सरकारी नौकरी में एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण के मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को बड़ा फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि राज्य सरकारों को अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को प्रमोशन में आरक्षण देने से पहले इससे संबंधित डेटा एकत्र करना चाहिए. कोर्ट ने आगे कहा कि संविधान पीठ के फैसलों के बाद नया पैमाना नहीं बनाया जा सकता है. ये राज्य तय करें की रिजर्वेशन कैसे देना है.
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच में तमाम पक्षकारों की ओर से दलील पेश की गई थी. इस दौरान राज्य सरकारों की ओर से पक्ष रखा गया था जबकि केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल ने दलील पेश की. सुप्रीम कोर्ट ने तमाम दलील के बाद फैसला 26 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच के सामने कई राज्यों की ओर से यह कहा गया था कि एससी और एसटी को प्रमोशन में रिजर्वेशन देने में कुछ बाधाएं हैं जिन्हें देखने की जरूरत है.
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में दिए जरनैल सिंह से संबंधित विवाद के मामले में जो सवाल उठे थे उस पर अपना जवाब देते हुए कहा कि प्रमोशन में रिजर्वेशन के लिए अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का डेटा तैयार करने की जिम्मेदारी राज्य की है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालत इसके लिए कोई मापदंड तय नहीं कर सकती है और अपने पूर्व के फैसलों के मानकों में बदलाव नहीं कर सकती है.