महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाया गया पहला जन आंदोलन, असहयोग आंदोलन (Non-cooperation Movement) ही था. इस आंदोलन को बड़े पैमाने पर जन समर्थन मिला था. शहरी क्षेत्र में मिडिल क्लास और ग्रामीण क्षेत्र में किसानों, आदिवासियों का भी इसे पूरा समर्थन मिला. श्रमिक वर्ग ने भी इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सेदारी ली थी. इस तरह यह देश का पहला जन आंदोलन बन गया था.
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1914-1918 के पहले विश्व युद्ध (First World War) के दौरान अंग्रेजों ने मीडिया पर बैन लगा दिया था और बगैर जांच जेल भेजने की अनुमति भी दे दी थी. अब सर सिडनी रॉलेट (Sidney Rowlatt) की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिशों के आधार पर इस मुश्किल फैसले को जारी रखा गया. इसके जवाब में गांधीजी ने देशभर में इस अधिनियम (*रॉलेट एक्ट*) के खिलाफ़ अभियान चलाया. आइए आज जानते हैं असहयोग आंदोलन की कहानी (History of Non-cooperation Movement) को गहराई से...
भारत की आजादी के आंदोलन में एक दौर ऐसा भी आया था जब देश में एक के बाद एक मैराथन स्टाइल में कई बड़ी यूनिवर्सिटीज खुलीं...ये दौर था साल 1920 का...तब करीब दो साल के अंदर देश में 6 यूनिवर्सिटीज न सिर्फ खुले बल्कि वहां पढ़ाई भी शुरू हो गई. इस लिस्ट में शामिल हैं- काशी विद्यापीठ (Kashi Vidyapith), बिहार विद्यापीठ (Bihar Vidyapeeth), गुजरात विद्यापीठ (Gujarat Vidyapith), बनारस विद्यापीठ (Banaras Vidyapith), तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ (Tilak Maharashtra Vidyapeeth) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (Aligarh Muslim University)...
नेताजी सुभाषचंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) ने IAS की नौकरी को ठोकर मारी और नेशनल कॉलेज कलकता (National College Calcutta) के प्रधानाचार्य बन गए. तकरीबन पूरे देश में स्वदेशी भाव का ज्वार ऊफान मारने लगा. करीब छह लाख मजदूरों ने कारखानों में जाना बंद कर दिया.
पूरे देश में 70 लाख कार्यदिवसों का नुकसान हुआ. असम में चाय बगान बंद हो गए. यूपी में किसान सड़क पर दिखाई देने लगे. आंध्र के किसानों ने टैक्स देना बंद कर दिया. पंजाब में अकालियों ने सड़कें जाम कर दीं. आप ये जानना चाहेंगे कि आखिर ऐसा क्यों हुआ तो हम आपको बताते हैं उस अनोखे आंदोलन के बारे में जिससे देश में गांधी युग की शुरुआत हुई...जी हां, आज की तारीख का संबंध असहयोग आंदोलन से है. आज ही के दिन 1 अगस्त 1920 को गांधी जी ने इसका ऐलान किया था. आज हम बात करेंगे 1857 के बाद हुए देश के सबसे बड़े जनआंदोलन की जिसने अंग्रेजी सत्ता को पूरी तरह से झकझोर दिया था.
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वो तारीख थी 11 मार्च 1922...सुबह का वक्त था... अहमदाबाद के सर्किट हाउस में जस्टिस सीएन ब्रूमफील्ड (Justice CN Broomfield) की अदालत में ऐसा नजारा था जिसकी शायद ही कभी किसी ने कल्पना भी की होगी. कटघरे में खड़े थे महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और सामने जज मुकदमे में जिरह शुरू होने का इंतजार कर रहे थे...सबसे पहले गांधी पर लगे आरोपों को पढ़ा गया. जिसके मुताबिक महात्मा गांधी ने 29 सितंबर 1921, 15 दिसंबर 1921 और 23 फरवरी 1922 को यंग इंडिया में तीन लेख लिखकर सरकार के खिलाफ असंतोष भड़काया है. इन तीनों लेखों की हेडलाइन क्रमश: वफादारी से छेड़छाड़, पहेली और इसके समाधान और प्रेतों को हिलाना थी.
जस्टिस ब्रूमफील्ड ने गांधी जी से पूछा कि क्या वे दोष स्वीकार करते हैं या वकालत करने का दावा करते हैं. इस पर महात्मा गांधी ने कहा- मैं सभी आरोपों के लिए खुद को दोषी मानता हूं. मैं कोर्ट से छिपाना नहीं चाहता हूं कि सरकार की मौजूदा प्रणाली के खिलाफ असंतोष का प्रचार करना मेरे लिए एक जुनून बन गया है. यह मेरा कर्तव्य है, जिसे मुझे निभाना होगा. मैं बंबई, मद्रास और चौरी-चौरा की घटनाओं को लेकर लगाए गए आरोपों को स्वीकार करता हूं. लिहाजा एक जज के रूप में आपके लिए केवल एक रास्ता खुला है कि या तो आप पद से इस्तीफा दे दें या मुझे गंभीर सजा दें.
