Kargil Vijay Diwas 2022: करगिल युद्ध (Kargil War) के दौरान मेजर सोनम वांगचुक ने अपने सैनिकों की न सिर्फ मदद की बल्कि एरिया रॉक फॉल में पाकिस्तानी सेना को भी पटखनी दी. आइए जानते हैं महावीर चक्र विजेता सोनम वांगचुक की बहादुरी के किस्से को...
30 मई 1999... बीएसएफ बेस कैंप, हनडंगब्रोक, बटालिक... आज सुबह से रेडियो सेट तीसरी बार बज चुका है. मग में गरमा गरम लांगर चाय पीते सोनम अपना मग एक तरफ रखकर रिसीवर उठाते हैं... साहब, दुश्मन का फायर और तेज हो गया है. आप नहीं आए तो हम जिंदा नहीं बचेंगे. रेडियो सेट से आ रही आवाज को साफ साफ सुन पाना मुश्किल हो रहा था.
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सोनम यह नहीं समझ पाए कि ये आवाज उनके किस साथी की थी. लेकिन वह आवाज के पीछे छिपी घबराहट को पहचान पा रहे थे. उन्हें ऐसा लगा मानों यह आवाज उनके साथी रहे हवलदार सोनम रिगजिन की है... सोनम ने फौलादी आवाज में जवाब दिया... चिंता मत करो, मैं आ रहा हूं...
सोनम अपने कमांडिग अफसर कर्नल चंडोक की इजाजत लेकर मिशन पर निकल पड़ते हैं. आगे सोनम जिस मुहिम को कामयाब बनाते हैं उसे भविष्य ऑपरेशन रॉक फॉल के नाम से जानता है. 26 जुलाई को ही करगिल युद्ध का अंत हुआ था. आज इस मौके पर आइए आज झरोखा में भारतीय सेना की जांबाज टुकड़ी की दिलेरी की बात करेंगे जिसका नेतृत्व सोनम वांगचुक कर रहे थे...
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2020 में रचना सिंह बिष्ट की किताब कारगिल आई. इसमें पूरे ऑपरेशन का उल्लेख सिलसिलेवार तरीके से किया गया है. 30 मई 1999 को दोपहर 12 बजे सोनम कैंप से बाहर निकले... उनके साथ 3 जीओसी और 25 दूसरे रैंक के जवान थे. उनके साथ दूसरी यूनिट की एमएमजी टुकड़ी भी थी. जवानों ने सड़क से लेकर ग्लेशियर तक की दूरी तय की. सिपाहियों की पीठ पर रसद रखनेवाला मजबूत किरमिच का थैला, 30 किलो गोला-बारूद था. इसके अलावा झोले में ठंड से बचाने वाली जैकेट्स, सोनेवाले बैग, जुराबें, खाने-पीने की चीजें थीं.
सालों बाद इस वाकये को याद करते हुए कर्नल वांगचुक ने बताया था कि तब हम इतनी जल्दी में थे कि हम घुटने छूती बर्फ में दौड़ रहे थे. दिमाग में बस एक ही ख्याल था, कि मेरे लोगों को कुछ होने न पाए. उस दौरान लद्दाखी जवान तो वांगचुक के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रहे थे लेकिन गैर लद्दाखी जवान जिनमें एमएमजी टुकड़ी का गठन हुआ था, वे इस ग्लेशियर वाली तराई से अनजान थे... लिहाजा उनकी रफ्तार धीमी थी और इस वजह से मेन यूनिट को देरी हो रही थी.
2 घंटे में सभी एक यू आकारवाली चोटी के मुहाने पर पहुंच गए. बाईं ओर एलओसी था जहां पाकिस्तानी बैठे हुए थे. अब वांगचुक ने साथी जवानों की गिनती की तो उन्हें सिर्फ 4 ही मिले. बाकी जवान 800 मीटर पीछे थे.
सोनम ने इस उम्मीद में आगे बढ़ने का फैसला किया कि बाकी जवान भी जल्द उन तक पहुंच जाएंगे. जब सोमन की टीम दुश्मनों से घिरी अपनी पुरानी टीम से करीब 700 मीटर दूर थी, तब उन्होंने दुश्मन की फायरिंग की आवाज सुनी. जल्द ही सोनम और उनके साथियों के आसपास की बर्फ उड़ने लगी जिसका मतलब था कि गोलियों का निशाना उनके बेहद पास था. सोनम ने अपने साथियों से जमीन पर लेटने और कवर लेने का आदेश दिया. इतने में एक चीख सुनाई दी.
