Why Joshimath is sinking : बद्रीनाथ (Badrinath) का प्रवेशद्वार जोशीमठ (Joshimath) धंस रहा है...गुरुवार तक 561 घरों में दरारें आ गईं...66 परिवार पलायन कर गए. बिजली के खंभे झुक गए...पीएमओ (PMO) भी एक्शन में आ गया और टीम मौके पर भेज दी...सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? क्या है इसके पीछे की वजहें?
गढ़वाल हिमालय के अंदर आने वाले चमोली जिले (Chamoli District) में बसा है जोशीमठ. 6,000 फीट से अधिक की ऊंचाई पर ये शहर स्थित है. इसे बद्रीनाथ (Badrinath), हेमकुंड साहिब (Hemkund Sahib), स्कीइंग डेस्टिनेशन औली (Skiing Destination Auli) और यूनेस्को वर्ल्ड हैरिटेज वैली ऑफ फ्लावर (UNESCO World Heritage Valley of Flower) के प्रवेश द्वार के रूप में माना जाता है.
जोशीमठ (Joshimath), बद्रीनाथ (Badrinath) का प्रवेशद्वार है. उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली जिले के जोशीमठ में जमीन धंसने, कई मकानों में दरार होने और धरती से पानी रिसने की घटना ने एक बार फिर इसे चर्चा में ला दिया है.
हालांकि, आज जो हो रहा है उसकी जड़ में बेरोकटोक कंस्ट्रक्शन, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन एक बड़ी वजह है. स्थानीय जनता सालों से इसके खिलाफ आवाज उठा रही है लेकिन आज जब दरकती जमीन की तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल हो रही हैं, प्रशासन और सरकार फिर सवालों के घेरे में है.
मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने जांच के आदेश दिए हैं. स्थानीय प्रशासन के मुताबिक जोशीमठ में करीब 3 से 4 हजार लोग प्रभावित हुए हैं. 25 से ज्यादा परिवारों को प्रशासन ने सुरक्षित जगह भेज दिया है.
इस घटना के पीछे जो वजह बताई जा रही है, वह एक सरकारी योजना ही है. जोशीमठ की स्थानीय जनता इसकी वजह NTPC की Tapovan Vishnugad Hydropower प्रोजेक्ट को बता रही है. इस प्रोजेक्ट में पहाड़ों को काटकर लंबी सुरंग बनाई जा रही है. लगभग 2 साल पहले ये प्रोजेक्ट शुरू हुआ था जिसके बाद से ही जमीन में दरार पड़ने के मामले सामने आने लगे थे.
कुछ अध्ययन पहले ही किए जा चुके हैं. 1976 की शुरुआत में मिश्रा समिति ने चेतावनी दी थी. सड़क की मरम्मत और दूसरे निर्माण के लिए समिति ने यह सलाह दी थी कि पहाड़ी को खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाए. क्षेत्र के पेड़ों को बच्चों की तरह पाला जाना चाहिए.
अभी हाल ही में, जून 2021 में स्थानीय निवासियों के अनुरोध पर गठित एक स्वतंत्र समिति ने इलाके का सर्वे किया और कहा कि खनन कार्य जोशीमठ को डुबो देंगे. इस कमिटी में जियोलॉजिस्ट नवीन जुयाल भी थे जो चार धाम की ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट के रिव्यू के लिए सुप्रीम कोर्ट की बनाई समिति में भी थे, उन्होंने मल्टि इंस्टिट्यूशनल एक्सपर्ट्स के सर्वे की बात कही थी.
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने अगस्त 2022 में शहर के जियोलॉजिकल और जियोटेक्निकल सर्वे के लिए एक एक मल्टि इंस्टिट्यूशनल टीम का गठन किया. टीम ने सितंबर में अपनी रिपोर्ट दी, जिसमें बताया गया कि जोशीमठ "एक अस्थिर नींव पर खड़ा है जिसे बारिश, अनियमित कंस्ट्रक्शन से नुकसान पहुंच सकता है.
कमजोर प्राकृतिक नींव के अलावा रिपोर्ट में कहा गया कि जोशीमठ-औली रोड के किनारे कई घर, रिसॉर्ट और छोटे होटल बना लिए गए हैं जो जमीन को कमजोर कर रहे हैं.
हालांकि, कई निवासी नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (NTPC) की तपोवन-विष्णुगढ़ 520 मेगावाट Hydropower project के लिए बनाई जा रही 12 किलोमीटर लंबी सुरंग के निर्माण को जोशीमठ की परेशानियों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. यह परियोजना फरवरी 2021 में अचानक आई बाढ़ की चपेट में आ गई थी जिसमें 200 से अधिक लोग मारे गए थे. सुरंग जोशीमठ से 15 किमी दूर तपोवन में परियोजना के बैराज से शुरू होती है और शहर से लगभग 5 किमी दूर सेलांग में इसके बिजलीघर पर समाप्त होती है.
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती ने अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, 17 मार्च 2010 को एनटीपीसी ने स्वीकार किया था कि "सुरंग में किए गए छेद से पानी रिस रहा है... हमारा कहना था कि इस वजह से ही जोशीमठ में जल स्रोत सूख रहे थे.
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा ने TOI को बताया कि जोशीमठ पर्वतीय क्षेत्र के अंदर सुराग एक लीकिंग गुब्बारे की तरह काम करेंगे. जिस तरह गुब्बारे से पानी रिसता है और धीरे धीरे उसका आकार खत्म हो जाता है, ऐसा ही कुछ इस इलाके के पहाड़ों में हो सकता है.
हालांकि एनटीपीसी के अधिकारी हाल ही में स्थानीय मीडियाकर्मियों को सुरंग में ले गए थे और दावा किया कि यह सूखा था, इसलिए परियोजना के कारण जोशीमठ 'डूब' नहीं रहा था.
जोशीमठ के निवासियों के लिए यह कोई सांत्वना नहीं है. वे तो अभी तक "पुनर्वास" की मांग कर रहे हैं और अपने बेहतरीन शहर को बचाने के लिए आवाज उठा रहे हैं.
65 वर्षीय निवासी चंद्रवल्लभ पांडे ने कहा कि सड़क और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स पर काम बेरोकटोक जारी है. ये पहले से ही अनिश्चित स्थिति को और गंभीर कर रहा है. यह सभी सरकारों की घोर लापरवाही से है कि हम अब जोखिम में हैं. दशकों पहले सचेत होने के बावजूद उन्होंने बहुमंजिला इमारतों और इतने निर्माण की अनुमति क्यों दी?
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