महात्मा गांधी के इस बयान पर जस्टिस ब्रूमफील्ड ने बापू के सामने सिर झुकाया और सजा सुनाई. सजा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि इस मामले में एक न्यायसंगत सजा निर्धारित करना बहुत मुश्किल है. मैंने अब तक जितने भी लोगों के खिलाफ सुनवाई की है या भविष्य में सुनवाई करूंगा, आप उन सबसे अलग व्यक्ति हैं. आपसे राजनीतिक मतभेद रखने वाले लोग भी आपको संत के तौर पर मानते हैं. इसके बाद उन्होंने बापू को छह साल की सजा सुनाई और सिर झुकाते हुए ये भी कहा- अगर सरकार इस सजा को कम कर दे तो मुझसे ज्यादा खुश कोई नहीं होगा.
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दरअसल, ये 1 अगस्त 1920 को गांधीजी के द्वारा शुरु किए असहयोग आंदोलन का क्लाइमेक्स था. ये देश में बापू के सर्वमान्य नेता बनने का काल था. मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) नाम का ये शख्स एक वकील के तौर पर दक्षिण अफ्रीका गया था और 20 सालों बाद साल 1915 में जब स्वदेश लौटा तो वो महात्मा बन चुका था. दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह के उनके प्रयोग की चर्चा भारत के चौक-चौराहों पर होने लगी थी. देश में वापस आने के बाद महात्मा ने चंपारण, अहमदाबाद और खेड़ा में जो आंदोलन खड़े किए उससे खुद उनको ही विश्वास होने लगा कि वे पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ एक बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकते हैं.
महात्मा गांधी की सोच में खाद-पानी डालने का काम किया रोलेट एक्ट और जलियांवाला बाग नरंसहार ने. हर जगह अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ असंतोष चरम पर था...ऐसे माहौल में गांधीजी ने 1 अगस्त 1920 में पूरे देश में असहयोग आंदोलन का ऐलान कर दिया. बाद में आंदोलन का प्रस्ताव कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में 4 सितंबर 1920 को औपचारिक तौर पर पारित हुआ.
यहां ये गौर करने वाली बात है कि शुरू में गांधी के प्रस्ताव का कई बड़े नामों से विरोध किया. जिसमें एनी बेसेंट (Annie Besant), सुरेन्द्रनाथ बनर्जी (Surendranath Banerjee), मदनमोहन मालवीय (Madan Mohan Malviya), देशबन्धु चित्तरंजन दास (Deshbandhu Chittaranjan Das), विपिनचन्द्र पाल (Bipin Chandra Pal), मुहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah) और शंकर नायर (Shankar Nair) जैसे नाम शामिल थे. हालांकि अली बन्धुओं एवं मोतीलाल नेहरू के समर्थन से यह प्रस्ताव कांग्रेस ने स्वीकार कर लिया. यही वह क्षण था, जहां से गांधी युग की शुरुआत हुई.
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देश में पहली बार विदेशी शासन के विरुद्ध सीधी कार्रवाई शुरू हो गई. सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार शुरू हो गया. वकीलों ने अदालतों का बहिष्कार कर दिया. आपसी विवाद पंचायत में निपटाए जाने लगे. विदेशी सामानों को पूरी तरह से ना कर दिया गया. गांधी जी आह्वान पर देश में अलग ही माहौल बन गया. लोग शराब की दुकानों के खिलाफ भी आंदोलन करते दिखे.
बापू ने आंदोलन को चलाने के लिए देशवासियों से आर्थिक सहयोग मांगा तो देखते ही देखते एक करोड़ रुपये जमा हो गए. इसी दौरान अप्रैल 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल्स भारत आए लेकिन हर जगह पर उनका स्वागत काले झंडे दिखा कर हुआ. बौखलाई अंग्रेज हुकूमत ने दमन चक्र शुरू कर दिया लेकिन जितना ही दमन बढ़ता आंदोलन उतना ही तेज होता.
इसी बीच बीच 5 फ़रवरी, 1922 को देवरिया ज़िले के चौरी चौरा नामक स्थान पर भीड़ ने थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मौत हो गई. खबर महात्मा गांधी तक भी पहुंची और उन्होंने तत्काल ही असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने का ऐलान कर दिया.
गांधी के इस फैसले का कई बड़े नामों ने विरोध किया. मसलन मोतीलाल नेहरू ने कहा कि- यदि कन्याकुमारी के एक गाँव ने अहिंसा का पालन नहीं किया, तो इसकी सज़ा हिमालय के एक गाँव को क्यों मिलनी चाहिए. सुभाष चंद्र बोस ने कहा- ठीक इस समय, जबकि जनता का उत्साह चरम पर है आंदोलन को वापस लेना दुर्भाग्य है. लेकिन गांधी टस से मस नहीं हुए. आंदोलन तो खत्म हुआ लेकिन पूरा देश एकजुट हो गया.
अब चलते-चलते आज की तारीख में घटी दूसरी अहम घटनाओं पर भी निगाह डाल लेते हैं.
1916: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष एनी बेसेंट ने होम रूल लीग की शुरुआत की
1920: भारतीय राष्ट्रवादी नेता बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) का निधन
1932: जानी मानी हिंदी फ़िल्म अभिनेत्री मीना कुमारी (Meena Kumari) का जन्म
1960: पाकिस्तान की राजधानी कराची से बदलकर इस्लामाबाद (Islamabad) कर दिया गया
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