Abdul Kalam Death Anniversary : जब कलाम के पूर्वज ने बचाई थी भगवान की मूर्ति, पीढ़ियों तक मिला सम्मान!

Updated : Jul 30, 2022 21:52
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Editorji News Desk

Abdul Kalam Death Anniversary : बात 1979 की है... SLV3 रॉकेट की लॉन्चिंग (SLV3 Rocket Launching) थी. रॉकेट को छोड़ा जाना था. महान साइंटिस्ट डॉ. APJ अब्दुल कलाम (Dr. A. P. J. Abdul Kalam) और उनकी टीम 19 साल से मेहनत कर रही थी. कलाम इस प्रोजेक्ट के डायरेक्टर थे. दुनिया की सारे बड़े मीडिया हाउस वहीं मौजूद थे. सभी की नजरें इस मिशन पर थीं. उल्टी गिनती शुरू हुई... ये देश का बहुत बड़ा सपना था, रॉकेट टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर होने का.

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SLV3 अपने समय में हवा में उड़ा. रॉकेट ने पहली स्टेज पार कर ली लेकिन दूसरी स्टेज पर जाने के बाद इंजन ने काम करना बंद कर दिया और 317 सेकेंड बाद रॉकेट असफल होकर समंदर में जा गिरा.

जब कलाम को सतीश धवन ने दिया सहारा

अब्दुल कलाम इस मिशन के हेड थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्या क्या जवाब देंगे? रिपोर्टर देश के पैसे की बर्बादी के आरोप लगाएंगे. ये सोचकर ही वे बहुत घबराए हुए थे. तभी इसरो के चेयरमैन सतीश धवन (Satish Dhawan) उनके पास आए और बोले- तुम लैब में जाओ और अगले रॉकेट लॉन्च की अभी तैयारी करो. मैं प्रेस कॉन्फ्रेंस को संभालता हूं. वहां पर चिल्लाते हुए व सवाल करते हुए रिपोर्टरों से वो बोले- इस नाकामी की मैं पूरी जिम्मेदारी लेता हूं. लेकिन ठीक एक साल बाद हम फिर से रॉकेट लॉन्च करेंगे और वो रॉकेट यही टीम बनाएगी.

सतीश धवन ने कलाम को हताश व निराश नहीं होने दिया. दोबारा से पूरी टीम जोश के साथ अगले मिशन पर लग गई. जब अगले साल 1980 में भारत ने रॉकेट छोड़ा तो वो सफलता से अंतरिक्ष में सेट हो गया. अब फिर से प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. इस बार सतीश धवन के साथ प्रेंस कॉन्फ्रेंस में मौजूद थे अब्दुल कलाम. धवन ने कामयाबी का पूरा श्रेय कलाम और उनकी टीम के माथे पर बांध दिया.

भारत के पूर्व राष्ट्रपति कलाम के प्रति ऐसा था उनके वरिष्ठों का विश्वास.... 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे अबुल पाकीर जैनुलअब्दीन अब्दुल कलाम का निधन साल 2015 में आज ही के दिन यानी 27 जुलाई को हुआ था. आज हम पलटेंगे कलाम की जिंदगी के अनछुए पन्नों को... झरोखा के इस खास एपिसोड में.

कलाम के भाई अखबारों के डिस्ट्रिब्यूटर थे

डॉ. कलाम के बाल जीवन पर उनके चचेरे भाई शम्सुद्दीन (Abdul Kalam Brother Shamsuddin) का गहरा प्रभाव पड़ा. शम्सुद्दीन रामेश्वरम में अखबारों के डिस्ट्रिब्यूटर थे. उन दिनों तमिलनाडु में दिनमणि अखबार की मांग सबसे ज्यादा थी. अखबार में जो कुछ भी छपा होता था, उसे समझने में कलाम उस समय समर्थ नहीं थे लेकिन एक बच्चे की उत्सुकता अखबार को देखकर बढ़ जाती थी. कलाम अखबार में छपी तस्वीरों पर नजर जरूर डालते थे.

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साल 1939 में जब दूसरा विश्वयुद्ध छिड़ा तब कलाम की उम्र सिर्फ 8 साल की थी. युद्ध के बीच ही बाजार में इमली के बीजों की मांग अचानक बढ़ गई. हालांकि, कलाम को इसकी वजह नहीं पता थी, फिर भी उन्होंने इमली के बीजों को इकट्ठा करना और परचून की दुकान पर बेचना शुरू कर दिया... इससे उन्हें हर रोज एक आना मिल जाता था.

