23 जून 1661 को ही 7 टापुओं वाला बंबई ब्रिटेन के शाही परिवार के पास आया था. 1661 में शासक अल्फोंसस VI ने अपनी बहन प्रिंसेस केथरीन की शादी इंग्लैंड के राजा से की और बंबई के द्वीप को ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय को दहेज के तौर पर दे दिया. इस समझौते को Marriage Treaty, या Anglo-Portuguese Treaty के नाम से जाना गया... इस लेख में हम मुंबई के इसी इतिहास को जानेंगे...
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1 सितंबर 1668 को 'कॉन्स्टेंटिनोपल मर्चेंट' नाम का एक जहाज ( Constantinople Merchant ) सूरत के बंदरगाह पर पहुंचता है. इस जहाज के जरिए 27 मार्च 1668 के रॉयल चार्टर ( Royal Charter of 27 March 1668 ) की एक कॉपी लाई गई थी... तब ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय सूरत ( East India Company Headquarter in Surat ) में ही था...
रॉयल चार्टर ही वह आधिकारिक दस्तावेज था जिसमें इस बात की मुहर थी कि बॉम्बे का बंदरगाह और द्वीप अब अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कंपनी के हवाले होगा... ईस्ट इंडिया कंपनी को इसके ऐवज में हर साल 30 सितंबर की तारीख के दिन 10 पाउंड की कीमत अदा करनी थी... यहीं से शुरू होता है तब के बॉम बाहिया से आज की मुंबई बनने का सफर... जो आज भारत की आर्थिक राजधानी है और यह देश के सबसे बड़े महानगरों में से एक महानगर भी... आज झरोखा में हम बॉम्बे के इतिहास के इसी पन्ने को पलटेंगे...
बंबई में ब्रिटिश काल की शुरुआत 1661 से होती है. 1661 में ही पहली बार 7 टापुओं का यह शहर आधिकारिक तौर पर इंग्लैंड के शाही परिवार के पास गया था... इससे पहले गुजरात के शासक ने 1534 में बंबई द्वीप को पुर्तगालियों को सौंप दिया था. तब से यहां का शासन पुर्तगाली तरीके से चल रहा था. 1661 में शासक अल्फोंसस VI ने अपनी बहन प्रिंसेस केथरीन की शादी इंग्लैंड के राजा से की और बंबई के द्वीप को ब्रिटिश सम्राट चार्ल्स द्वितीय को दहेज के तौर पर दे दिया. इस समझौते को Marriage Treaty, या Anglo-Portuguese Treaty के नाम से जाना गया... ये समझौता 23 जून 1661 को ही पूरा हुआ था...
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ब्रिटिश सम्राट ने 1668 में एक चार्टर के तहत बंबई को 10 पौंड सालाना लगान के बदले ईस्ट इंडिया कंपनी को सौंप दिया था... नक्शे में ठाणे और कुछ दूसरे इलाकों को मुंबई का हिस्सा बताया गया था, इसके अलावा कुछ दूसरे इलाकों को लेकर भी विवाद था... इसी पर आम राय बनाने में 6 साल लग गए... इसके बाद 27 मार्च 1668 को चार्ल्स ने मुंबई पर अपना दावा करते हुए ईस्ट इंडिया कंपनी को इसके मालिकाना हक सौंप दिये.
आदिम काल में 7 टापुओं के इस शहर में आदिवासी ही रहा करते थे... इसके बाद कोली और एक मराठी-कोंकणी लोगों ने यहां ठिकाना बनाया... मौर्य साम्राज्य ने तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान इसे अपने नियंत्रण में लिया और इसे हिंदू-बौद्ध संस्कृति और धर्म के केंद्र में बदल दिया. बाद में, दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 10 वीं शताब्दी तक यह जगह कई राजवंशों के हाथ से होकर गुजरी... इसमें सातवाहन, अभिरस, वाकाटक, कलचुरी, कोंकण मौर्य, चालुक्य, राष्ट्रकूट, सिलहार और चोल अहम रहे.... फिर आया इस्लामिक काल और पुर्तगाली शासन....
