क्या भारत में मांस पर बैन ( Meat Ban in India ) जायज है? त्योहार में एक पक्ष को ध्यान में रखकर नियम बनाना क्या सही है? देश में खान-पान का नियम कहता क्या है? कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक में इसपर क्यों बहस है....
देश में ये नया सवाल इसलिए उठा है क्योंकि दो जगहों पर नवरात्रि के ऐन मौके पर मीट बैन की खबर सामने आई. गाजियाबाद और दिल्ली का दक्षिणी नगर निगम...
गाजियाबाद में फैसला तो वापस लिया गया... लेकिन खबर ने उस सवाल को सामने ला दिया जो हर किसी के जहन में है, मीट पर प्रतिबंध कितना जायज है?
ये सब तब हुआ जब हिंदू नवरात्रि (Navratri 2022) मना रहे हैं, तो मुसलमान रमजान ( Ramadan ) के दौरान रोजे रख रहे हैं. शहरी और इफ्तारी दोनों में ही मीट का सेवन किया जा सकता है. उधर, ईसाई धर्म में लेंठ का महीना जारी है. ये ये गम का महीना है. 40 दिन के इस समय में कुछ लोग स्वेच्छा से ही मीट नहीं खाते हैं. हालांकि ईसाई धर्म में मीट की मनाही पर कोई नियम नहीं है.
साउथ दिल्ली MCD के मेयर, गाजियाबाद की मेयर ने तो अभी मीट बैन को लेकर बयान दिया है लेकिन गाजियाबाद में लोनी से विधायक नंद किशोर गुर्जर लंबे वक्त से मीट बैन की वकालत करते रहे हैं.
भारत जैसे देश में जहां हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म मौजूद हैं, वहां अक्सर ही नियमों को बहुसंख्यक हिंदू धर्म से जोड़कर बनाए जाने की वकालत की जाती रही है. धार्मिक उत्सवों के मौके पर अक्सर ऐसी आवाजें उठती हैं. नवरात्रि 2022 के अवसर पर सामने मीट शॉप बैन की खबरों ने इस नई बहस को जन्म भी दिया है. लेकिन क्या खान-पान को किसी दायरे में बांधने का नियम सही है? इस प्रश्न के साथ ही आज हम जानेंगे कि हिंदू धर्म, इस्लाम और ईसाईयत में खान-पान से जुड़े क्या नियम फॉलो किए जाते हैं. हम जानेंगे भारत के ऐसे शहरों को भी जहां खान-पान से जुड़े नियमों का सख्ती से पालन किया जाता है...
karnataka Halal Meat Controversy: हिजाब विवाद के बाद हलाल मीट पर नया बवाल, जानें पूरा मामला
भारत विविधताओं का देश है और विविधता का सबसे बड़ा नमूना धार्मिक गतिविधि और खान-पान में मिलता है. उत्तर भारत में उत्तराखंड-हिमाचल के मंदिरों में बलि प्रथा दिखाई देती है, बिहार-झारखंड में भी यही नियम प्रचलन में है, सुदूर पूर्वोत्तर में कामाख्या देवी मंदिर भी इसका उदाहरण है. हालांकि उत्तर भारत में राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आदि शहरों में ऐसा कुछ नहीं दिखता है और इसी वजह से भोजन के नियमों की सबसे ज्यादा बात यहीं पर होती है...
हिंदू धर्म में भोजन के तीन स्वरूपों की व्याख्या मिलती है. आयुर्वेद और योग शास्त्र में राजसिक, तामसिक और सात्विक भोजन का उल्लेख मिलता है.
सात्विक भोजन में शामिल ज्यादातर चीजें उबालकर खाई जाती हैं. आयुर्वेद और योग शास्त्र में इस भोजन को सबसे बेहतर और शुद्ध माना गया है. इसका सेवन आमतौर पर धार्मिक कार्यों में शामिल लोग, योग और पूजा-पाठ करने वाले करते हैं. यह शरीर को पोषण देता है और मस्तिष्क की शांति बनाए रखता है.
जैसा कि नाम से ही आभास होता है, ऐसे भोजन को राजघरानों से जोड़कर देखा जाता था. इस तरह के भोजन में नमकीन और मसालेदार चीजें शामिल रहती हैं. यह भोजन मनुष्य के दिमाग को उत्तेजित करता है और काफी मात्रा में ऊर्जा देता है. इसे पकाने में काफी समय लगता है और इसमें लहसुन-प्याज का भी इस्तेमाल होता है.
ऐसे भोजन को बनाने में प्याज, लहसुन, मांस, शराब आदि का इस्तेमाल होता है. इस भोजन में मसालों का बहुत ज्यादा इस्तेमाल होता है और इसे पकाने में भी घंटों लगते हैं. ऐसा माना जाता है कि ये खानपान शरीर में नकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं.
भोजन की इन तीन व्याख्याओं ने ही हिंदू धर्म में भोजन से जुड़े नियमों को जन्म दिया है...अब जानते हैं कि भारत में मौजूद धर्मों में मांस को लेकर क्या नियम है
“अहिंसा ही परमधर्म है” — भगवान महावीर.
