भारत में राजद्रोह कानून की अक्सर ही चर्चा होती है. राजद्रोह कानून को कई बार देशद्रोह से भी जोड़ा जाता है. कई सवाल हैं जो राजद्रोह कानून को लेकर उठते रहते हैं. आइए जानते हैं कि राजद्रोह कानून क्या है ( What is Sedition Law ) , राजद्रोह कानून और राष्ट्रद्रोह कानून में क्या अंतर है ( Rajdroh Aur rashtradroh Kanoon Mein Antar Kya hai ) और राजद्रोह कानून के तहत किस धारा में सजा का प्रावधान ( Which section provides for punishment under the sedition law? ) है.
भारत में राजद्रोह का कानून अंग्रेज लेकर आए थे. 1870 में यह कानून भारत पहुंचा. आईपीसी में धारा-124A में राजद्रोह या देशद्रोह की परिभाषा तय की गई. अंग्रेजी हुकू्मत का मकसद था कि इस कानून के जरिए वह न सिर्फ विदेशी हुकूमत का तीखा विरोध करने वालों से निपटे बल्कि भारत की आजादी के आंदोलन में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों के अंदर भी एक डर पैदा करे. बाल गंगाधर तिलक और मोहनदास कर्मचंद गांधी ऐसे नेता रहे, जिनपर सबसे पहले राजद्रोह का कानून लगाया गया था.
इसको लेकर उन्होंने कहा था कि आईपीसी की धारा 124A नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए लागू की गई थी. यह कानून आज भी हिंदुस्तान में हू-ब-हू लागू है. महात्मा गांधी ने कानून को "भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) का राजकुमार" कहा था. आजाद भारत में भी कानून को हटाया नहीं गया. अब, स्वतंत्रता के 7 दशकों से ज्यादा का वक्त बीतने के बाद, हाल के वर्षों में राजद्रोह के मामलों में बढ़ोतरी देखी गई है. यहां तक कि भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी कानून पर ही सवाल खड़े कर दिए.
इस कानून का मसौदा शुरुआत में 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले ( British Historian Thomas Babington Macaulay ) ने तैयार किया था. 1860 में भारतीय दंड सहिता (Indian Penal Code- IPC) लागू तो हुई लेकिन इस कानून को उसमें शामिल नहीं किया गया. 1857 संग्राम के बाद, जेम्स स्टीफन ( Sir James Fitzjames Stephen ) को साल 1870 में स्वतंत्रता सेनानियों के विचारों को दबाने के लिए एक खास कानून की जरूरत महसूस हुई. इसके बाद उन्होंने धारा 124A को भारतीय दंड संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1870 के अंतर्गत IPC में जोड़ा. जेम्स स्टीफन तब ब्रिटिश हुकूमत में लीगल मामलों के प्रमुख थे, उनका कहना था कि किसी भी सूरत में सरकार की आलोचना को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
भारतीय दंड संहिता की धारा 124A में राजद्रोह का उल्लेख है. ये धारा कहती है, 'अगर कोई व्यक्ति सरकार के खिलाफ बोलकर या लिखकर या इशारों से या फिर चिह्नों के जरिए या किसी और तरीके से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने की कोशिश करता है या असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वो राजद्रोह का आरोपी है.'
राजद्रोह के तहत मामला दर्ज होना गैर-जमानती अपराध की श्रेणी में आता है. इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इसके साथ ही, गुनहगार पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
लेकिन दुविधा तब पैदा हो जाती है जब 'राजद्रोह' और 'देशद्रोह' को लोग एक ही मान लेते हैं. इनके सीधे अर्थ हैं, यानी कि जब सरकार की मानहानि या अवमानना होती है तो उसे 'राजद्रोह' कहा जाता है और जब देश की मानहानि या अवमानना होती है तो उसे 'देशद्रोह' कहा जाता है. अंग्रेजी भाषा में इसे ही Sedition कहते हैं. दोनों ही मामलों में धारा 124A का इस्तेमाल होता है.
राजद्रोह के तहत मामला दर्ज होने के बाद आरोप साबित होने पर 3 साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही, जुर्माना भी लगाया जा सकता है. हालांकि, आंकड़े एक अलग कहानी दिखाते हैं आईपीसी की धारा 124 ए के तहत जितने मामले दर्ज होते हैं, उसमें मुश्किल से ही आरोप सिद्ध हो पाते हैं. ज्यादातर आरोपी छूट जाते हैं. 98 फीसदी मामलों में दोष सिद्ध नहीं हो पाते हैं.
2014 से 2019 के 6 सालों में 59 गिरफ्तारियों हुईं लेकिन दोष सिर्फ 10 पर ही साबित हुए. वहीं, गृह मंत्रालय की रिपोर्ट कहती है कि 2018 से 2020 तक के 3 सालों में राजद्रोह के 236 मामले दर्ज हुए लेकिन दोषी सिर्फ 5 लोग ही हुए.
कई बार राजद्रोह कानून को खत्म किए जाने को लेकर सवाल उठते हैं. आइए जानते हैं कि भारत सरकार इसे लेकर क्या सोचती है? जुलाई 2019 में केंद्र सरकार ने कहा था कि राजद्रोह कानून या आईपीसी की धारा-124 (ए) को खत्म नहीं किया जा सकता. सरकार ने देश विरोधी लोगों, आतंकी और पृथकतावादी तत्वों से निपटने के लिए राजद्रोह कानून की जरूरत पर बल दिया था.