 10:55
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Editorji News Desk

उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि संविधान का उद्देश्य 'सामाजिक बदलाव की भावना' लाना है और यह कहना 'खतरनाक' होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को ‘समुदाय का भौतिक संसाधन’ नहीं माना जा सकता और 'सार्वजनिक भलाई' के लिए राज्य प्राधिकारों द्वारा उस पर कब्जा नहीं किया जा सकता.

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-सदस्यीय संविधान पीठ ने ये टिप्पणी की.पीठ इस बात पर गौर कर रही है कि क्या निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को 'समुदाय का भौतिक संसाधन' माना जा सकता है.

इससे पहले मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (पीओए) सहित विभिन्न पक्षों के वकील ने जोरदार दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 39(बी) और 31सी की संवैधानिक योजनाओं की आड़ में राज्य अधिकारियों द्वारा निजी संपत्तियों पर कब्जा नहीं लिया जा सकता है.

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पीठ विभिन्न याचिकाओं से उत्पन्न जटिल कानूनी प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत 'समुदाय का भौतिक संसाधन' माना जा सकता है. संविधान का अनुच्छेद 39(बी) राज्य नीति निर्देशक तत्वों (डीपीएसपी) का हिस्सा है.

पीठ ने कहा, 'यह कहना थोड़ा अतिवादी हो सकता है कि 'समुदाय के भौतिक संसाधनों' का अर्थ सिर्फ सार्वजनिक संसाधन हैं और उसकी उत्पत्ति किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति में नहीं है.मैं आपको बताऊंगा कि ऐसा दृष्टिकोण रखना क्यों खतरनाक है.

’’पीठ ने कहा, 'खदानों और निजी वनों जैसी साधारण चीजों को लें.उदाहरण के लिए, हमारे लिए यह कहना कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत सरकारी नीति निजी वनों पर लागू नहीं होगी... इसलिए इससे दूर रहें.यह बेहद खतरनाक होगा.’’ पीठ में न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा, न्यायमूर्ति राजेश बिंदल, न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल थे.

पीठ ने 1950 के दशक की सामाजिक और अन्य प्रचलित स्थितियों का जिक्र करते हुए कहा, 'संविधान का मकसद सामाजिक बदलाव लाना था और हम यह नहीं कह सकते कि निजी संपत्ति पर अनुच्छेद 39(बी) का कोई उपयोग नहीं है.

'पीठ ने कहा कि अधिकारियों को जर्जर इमारतों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देने वाला महाराष्ट्र कानून वैध है या नहीं, यह पूरी तरह से भिन्न मुद्दा है और इस पर अलग से विचार किया जाएगा. सुनवाई पूरी नहीं हुई और यह बृहस्पतिवार को भी जारी रहेगी.

Supreme Court

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