उस वक्त विश्वयुद्ध की वजह से भारत में इमर्जेंसी की घोषणा कर दी गई थी. इसका असर ये हुआ कि रामेश्वरम स्टेशन पर गाड़ी का ठहरना बंद हो गया. ऐसी स्थिति में भाई शम्सुद्दीन के अखबारों के बंडल रामेश्वरम और धनुषकोडि के बीच रामेश्वरम रोड पर चलती गाड़ी से गिरा दिए जाते थे. तब शम्सुद्दीन को एक ऐसे मददगार की जरूरत पड़ी, जो अखबार के गिरे हुए बंडलों को उठाने में उनकी मदद करता. बालक कलाम उनका हाथ बंटाने के लिए तैयार हो गए. इस तरह कलाम को पहली तनख्वाह भाई शम्सुद्दीन के हाथों मिली.

रामेश्वरम एक छोटा सा टापू था

कलाम का शहर रामेश्वरम एक छोटा सा टापू था. इसकी उच्चतम चोटी गंधमादन पर्वतम् (Gandhmadan Parvat) थी. इस चोटी पर चढ़कर आप सारे रामेश्वरम को देख सकते हैं, नारियल के हरे पत्ते हर तरफ दिखाई देते थे. रामनाथ स्वामी मंदिर गोपुरम आकाश की ऊंचाइयों को छूता है. यहां रहने वाले लोगों की कमाई का साधन नारियल की खेती, मछली व्यापार, पर्यटन है. यह स्थान इस पवित्र तीर्थ स्थल के कारण प्रसिद्ध हुआ था. रामेश्वरम का पवित्र पर्यटन स्थल भारत का मशहूर पर्यटन स्थल है, जो हर समय दर्शनार्थियों से भरा रहता है.

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इस छोटे से शहर में मुख्यतः हिंदुओं के घर थे. कहीं कहीं मुस्लिमों के घर भी थे. कुछ ईसाई परिवार भी रहा करते थे. इस शहर में सभी शांतिपूर्वक रहा करते थे. कलाम के पिता ने उन्हें उनके दादाजी के दादाजी की कहानी सुनाई थी, जिन्होंने एक बार रामनाथस्वामी मंदिर (Ramanathaswamy Temple) की मुख्य मूर्ति बचाई थी. एक प्रमुख त्योहार में भगवान की मूर्ति को गर्भगृह से एक जुलूस के साथ मंदिर परिसर में ले जाया गया था. एक बार इस समारोह के दौरान लगातार घटित होने वाली घटनाओं के चलते न जाने वह मूर्ति कब एक टैंक में गिर गई और किसी को इसका पता ही न चला.

लोगों को जब इसका पता चला तो वे इसे आने वाली विपत्ति का संकेत समझकर भयभीत हो गए लेकिन भीड़ के बीच एक शख्स ने अपना धैर्य नहीं खोया था और सतर्कता के साथ पानी के टैंक में छलांग लगाकर उस मूर्ति को कुछ ही देर में निकाल लाया था. वे अब्दुल कलाम के दादाजी के दादाजी थे. अब वहां मौजूद लोगों की खुशी की सीमा न थी. मंदिर के पुजारी खुशी से झूम रहे थे, वे उन्हें धन्यवाद दे रहे थे. हालांकि वे जानते थे कि उनका धर्म मुस्लिम है लेकिन किसी के मन में इसे लेकर कोई दुराभाव नहीं था. 

कलाम के पूर्वजों को मिली थी ख्याति

कलाम के पूर्वज को किसी हीरो की तरह ख्याति मिली. उसके बाद घोषणा की गई कि हर  त्योहार में मंदिर की ओर से उन्हें सम्मानित किया जाएगा और उन्हें मुदल मरायादाई का आदर दिया जाएगा. यह एक अद्वितीय सम्मान था जो मंदिर की ओर से दूसरे धर्म को मानने वाले को दिया जाता था. यह मरायादाई कई बरसों तक चलती रही... बात में कलाम के पिताजी को भी मरायादाई सम्मान दिया जाता था.

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कलाम की शिक्षा और परिवेश का फर्क उनके व्यक्तित्व पर भी पड़ा और इस संगम के बूते ही वह आगे चलकर दुनिया के महान वैज्ञानिक बने... राष्ट्रपति पद से सेवामुक्त होने के बाद भी कलाम देशसेवा में जुटे रहे. इसी मिशन में लगे कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को मेघालय के शिलॉन्ग में उस वक्त हुआ था, जब वो आईआईएम में लेक्चर दे रहे थे...

चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं

1836: दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया के शहर एडीलेड (Adelaide City) की स्थापना हुई.
1913: आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाली महिला क्रांतिकारियों में से एक कल्पना दत्ता (Kalpana Datta) का जन्म हुआ था.
1976: चीन के तंगशान में आए विनाशकारी भूकंप में 2,40,000 लोग मारे गए.
1992: प्रसिद्ध अभिनेता अमजद ख़ान (Amjad Khan) का निधन हुआ था.
1999: पॉन्डिचेरी के माही क्षेत्र से फ़्रांसीसियों का शासन हटाने वाले प्रमुख शख्स आई. के. कुमारन (I. K. Kumaran) का निधन हुआ था.

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