देश में एक से ज्यादा पत्नियां (Wife) रखने के आरोप भले ही मुसलमानों (Muslim) पर लगते हों. लेकिन आंकड़ें कुछ और ही गवाही दे रहे हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey) यानी NFHS रिपोर्ट के आंकड़ों की मानें तो देश में एक से अधिक पत्नी रखने या शादी करने के मामले में दूसरे समुदाय (Community) के लोग भी पीछे नहीं हैं. मगर निशाने पर अक्सर मुस्लिम समुदाय ही होता है.
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असल में इसके पीछे आम धारणा यह है कि एक से ज्यादा पत्नी रखना या शादी करना इस्लाम (Islam) में कानून सम्मत है. यहां पुरुषों को एक से ज्यादा और कम से कम चार शादियां करने की छूट है और इसके लिए कुरान (Quran) और हदीस का हवाला दिया जाता है. लेकिन सच्चाई ये नहीं है. कुरान और हदीस में भी ऐसा विशेष परिस्थितियों में ही करने की इजाजत देता है. मतलब साफ है कि वहां भी बंदिशें हैं. लेकिन निशाने पर अक्सर मुस्लिम समुदाय आ जाते हैं. जबकि हकीकत के आईने में कुछ और ही तस्वीर सामने आती है.
मुंबई (Mumbai) के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज (International Institute of Population Studies) के फैकल्टी की तरफ से तीन NFHS सर्वे के आंकड़ों के विश्लेषण में चौंकाने वाले नतीजे सामने आए हैं. भारत में बहुविवाह (Polygamy) 2005-06 में 1.9 फीसदी से से घटकर 2019-20 में 1.4 फीसदी रह गया है. यानी हर गुजरते वक्त के साथ इस प्रचलन में गिरावट दर्ज की गई है.
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सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक बहुविवाह के लिए सिर्फ धर्म को ही जिम्मेदार मानना कतई ठीक नहीं है. इसके पीछे कई और कारण जिम्मेदार होते हैं. मसलन शिक्षा (Education), जाति (Cast), गरीबी (Poverty) और भौगोलिक परिवेश (Geographical Environment) भी इसमें अहम भूमिका निभाते हैं.
अगर धर्म के हिसाब से बात की जाए तो हिंदुओं में बहुविवाह का प्रचलन 1.3 फीसदी, मुसलमानों में 1.9 फीसदी, ईसाई में 2.1 फीसदी, सिख (Sikh) में 0.5 फीसदी, बौद्ध (Buddhist) में 1.3 फीसदी और अन्य में 2.5 फीसदी है. रिपोर्ट के मुताबिक ईसाइयों (Christians) में सबसे ज्यादा बहुविवाह पूर्वोत्तर (North East) राज्यों की वजह से हो सकता है. इन राज्यों में बहुविवाह की प्रथा आम बात है. रिपोर्ट की मानें तो अधिक जनजातीय आबादी वाले नॉर्थ-ईस्ट राज्यों में बहुविवाह करने वाली महिलाओं का अनुपात सबसे ज्यादा है. ये मेघालय (Meghalaya) में 6.1 फीसद से लेकर त्रिपुरा (Tripura) में 2 फीसदी तक है.
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अगर जाति के हिसाब से बात की जाए तो अनुसूचित जनजातियों (Scheduled Tribe) में बहुविवाह की प्रथा सबसे ज्यादा प्रचलित है. हालांकि इन जातियों में बहुविवाह 2019-20 में कम होकर 2.4 फीसदी रह गया है. साल 2005-06 में यह आंकड़ा 3.1 फीसदी था. इसी तरह अनुसूचित जाति (Scheduled Caste) में बहुविवाह 2005-06 में 2.2 फीसदी के मुकाबले 2019-20 में 1.5 फीसदी कम है. इसी तरह ओबीसी (OBC) में बहुविवाह की प्रथा साल 2005-06 में 1.8 फीसदी था. जो 2019-20 में कम होकर 1.3 फीसदी रह गया है. यानी ज्यादा आदिवासी आबादी वाले राज्य में बहुविवाह का प्रचलन सबसे अधिक है.
NFHS-5 रिपोर्ट के मुताबिक अशिक्षित लोगों में बहुविवाह के आंकड़ें 2.4 फीसदी है. प्राइमरी तक शिक्षा (Primary Education) हासिल करने वालों में 2.1 फीसदी, सेकेंडरी तक शिक्षित (Secondary Education) लोगों में 0.9 फीसदी और उच्च शिक्षा (Higher Education) हासिल करने वाले वर्ग में करीब 0.3 फीसदी लोगों में बहुविवाह की प्रथा प्रचलित हैं. इसी तरह आर्थिक (Economic) तौर पर मजबूत लोगों में बहुविवाह का प्रतिशत महज 0.5 है. तो वहीं सबसे गरीब वर्ग में यह आंकड़ा 2.4 है. यानी बहुविवाह के लिए गरीबी भी एक प्रमुख कारण है.
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NFHS-5 के आकंड़ों के मुताबिक तेलंगाना, ओडिशा और तमिलनाडु (Telangana, Odisha and Tamil Nadu) जैसे राज्यों में हिंदुओं में बहुविवाह की प्रथा ज्यादा प्रचलित है. वहीं जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और पंजाब (Jammu and Kashmir, Haryana and Punjab) जैसे राज्यों में कम है. इसी तरह ओडिशा, असम (Assam), पश्चिम बंगाल (West Bengal) जैसे राज्यों में मुसलमानों के बीच बहुविवाह का प्रचलन अधिक है. तो वहीं जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र (Maharashtra) और हरियाणा (Haryana) जैसे राज्यों में कम है.
NFHS-5 की रिपोर्ट के मुताबिक ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों में हिंदु और मुसलमानों की तुलना में अन्य में बहुविवाह की प्रथा अधिक प्रचलित है. इसी तरह दक्षिणी राज्यों और पूर्व में मसलन बिहार (Bihar), झारखंड (Jharkhand), ओडिशा और पश्चिम बंगाल में उत्तर भारत की तुलना में बहुविवाह का प्रचलन अधिक है.
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सर्वे रिपोर्ट की मानें तो कुल मिलाकर, गरीब, अशिक्षा, ग्रामीण और अधिक उम्र वालों में बहुविवाह अधिक पाया गया. रिपोर्ट से ये संकेत भी मिलते हैं कि क्षेत्र और धर्म के अलावा सामाजिक-आर्थिक कारकों ने भी एक से ज्यादा विवाह में अहम भूमिका निभाई है. हालांकि भारत में बहुविवाह का प्रचलन कम था, जो अब लुप्त होने की कगार पर है.