What is Caste Census : बिहार में राज्य सरकार ने जातीय आधार पर जनगणना (Caste Census in Bihar) का फैसला लिया है. जातीय जनगणना से 14 करोड़ की आबादी वाले बिहार में जनता की जाति, उपजाति, धर्म और संप्रदाय के साथ ही उनकी आर्थिक स्थिति का भी पता लगाया जा सकेगा.
आइए समझते हैं कि जातीय जनगणना क्या होती (What is Caste Census) है? इसकी महत्व (Importance of Caste Census) और इससे होने वाले नुकसान क्या क्या हैं, ये भी जानने की कोशिश करते हैं
सीधा सीधा कहें तो जाति के आधार पर आबादी की गिनती को जातीय जनगणना कहते हैं
किस तबके की कितनी हिस्सेदारी, कौन वंचित रहा... जातीय जनगणना से हर बात का पता चलता है
जातियों की उपजाति का भी पता चलता है. उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति का पता चल पाता है.
विपक्ष में रहने पर दल इसका समर्थन करते हैं लेकिन सरकार में आने पर आनाकानी करते हैं... सत्ताधारी दल को लगता है कि जातीय आधार पर जनगणना से समाज में जातीय गुटबाजी बढ़ जाएगी और समाज भी बंट जाएगा... जातीय विभाजन का सीधा फायदा क्षेत्रीय दलों को मिलेगा.
समर्थन करने वाले कहते हैं कि जातीय पिछड़ेपन का पता चल सकेगा. आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का फायदा देकर उन्हें मजबूत बनाया जा सकता है. जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की स्थिति का पता चल पाएगा. इससे योजनाएं बनाने में आसानी होगी.
ब्रिटिश सरकार और आजाद भारत की सरकारें भी इस मांग को टालती रही हैं. माना जाता है कि जिस समाज की आबादी घट रही होगी, उस समाज के लोग परिवार नियोजन से दूरी अपना सकते हैं. सामाजिक ताना बाना बिगड़ने का खतरा भी है. साल 1951 में तब के गृह मंत्री सरदार पटेल ने भी इसके प्रस्ताव को खारिज किया था.
अगर किसी भी जाति की संख्या बढ़ती है तो वह सरकार में अपनी बढ़ी हुई हिस्सेदारी मांगेगा. हर जनगणना में आदिवासी और दलितों की गिनती होती है लेकिन अगर जातिगत जनगणना हुई तो ओबीसी और जनरल वर्ग भी गिने जाएंगे और अगर इनकी आबादी बढ़ी तो SC/ST या OBC आरक्षण पर नई रार मच सकती है.
एसपी, आरजेडी, एनसीपी सहित तमाम क्षेत्रीय दल इसके समर्थन में हैं. वह कहते हैं कि सरकार ओबीसी की संख्या बताए और फिर 50 फीसदी आरक्षण सीमा को बढ़ाए. इन दलों का वोट बैंक ओबीसी ही है.
भारत में आखिरी बार जातीय जनगणना ब्रिटिश शासन के दौरान 1931 में हुई थी. यही जनगणना 1941 में भी हुई लेकिन आंकड़े जारी नहीं किए गए. अगली जनगणना 1951 में तब हुई, जब देश आजाद हो चुका था. तब सिर्फ अनुसूचित जातियों और जनजातियों को ही गिना गया. तबसे जनगणना का 1951 वाला पैमाना ही चल रहा है.
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