हवलदार छेवांग रिगजिन के सीने में गोली लगी थी. बाकी जवान उन्हें खौफ में देख रहे थे. गिरते हुए सिपाही के शरीर का गहरे लाल रंग का खून बर्फ में चारों तरफ फैल गया. जवान बर्फ में घिसटते हुए उन तक पहुंचे और उनके नीचे एक कपड़ा फैला दिया, लेकिन रिगजिन के शरीर से बहुत तेजी से खून बह रहा था.
वह लगातार कह रहे थे, साहब बहुत ठंड लग रही है. वांगचुक के साथी सैनिक उन्हें कंबल में लपेटने के अलावा कुछ नहीं कर सकते थे. हवलदार रिगजिन करीब आधा घंटे तक जिंदा रहे. उनके साथी नम आंखों से उन्हें मरता देखने के लिए मजबूर थे. दुख की इस घड़ी में भी उन्हें सिर नीचे झुकाकर रखने थे, ताकि वे दुश्मन की गोली का शिकार न बन जाएं.
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दुश्मन की गोलीबारी जैसे अचानक शुरू हुई थी, वैसे ही अचानक बंद भी हो गई. तब तक रिगजिन शहीद हो चुके थे. एक जवान को रिगजिन के पास छोड़ा गया जबकि दूसरे को यह पता लगाने के लिए भेजा गया कि बाकी जवान अभी कहां तक पहुंचे हैं. उन्हें दुश्मनों के पीछे वाले एक दूसरे रास्ते से आने के लिए कहा गया, ताकि दुश्मन को घेरा जा सके.
सोनम और हवलदार नंबर 11 (नवांग रिगडोल) यह पता लगाने के लिए आगे बढ़ते रहे कि आखिर दुश्मन ने गोलीबारी क्यों रोक दी? उन्हें बाद में जाकर पता चला कि पाकिस्तानी सैनिकों का गोला-बारूद भी खत्म हो गया था और वे उसे लेने नीचे चले गए थे. इससे सोनम को अपनी असहाय पेट्रोलिंग टीम के पास जाने का वक्त मिल गया. वे दुश्मन से बचने के लिए खुद को छिपाए बैठे थे.
रात साढ़े 10 बजे दुश्मन की गोलीबारी फिर शुरू हो गई और इस वजह से सोनम पहाड़ी पर चढ़ नहीं पा रहे थे. सोनम समझ गए थे कि दुश्मन उनपर नजर रखे हुए है. वह ये भी जानते थे कि जो भी पहाड़ पर पहले चढ़ेगा, वही हावी हो जाएगा. वह जानते थे कि दुश्मन भी पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश में हैं.
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आधी रात को चांद जब काले बादलों में छिप गया और दुश्मन घने अंधेरे में देख नहीं सकता था, तब सोनम के 11 साथी ऊपर चढ़ना शुरू कर देते हैं. पाकिस्तानी अभी बेस कैंप से गोलीबारी कर रहे थे और लद्दाख स्काउट्स के जवान पहाड़ पर चढ़ चुके थे. सोनम की टीम चुपचाप दुश्मन के एक कैंप का पता लगाती हैं, जो उनकी वर्तमान पोजिशन से 40 मीटर नीचे की ओर था. वहां 3 संतरी थे और उन संतरियों ने सफेद रंग का छलावरण पहना हुआ था. राइफलें भी सफेद रंग के कपड़े से ढंकी हुई थी जिस वजह से उन्हें ढूंढ पाना मुश्किल हो जा रहा था.
इस बीच सोनम की पार्टी एमएमजी टुकड़ी, जो पीछे छूट गई थी, वह दूसरी ओर से पहुंच गई और पाकिस्तानी दोनों लद्दाखी टीमों के बीच फंस गए. लद्दाखी जवानों ने अपनी मशीनगनों से नीचे बने दुश्मन के कैंप पर जोरदार फायरिंग की. यह गोलीबारी पुरी रात और 31 मई की दोपहर तक चलती रही, जब तक कि दुश्मनों के हौंसले पस्त नहीं हो गए.
