भाजपा को आगे भी चुनाव जीतते रहना है तो सिर्फ मोदी मैजिक और हिंदुत्व का चेहरा काफी नहीं होगा. यह बात राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) के मुखपत्र ऑर्गनाइजर ने अपने संपादीय में लिखा है. इस पत्रिका में कर्नाटक विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार का विश्लेषण किया गया है. जिसमें कहा गया है कि मजबूत नेतृत्व और क्षेत्रिय स्तर पर प्रभावी डिलीवरी के बिना, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हिंदुत्व की वैचारिकता पर्याप्त नहीं होगा. इसलिए कर्नाटक चुनाव परिणाम को 2024 के आम चुनावों के लिए सही से देखने की जरूरत है. क्योंकि इस जीत से विपक्षी दलों का मनोबल बढ़ा है. संपादकीय में कहा गया है कि राज्य सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप बड़ा कारण था और पीएम मोदी की लोकप्रियता का मतदाताओं के बीच सत्ता विरोधी लहर से कोई मुकाबला नहीं था. यही वजह थी कि बोम्मई सरकार के 14 मंत्री चुनाव हार गए. ऑर्गनाइजर ने यह संपादीय अपने 23 मई के अंक में छापा है.
आर्गनाइजर ने अपने संपादकीय में यह भी लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी के केंद्र में सत्ता संभालने के बाद पहली बार भाजपा को विधानसभा चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोपों का बचाव करना पड़ा. वर्तमान मंत्रियों के खिलाफ सत्ता विरोदी लहर भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए.
कर्नाटक चुनाव में बोम्मई सरकार के 14 से ज्यादा मंत्री चुनाव हार गए. जिनमें वी सोमन्ना, डॉ के सुधाकर, बी श्रीरामुलु, गोविंद करजोल, मुरुगेश निरानी, जेसी मधुस्वामी, बीसी पाटिल, एमटीबी नागराज, केसी नारायण गौड़ा और बीसी नागेश जैसे बड़े नेता शामिल हैं, जो चुनाव हार गए.
इसमें लिखा गया है कि “जब राष्ट्रीय स्तर के नेतृत्व की भूमिका न्यूनतम होती है और चुनाव अभियान स्थानीय स्तर पर रखा जाता है तो कांग्रेस को फायदा होता है। परिवार द्वारा संचालित पार्टी ने राज्य स्तर पर एक एकीकृत चेहरा पेश करने की कोशिश की और 2018 के चुनावों की तुलना में पांच प्रतिशत अतिरिक्त वोट हासिल किए."
बाद के संपादकीय में, ऑर्गनाइज़र ने सत्ता में नौ वर्षों में पीएम मोदी और भाजपा सरकार की उपलब्धियों की प्रशंसा की है. “2014 में, भारत में अधिकांश लोगों ने लोकतंत्र में विश्वास खो दिया था. प्रधान मंत्री मोदी और उनकी सरकार ने महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ उन आकांक्षाओं के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दी और कई मोर्चों पर काम किया है.
संपादकीय में नई संसद की सराहना की गई, इसे "लोकतंत्र का नया मंदिर" कहा गया, और कहा गया कि संरचना हमें "प्राचीन विचारों और धार्मिक मूल्यों के आधार पर शासन के सिद्धांतों" से जोड़ेगी. आरएसएस भाजपा का वैचारिक स्रोत है; पार्टी के साथ-साथ सरकार के बहुत से सदस्यों ने या तो आरएसएस के साथ मिलकर काम किया है या भगवा संगठन के आदर्शों से प्रेरित है.