पुर्तगाल के शाही परिवार से ब्रिटेन के शाही परिवार के नियंत्रण में आने के बाद, जब इसे कंपनी को सौंपा गया... तब यहां 7 टापू थे, इनके नाम बॉम्बे, मझगांव, परेल, वर्ली, माहिम, लिटिल कोलाबा या ओल्ड वुमन आइलैंड और कोलाबा थे. इन टापुओं के बीच थे छोटे छोटे पहाड़... रेत के सपाट मैदान, मैंग्रोव के जंगल और नमक के खेत... इन टापुओं के बीच तीन बड़े दर्रे थे जिनसे होकर समंदर का पानी बहता रहता था... जब पानी घटता था, तो वह खारे पानी का दलदल छोड़ जाता था...पानी कम होने पर बॉम्बे से मझगांव पहुंचना मुमकिन हो पाता था लेकिन बाकी टापुओं के बीच गहराई ज्यादा होने की वजह से वहां पर आने जाने के लिए नाव का ही सहारा लेना पड़ता था...
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1534 से ये द्वीप पुर्तगाली क्षेत्र का हिस्सा थे. पुर्तगालियों ने इनका इस्तेमाल खेती के लिए किया और टापुओं को पार करने के लिए कुछ रास्तों को बनाने के सिवा कोई बड़ा काम नहीं किया....पुर्तगाली इस शहर को बॉम बाहिया (Bom bahia) कहते थे जिसका मतलब था 'the good bay' (एक अच्छी खाड़ी). अंग्रेजों ने इसे सबसे पहले बॉम्बे कहना शुरू किया...
हालांकि, इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी के इरादे दूरगामी सोच से भरे थे... उसके लिए ये द्वीप बड़े राजनीतिक और आर्थिक हितों से भरे हुए थे... 1627 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से इसे पुर्तगालियों से छीनने की कोशिश की थी, लेकिन ये कोशिश नाकाम रही... ईस्ट इंडिया कंपनी को जब ये द्वीप मिला तभी इनकी किस्मत संवरनी शुरू हुई. राजा खुद इन टापुओं को लेकर उदासीन थे... टापुओं के रखरखाव में काफी खर्च आ रहा था...लिहाजा वे खुद इससे छुटकारा पाना चाहते थे...
ईस्ट इंडिया कंपनी, की दिलचस्पी बॉम्बे में कुछ ज्यादा ही थी... वह इस जगह को डेवलप करना चाहती थी... यहां गहरा सागर था जहां आसानी से जहाज आ सकते थे और प्राकृतिक बंदरगाह थे और इनका इस्तेमाल हर मौसम में किया जा सकता था... यहां से पर्शिया, मालाबार तट और स्पाइस आईलैंड की इंग्लिश कंपनियों के साथ डायरेक्ट कम्युनिकेशन और भी आसान हो रहा था... समुद्री लुटेरों का खतरा भी कम था, भारत के राजाओं से उलझन भी कम थी और यूरोपियन प्रतिद्वंदियों का सामना भी यहां नहीं करना पड़ रहा था... सूरत काउंसिल के प्रेसिडेंट और बॉम्बे के गवर्नर गेराल्ड औंगियर ने 1671 में बॉम्बे के विकास के लिए एक व्यापक प्रस्ताव दिया... इस प्रस्ताव को हरी झंडी मिलने पर टापुओं को मजबूत करने, डॉक बनाने और यहां रहने वालों के लिए संस्थान विकसित करने के काम शुरू किए गए...
कंपनी ने जनसंख्या बढ़ाने के लिए बंबई में इमिग्रेशन को बढ़ावा दिया... 1661 में जिस शहर की आबादी 10 हजार थी.... वह अगले 15 साल में 60 हजार हो चुकी थी... बदले में, रहने के लिए घर और खेती की जरूरत महसूस की गई... लेकिन ऐसी जगहें सिर्फ समंदर के पानी को रोककर ही बनाई जा सकती थी. इसी बीच एक और समस्य उठ खड़ी हुई. बॉम्बे में बड़ी संख्या में मौतें होने लगी... एक अंग्रेज का औसत जीवन सिर्फ तीन साल पाया गया...जो बच्चे पैदा होते थे उनमें से 20 में से 1 ही बच पाता था... इसकी बड़ी वजह मलेरिया की बीमारी थी.. घटता पानी अपने पीछे दलदल छोड़ रहा था और यहां पैदा हो रहे थे मच्छर... इसके बाद पानी के रास्तों को बंद करना, दलदल को निकालना और समुद्र में डूबी जमीन को हासिल करना जरूरी हो गया... इसी जरूरत ने आकार दिया एक ऐसे शहर को जिसे हम आज की मुंबई के रूप में जानते हैं...