जल्दी ही लद्दाख स्काउट्स के पास गोला बारूद खत्म हो गया. उन्होंने ढलान से दुश्मनों के टेंट पर बड़े बड़े पत्थर फेंकने शुरू किए. दुश्मन के संतरी, जो टेंट के अंदर थे पत्थर की चपेट में आकर मारे गए. लद्दाखी स्काउट्स ने चोटी पर पाकिस्तान की 4 पोस्ट पर कब्जा कर लिया, लेकिन गोला बारूद के अलावा उनके पास खाने पीने की चीजें भी नहीं बची थीं. रेडियो सेट भी टूट चुके थे इसलिए सोनम ने अतिरिक्त सैन्य साजो सामान के लिए नीचे उतरकर हनडंगब्रोक जाने का फैसला किया.
मैले कुचले कपड़े, थके और भूख से बिलबिलाए सोनम और राइफलमैन कादिर जब कैंप पहुंचे तो रात के 11 बज चुके थे. मेजर सोनम ने रिज लाइन से दुश्मनों को हटाने की जानकारी दी तो मेजर कटोच के चेहरे पर मुस्कान खिल गई. उन्होंने सोनम और कादिर को गले लगाया. सोनम ने कहा कि वे गोला-बारूद और राशन लेने आए हैं. लेकिन पहले खुद कुछ खाना चाहेंगे क्योंकि वह भूख से तड़प रहे हैं.
दोनों को गरमागरम चाउमीन दी गई और योद्धाओं ने चॉप स्टिक से उन्हें जी भरकर खाया. भरे हुए मग में तेज चीनी वाली गरमागरम चाय पीकर वे फिर से दहाड़ने के लिए तैयार हो गए थे. उन्होंने एरिया रॉक फॉल में ट्रैक करने का फैसला किया. तीन मजबूत खच्चरों पर गोला बारूद, राशन और दवाएं लाद दी गईं. अब 7 और जवान उनके साथ थे. सुबह 5 बजे वे अपने साथियों के पास पहुंच गए.
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अगले 14 दिन सोनम और उनके साथी वहीं पेट्रोलिंग करते रहे. दूसरी तरफ पाकिस्तानी सेना भी पेट्रोल कर रही थी लेकिन उन्होंने दोबारा घुसपैठ की कोशिश नहीं की. टेंट में दबकर मारे गए दुश्मनों के 3 सैनिकों के मृत शरीर, आई कार्ड और घर से आई चिट्ठियों को भारतीय सेना ने कब्जे में ले लिया. जिससे यह साबित किया जा सके कि वे पाकिस्तानी सेना के ही सिपाही थे. 14 सिख बटालियान को दिल्ली से बुला लिया गया और तैनात कर दिया गया. 14 जून को सोनम हनडंगब्रोक लौट आए. उनका काम पूरा हो चुका था.
उन्हें 7 दिन की कैजुअल लीव दी गई. वे अब लेह की ओर रुख कर रहे थे. हाद में अफसरों के मेस में उन्हें इंडिया टुडे की कॉपी दिखाई गई जिसमें ऑपरेशन रॉक फॉल पर लेख छपा था. इसमें बताया गया था कि सोनम के नाम की सिफारिश महावीर चक्र और उनके 3 साथियों की सिफारिश वीर चक्र के लिए की गई है.
सोनम ने गरम पानी मिली रम पीते हुए वह आर्टिकल पढ़ा और अगली सुबह लेह के लिए निकल गए. सोनम की पत्नी ने जब उन्हें घर आता देखा, तो राहत के मारे उनकी आंख से आंसू बह निकले. वह पिछले कई दिनों से परिवार के संपर्क में नहीं थे. सोनम के बूढ़े माता-पिता और बहनें उनके लिए लगातार दुआएं कर रहे थे. वे उन्हें गले लगाने के लिए दौड़ पड़े. 1 साल के बेटे रिगयाल ने उन्हें बड़ी बड़ी मासूम आंखों से देखा और खूब खुश हुआ. सोनम अपने बेटे के जन्मदिन 11 जून को घर पर नहीं थे. उन्होंने बेटे को गोद में लिया और सीने से चिपका लिया. उन्हें यह सोचकर राहत मिली कि वह उन लोगों के लिए सही सलामत वापस लौट आए हैं, जिन्हें वह दुनिया में सबसे ज्यादा प्यार करते हैं.
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर एक नजर डाल लेते हैं
1865 – कवि और संगीतकार रजनीकांत सेन का जन्म हुआ
1892 – ब्रिटेन की संसद में दादाभाई नौरोजी पहले भारतीय सदस्य चुने गए
2005 – मुंबई में 24 घंटे में 99.5cm की बारिश से 5 हजार से ज्यादा की मौत
2008 – अहमदाबाद बम धमाकों में 56 लोगों की मौत हुई, 200 घायल हुए