नए संसद भवन के उद्घाटन पर सियासा बवाल मचा हुआ है. कांग्रेस, आप और टीएमसी समेत 19 विपक्षी दल इसके उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं. क्या आपको पता है कि नया और पुराना संसद भवन ही नहीं, राष्ट्रपति भवन (president house) भी किन गांवों को उजाड़कर बनाया गया. अंग्रेजों ने यहां के ग्रामिणों को जमीन देने का वादा कर गांव खाली करवा लिया और इस जगह पर वायसराय हाउस बनाया गया, जो अब राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाता है. बाद में संसद भवन भी बना और अब नया संसद भवन(parliament house) सेंट्रल विस्टा (central vista) भी बनकर तैयार है. इस पूरी जमीन पर कभी माल्चा, कुशक और रायसीना गांव (raisina village) बसा था. जहां सभी जाति और धर्म के लोग एक साथ रहते थे. तोप के दम पर जब अंग्रेजों ने इस गांव को खाली करवा लिया तो यहां के निवासी हरियाणा के सोनीपत जिले में जाकर बस गए.
जमीन अधिग्रहण का काम 1912 में शुरू हुआ था. उस वक्त भारत पर अंग्रेजों की हुकूमत थी. 1911 में किंग जॉर्ज ने घोषणा की, और नाटकीय ढंग से भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली लाया गया. इस स्थान पर 300 परिवार रहते थे जिन्हें रायसीना गांव के नाम से जाना जाता था. सरकार ने इन रायसीना परिवारों के जमीन का अधिग्रहण कर लिया. महल के निर्माण के लिए इन गांव को हटा दिया गया था. करीब 4000 एकड़ जमीन पर राष्ट्रपति भवन बना हुआ है.
वर्तमान में हरियाणा में सोनीपत से चार किलोमीटर की दूरी पर मालचा नाम से एक गांव बसा है, जो यहां से भागकर गए लोगों ने बसाया था. इसके अलावा लोग कुरुक्षेत्र व दिल्ली के अलीपुर के पास भी बस गए थे. जो अब कुशक गांव है. गांव को उजाड़ने से पहले अंग्रेजों ने गांव के बुजुर्गो व जमींदारों से वादा किया था कि उन्हें वर्तमान पाकिस्तान के मिटगुमरी और झज्जर जिला के छुछकवास में बसाया जाएगा. लेकिन उजाड़ने के बाद उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया गया.
1857 की क्रांति का दमन करते हुए जब अंग्रेजों ने लाल किले को घेर लिया था तो मुगल बादशाह (mughal empire) बहादुरशाह जफर (bahadurshah zafar) बचते-बचाते मालचा गांव पहुंचे थे. जहां बुजुर्गो ने पगड़ी पहनाकर उनके साथ संघर्ष की शपथ ली थी. उस समय 360 गांव की पंचायत पालम गांव के अंतर्गत आती थी. पंचायत ने अपने बादशाह का साथ देने का वादा किया था. कहा जाता है कि उसी वक्त बादशाह को अंदाजा लग गया था कि अब भविष्य में क्या होने वाला है.
आपको बता दें कि यह गांव किसी समय महाराजा जोधपुर की रियासत था. पुराना जयपुर रोड इस गांव के पास से गुजरता था. इस गांव में समस्त बिरादरी निवास करती थीं, जिसमें ब्राहमण, मुस्लिम, जाट, सैनी आदि खेती करते थे, जबकि हरिजन, लोहार, सुनार, मनियार, कुम्हार आदि अपने पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े थे.
कहा जाता है कि मालचा गांव की सीमाएं और उनकी जमीनें पहाड़गंज से लेकर चाणक्यपुरी तक फैली थीं. चाणक्यपुरी क्षेत्र (chankyapuri area) में एक सड़क का नाम भी मालचा गांव के नाम पर है. मुआवजे के लिए दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट (tishajari court) में मुकदमा भी चला, लेकिन अभीतक कोई हल नहीं निकला.