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1687, में कंपनी ने अपना हेडक्वॉर्टर सूरत से बॉम्बे शिफ्ट कर दिया... बाद में यह शहर बॉम्बे प्रेसिडेंसी का भी हेडक्वॉर्टर बन गया... 1784 में, बॉम्बे के सभी 7 द्वीपों को एकसाथ जोड़ दिया गया. यह एक मेगा प्रोजेक्ट था...
समुद्र के किनारे की वह जमीन जो पानी में डूबी थी उसमें भराव करके उसे समुद्र के स्तर तक लाया गया. बॉम्बे के साथ लगे समंदर के ऐसे इलाके जहां से पानी अंदर आकर 7 टापुओं को अलग कर रहा था, उसे भरा गया. 1690 के कुछ समय बाद बॉम्बे और मझगांव के टापुओं के बीच उमरखाड़ी का वह पहला रास्ता बंद किया गया जहां से समंदर का पानी अंदर आ रहा था....
शहर में सबसे आखिर में जिन दो टापुओं को जोड़ा गया, वे थे कोलाबा और लिटिल कोलाबा... 1796 में, कोलाबा द्वीप को एक कैंटोनमेंट एरिया घोषित किया गया था..लोग वहां जाने के लिए नावों का इस्तेमाल करते थे.. नाव पर भीड़ बहुत ज्यादा होती थी जिसकी वजह से अक्सर ही दुर्घटनाएं हो जाया करती थी... बॉम्बे काउंसिल ने एक पुल बनाने का सुझाव दिया... निर्माण 1838 में पूरा किया गया था और दोनों द्वीपों को कोलाबा कॉज़वे द्वारा बॉम्बे से जोड़ा गया था...
बॉम्बे ने भारत में पहली रेलवे लाइन भी देखी जब इसे 16 अप्रैल 1853 को पड़ोसी शहर ठाणे से जोड़ा गया था... 1911 में किंग जॉर्ज और क्वीन मैरी ( King George and Queen Mary ) के भारत आने पर गेटवे ऑफ इंडिया बनाया गया... और फिर वह दिन भी आया जब बॉम्बे के साथ पूरे देश को आजादी मिली... आजादी मिली और फिर ये शहर और भी आगे बढ़ता गया... बॉलीवुड की चकाचौंध ने इसे नए आयाम दिए... 1955 के बाद, जब बॉम्बे राज्य को पुनर्व्यवस्थित किया गया और भाषा के आधार पर इसे महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में बांटा गया, तब एक मांग उठी कि बॉम्बे को अलग कर दिया जाए... हालांकि विरोध की वजह से ऐसा हो न सका... 1 मई, 1960 को महाराष्ट्र राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी बंबई को बनाया गया...
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1995 में बंबई का नाम बदलकर मुंबई कर दिया गया... मुंबई नाम... मराठी शब्दी मुंबा यानी मुंबा माता से निकला है. मुंबा देवी को मछुआरों की देवी माना जाता है...
चलते-चलते आज की तारीख में हुई दूसरी बड़ी घटनाओं पर भी निगाह डाल लेते हैं
1761, मराठा शासक पेशवा बालाजी बाजी राव ( Peshwa Balaji Baji Rao ) का निधन.
1953,जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी ( Syama Prasad Mukherjee ) का कश्मीर में एक अस्पताल में निधन.
1980,पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी ( Sanjay Gandhi ) की विमान दुर्घटना में मौत.
1985,एयर इंडिया का एक यात्री विमान ( Air India AeroPlane ) आयरलैंड तट के करीब हवा में दुर्घटनाग्रस्त. सभी 329 यात्रियों की मौत.