झारखंड की 81 में से 47 विधानसभा सीटों पर जीत दर्ज कर पांच साल बाद सत्ता में लौटे हेमंत सोरेन (Hemant Soren) तीन साल बाद ही मुश्किल में फंस गए हैं. हाल ही में ये आरोप लगा कि बीजेपी ‘ऑपरेशन लोटस’ (Operation Lotus ) के जरिए उनकी सरकार गिराना चाहती है लेकिन तब समय रहते झारखंड के CM और उनकी सहयोगी कांग्रेस एक्टिव हुई औऱ सरकार बच गई...लेकिन अब हेमंत सोरेन की कुर्सी लाभ का पद (Office Of Profit) मामले में फंस गई. आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर हेमंत सोरेन फंसे कैसे ?
कैसे फंस गए हेमंत सोरेन?
RTI एक्टिविस्ट शिव शर्मा ने उनके खिलाफ दो PIL दायर की
CBI और ED से माइनिंग घोटाले की जांच कराने की मांग की
CM सोरेन पर अपने पद का दुरुपयोग करने का आरोप लगा
स्टोन क्यूएरी माइंस अपने नाम आवंटित करवाने का आरोप
सोरेन परिवार पर शैल कंपनी में निवेश कर पैसे बनाने का आरोप
मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने की
जनप्रतिनिधि अधिनियम-1951 की धारा 9A के उल्लंघन का आरोप
इसी मामले में राज्यपाल के आग्रह पर चुनाव आयोग ने लाभ के पद के मुद्दे पर मुख्यमंत्री सोरेन का जवाब मांगा और जांच के बाद अपनी सिफारिश राज्यपाल को भेज दी. अब ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर लाभ के पद या ऑफिस ऑफ प्रॉफिट होता क्या है?
क्या है 'लाभ का पद'
ये कानून सभी सांसदों और विधायकों पर लागू होता है
वे दूसरी जगह से वेतन या भत्ता नहीं ले सकते
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से कहीं और से फायदे नहीं ले सकते
जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा 9 (A) में है ये प्रावधान
दोषी ठहराए पर अपील के लिए तीन महीने का समय मिलता है
मामले का निपटारा होने तक वो पद के लिए अयोग्य नहीं होंगे
अब देखना ये है कि हेमंत सोरेन का अगला कदम क्या होगा ? क्या वो झारखंड में लालू यादव (Lalu Yadav) की तरह राबड़ी देवी (Rabri Devi) वाला प्रयोग दोहराएंगे. क्या झारखंड को कल्पना सोरेन के तौर पर नया मुख्यमंत्री मिलेगा या फिर हेमंत सोरेन खुद ही दोबारा विधायक दल के नेता चयनित होकर CM बने रहेंगे?