भाजपा के वरिष्ठ नेता और नार्थ-ईस्ट राज्यों में पार्टी का बड़ा चेहरा माने जा रहे किरेन रिजिजू से केंद्रीय कानून मंत्रालय वापस लिए जाने के बाद इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या न्यायपालिका से लड़ाई किरेन रिजिजू को भारी पड़ गई. हालांकि, सरकार और न्यायपालिका के बीच की लड़ाई कोई पहली नहीं है, लेकिन रिजिजू ने न्यायपालिका पर सीधी टिप्पणी शुरू कर दी थी. कई बार न्यायपालिका और विधायिका की लड़ाई पब्लिक प्लेटफार्म पर देखने को मिली. खासकर कॉलेजियम सिस्टम को लेकर रिजिजू लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे. सार्वजनिक तौर पर वह कई बार न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर तंज कस देते थे. इससे न्यायपालिका और सरकार के बीच की दूरियां बढ़ने लगी थीं. राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल का विभाग भी बदल दिया गया है. अब वे कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री के स्थान पर स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री होंगे.
अमर उजाला में छपि खबर के मुताबिक किरेन रिजिजू से कानून मंत्रालय लिए जाने के पीछे कई वजहें बताई जा रही है. जिनमें सबसे प्रमुख न्यायपालिका से सीधी लड़ाई को सबसे आगे है. सरकार और न्यायपालिका के बीच लड़ाई कोई पहली बार नहीं हो रही थी. इसके पहले भी कई बार पावर क्लैश हो चुका है लेकिन आमतौर पर दोनों के बीच की ये लड़ाई अंदरखाने ही शांत हो जाती थी, लेकिन पिछले कुछ समय से ऐसा नहीं हो पा रहा था. कॉलेजियम व्यवस्था को लेकर रिजिजू लगातार न्यायपालिका पर सवाल उठा रहे थे. सार्वजनिक तौर पर वह न्यायपालिका और न्यायाधीशों को लेकर तंज कस रहे थे. इससे न्यायपालिका और सरकार के बीच की दूरियां बढ़ने लगी थीं.
दूसरी तरफ अगले साल अप्रैल में ही अरुणाचल प्रदेश में भी चुनाव होने हैं. ऐसे में संभव है कि इसकी तैयारियों के लिए रिजिजू को फ्री किया गया हो. कानून मंत्री रहते हुए वह ज्यादा समय अरुणाचल प्रदेश में नहीं दे सकते थे. कर्नाटक में हार के बाद भाजपा कोई नया रिस्क नहीं लेना चाहती है.