जैन धर्म का फूड कल्चर अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित है. भारत में जैन धर्म के अनुयायी पक्के शाकाहारी होते हैं. वह जिस जीवनशैली का पालन करते हैं, उसपर चलना हर किसी के बस की बात नहीं. जैन धर्म के अनुयायी मानते हैं कि किसी भी पशु या धरती पर मौजूद सूक्ष्म जीवों को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए. यह संस्कृति अहिंसा से आती है. सब्जियों को लेकर जैन मानते हैं कि धरती के नीचे उग रही किसी भी चीज का सेवन नहीं करना चाहिए. वे आलू, प्याज, लहसुन आदि का सेवन नहीं करते हैं.
भारत में हिंदू धर्म के ज्यादातर लोग शाकाहारी हैं. गाय को पवित्र माना जाता है इसलिए हिंदू धर्म में मांस का सेवन करने वाले भी बीफ नहीं खाते हैं. हिंदू धर्म में कुछ लोग अंडा खाते हैं, कुछ नहीं खाते हैं... कुछ प्याज और लहसुन से भी परहेज करते हैं. हर व्यक्ति की अपनी निजी चॉइस दिखाई देती है. भारत में हिंदुओं की बहुसंख्यक आबादी lacto-vegetarian (avoiding meat and eggs) है. हालांकि कई लोग चिकन, फिश, आदि का सेवन करते हैं.
भारत में कुछ सिख शाकाहारी हैं. धर्म में, मीट के सेवन को लेकर व्यक्तिगत पसंद की अनुमति देता है. हालांकि, धार्म में मारे गए जानवरों का मांस खाने की मनाही है और इसलिए हलाल जैसा मीट सिख नहीं खाते हैं.
भारत में इस्लाम धर्म के अंतर्गत खाने को लेकर किसी तरह की बंदिश नहीं दिखती है. हां, भारत में मुस्लिम हलाल मीट खाते हैं. वे जो भी मांस और मीट प्रोडक्ट का सेवन करते हैं, वह हलाल ही होना चाहिए. हां, धर्म के अंदर कुछ चीजों को हराम माना गया है, जिनमें पोर्क, अल्कोहल आदि है.
भारत में ईसाई धर्म के अंतर्गत भोजन पर किसी तरह का धार्मिक प्रतिबंध दिखाई नहीं देता है. वे मानते हैं कि स्वतंत्रता ही ईसा मसीह के जीवन और शिक्षा का संदेश है. भारत में मेघालय, केरल जैसे ईसाई बहुल राज्यों में बीफ, पोर्क का सेवन आम है. धर्म में न तो ड्रिंक पर और न ही भोजन पर किसी तरह का खास नियम है.
अगस्त 2014 में, गुजरात के भावनगर जिले का पालिताणा, पूरी तरह शाकाहारी घोषित किया गया. यह देश का ऐसा पहला शहर बना.
7 साल बाद अहमदाबाद नगर निगम ने सार्वजनिक सड़कों और स्कूलों-धार्मिक स्थलों से 100 मीटर की दूरी पर मांसाहारी फूड के स्टॉल हटाने का आदेश दिया. राजकोट, वडोदरा और जूनागढ़ में भी इसी तरह के आदेश जारी किए गए.
उत्तर भारत में धार्मिक नगरी हरिद्वार में मांस, मछली और अंडे के सार्वजनिक कारोबार पर बैन है. 2004 में, सुप्रीम कोर्ट ने हरिद्वार, ऋषिकेश और मुनि की रेती को मांसाहारी भोजन से मुक्त करने के उत्तराखंड सरकार के कदम को बरकरार रखा.
वाराणसी के मंदिरों के आसपास शराब, मांसाहारी भोजन पर पूर्ण प्रतिबंध है. वाराणसी में सभी मंदिरों और विरासत स्थलों के 250 मीटर के दायरे में शराब और मांसाहारी भोजन की बिक्री और इसके सेवन पर पूर्ण प्रतिबंध लागू है.
अयोध्या-मथुरा में भी मांसाहारी भोजन और शराब पर प्रतिबंध है.
पुणे के देहू में भी मछली और मांस पर बैन लगा दिया गया है. इस शहर में 17वीं सदी के मशहूर संत तुकाराम रहे थे. तुकाराम भक्ति काल के मशहूर संत हैं.
असम विधानसभा में 13 अगस्त 2021 को ऐसा बिल पास किया गया जिसके तहत किसी भी मंदिर के 5 किलोमीटर के रेडियस में बीफ की बिक्री या उसकी कटाई पर बैन लगा दिया गया.
2008 के सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को याद कीजिए जिसमें उसने अहमदाबाद में जैन पर्यूषण पर्व पर बूचड़खानों को बंद करने को मंजूरी दी थी, क्योंकि ऐसा सिर्फ नौ दिनों के सीमित समय के लिए किया जा रहा था.
अनुच्छेद 19 (1) के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से कोई भी पेशा अपनाने या व्यापार करने का अधिकार देता है. ऐसे में मीट की दुकानों पर प्रतिबंध अधिकारों के उल्लंघन की श्रेणी में आता है. हालांकि, खंड 6 के अधीन राज्य व्यापार पर युक्तिपूर्ण प्रतिबंध भी लगा सकता है.