तथाकथित सत्ता विरोधी लहर के बावजूद मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की भारी जीत (Bharatiya Janata Party's huge victory) के साथ, बीजेपी ने एक स्पष्ट संदेश दिया है कि मध्य प्रदेश राज्य हिंदुत्व का किला बना हुआ है. कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान प्रशासन के खिलाफ उपजी बोरियत का फायदा उठाने की उम्मीद में थी लेकिन मतदान के दिन से ठीक एक महीने पहले भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के मजबूत दबाव से स्थिति
एकाएक बदल गई.
बीजेपी नेता ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'यह एक सर्जिकल स्ट्राइक (surgical strike) की तरह था लेकिन संगठनात्मक ताकत और लामबंदी के साथ जहां पीएम नरेंद्र मोदी ने अभियान का नेतृत्व (Narendra Modi led the campaign) किया, वहीं गृह मंत्री अमित शाह ने जमीन पर चुनाव प्रचार की कमान संभाली.
यह इस तथ्य से स्पष्ट था कि भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा का नेतृत्व स्वयं केंद्रीय नेतृत्व ने किया था और सीएम शिवराज सिंह चौहान को दूसरे पायदान पर धकेल दिया गया था. इस दौरान भाजपा ने उनकी सरकार की उन योजनाओं को भुनाने के लिए कदम उठाए जो विशेष रूप से महिलाओं के बीच लोकप्रिय थीं. शिवराज सिंह चौहान की बोरियत का मुकाबला करने के लिए, भाजपा ने कई हाई-प्रोफाइल नेताओं (high-profile leaders) और मौजूदा सांसदों को भी मैदान में उतारा और अपनी चुनावी रणनीति में ऐसे बदलाव किए जिससे मतदाताओं को यह आभास हुआ कि उनमें से कोई भी चुनाव के बाद भाजपा का मुख्यमंत्री पद का चेहरा हो सकता है.
2018 के बाद से, जब भाजपा चुनाव हारी थी और कांग्रेस में विद्रोह के बाद सत्ता में वापस आई,तो बीजेपी ने संगठन के पुनर्निर्माण, और अपने समर्थन के विस्तार की प्रक्रिया को मजबूत करने के लिए समय और संसाधन खर्च किए थे. ये वही कैडर था जिसे 17 नवंबर को मतदान से चार सप्ताह पहले सक्रिय किया गया था.
वहीँ दूसरी ओर कांग्रेस संगठनात्मक मजबूती की कमी (Congress lacks organizational strength) के कारण अंतिम समय तक अपनी बढ़त कायम रखने में विफल रही. इसका सटिक उदाहरण बीजेपी नेता का बयान है जिसमें ये कहा गया की 'भाजपा की 90% बूथ समितियाँ सुबह 8.30 बजे तक काम कर रही थीं, जबकि कांग्रेस सुबह 9.30 बजे तक भी अपने बूथ सेट करने के लिए संघर्ष कर रही थी' अनाम भाजपा नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'पहली छमाही में मतदान का उच्च प्रतिशत उनकी पार्टी की लामबंदी के कारण हुआ'