उत्तर प्रदेश में दो संसदीय सीटों पर हो रहे उपचुनाव की वजह से राजनीतिक हलचल फिर तेज हो गई है. आजमगढ़ ( Azamgarh Parliament Seat Bypolls ) और रामपुर ( Rapur Parliament Seat Bypolls ) सीटों पर हो रहे उपचुनाव में सभी की नजरें हैं. समाजवादी पार्टी (एसपी) प्रमुख अखिलेश यादव ( Akhilesh Yadav ) ने आजमगढ़ की सांसदी से इस्तीफा दिया था. पहले इस सीट पर सुशील आनंद को टिकट दिए जाने की चर्चा थी लेकिन ऐन मौके पर पार्टी ने धर्मेंद्र यादव ( Dharmendra Yadav SP Candidate ) को टिकट धमा दिया.
आखिर क्या वजह रही कि एसपी ने बामसेफ के संस्थापक सदस्यों में शामिल रहे बलिहारी बाबू के बेटे सुशील आनंद ( Sushil Anand ) का टिकट काटकर ऐन मौके पर परिवार के ही धर्मेंद्र यादव को टिकट देने का फैसला किया? आइए जानते हैं अखिलेश की रणनीति को...
आजमगढ़ की 10 की 10 सीटें SP के खाते में
आजमगढ़ में विधानसभा की 10 सीटें आती हैं. इसमें से गोपालपुर, सागरी, मुबारकपुर, आजमगढ़, मेहनगर जहां आजमगढ़ संसदीय सीट के अंतर्गत आती हैं, तो अतरौलिया, निजामाबाद, फूलपुर-पवई, दीदारगंज और लालगंज सीटें लालगंज संसदीय सीटों के अंदर आती है. बड़ी बात ये है कि 2022 के विधानसभा चुनाव ( UP Assembly Elections 2022 ) में इन सभी सीटों पर एसपी ने कब्जा जमाया था और इसकी बड़ी वजह मुस्लिम और यादव वोट बैंक का एकजुट होकर पार्टी के पक्ष में आना था.
जिले में मुस्लिम आबादी 15 फीसदी से ज्यादा है. यादव वोट बैंक भी संख्या में प्रभावशाली है. पार्टी का यादव वोट बैंक बीएसपी के दलित कैडर से दूरी रखता है. अखिलेश किसी भी कीमत पर इस यादव वोट बैंक को नाराज नहीं करना चाहते थे, जो पहले लोकसभा के चुनाव में और फिर विधानसभा के चुनाव में उनके साथ मजबूती से खड़ा रहा.
गुड्डू जमाली और निरहुआ ने बढ़ाया SP का डर
शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ( Shah Alam Alias Guddu Jamali ) यहां BSP कैंडिडेट हैं. वहीं, बीजेपी ने भोजपुरी सुपरस्टार दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' ( Dinesh Lal Yadav 'Nirahua' ) को टिकट दिया है. 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश को यहां 60 फीसदी वोट मिले थे जबकि निरहुआ को 35 फीसदी. 2014 में इस सीट से मुलायम ने दावेदारी ठोंकी थी तब उन्हें 35.43 फीसदी वोट मिले थे.
2019 में अखिलेश को बढ़त इसलिए भी मिली क्योंकि बीएसपी और एसपी साथ मिलकर चुनाव लड़े थे. अब क्योंकि दोनों के रास्ते अलग है और बीएसपी ने प्रभावशाली मुस्लिम चेहरे गुड्डू जमाली को मैदान में उतार दिया है.
ऐसे में मुस्लिम वोट बंटने का भी अंदेशा है. वहीं, निरहुआ को लेकर भी पू्र्वांचल में लोगों की दीवानगी किसी से छिपी नहीं है. सुशील आनंद निश्चित ही इन दोनों के सामने कमजोर कैंडिडेट साबित हो रहे थे और लड़ाई दो दलों बीजेपी और बीएसपी के बीच होती दिखाई दे रही थी. ऐसे में जरा सी चूक, SP के सभी समीकरण ध्वस्त कर सकती थी.
धर्मेंद्र यादव को टिकट क्यों दिया गया?
आजमगढ़ में पहले SP के टिकट पर डिंपल यादव ( Dimple Yadav ) के चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट थी लेकिन तमाम तरह की मुश्किलों को देखते हुए आखिरकार पार्टी ने धर्मेंद्र यादव ( Dharmendra Yadav ) को चुना. हालांकि धर्मेंद्र यादव की सीट बदायूं रही है, जहां से अभी स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य ( Sanghmitra Maurya ) सांसद हैं. वह 2019 में बीजेपी के टिकट पर जीती थीं.
धर्मेंद्र ने ना ना करते हामी तो भरी लेकिन आजमगढ़ पहुंचकर ये भी कह दिया कि बदायूं से उनका रिश्ता कायम रहेगा. धर्मेंद्र को टिकट देने के पीछे पार्टी की मंशा ये संदेश देने की है कि सीट यादव परिवार के पास ही रहेगी. ऐसी स्थिति में वोटर एकजुट होकर मजबूती से SP का पक्ष ले सकता है.