चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) भारत के किसान नेता और 5वें प्रधानमंत्री रहे. चरण सिंह 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे थे. चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर 1902 को यूपी के हापुड़ में चौधरी मीर सिंह और नेत्र कौर के घर हुआ था. 1937 की अंतरिम सरकार में जब चरण सिंह विधायक बने तो सरकार में रहते हुए उन्होंने 1939 में कर्जमाफी विधेयक पास करवाया. एक जुलाई 1952 को यूपी में उनकी बदौलत ही जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला. चरण सिंह का ये कदम आज भी उन राजनीतिक दलों का मुख्य एजेंडा बना रहता है जो खुद को किसानों के हिमायती बताते हैं. आइए आज जानते हैं चौधरी चरण सिंह के बारे में
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ये बात है 1979 के अगस्त महीने की है...शाम के छह बजे थे. यूपी के इटावा जिले के ऊसराहार थाने में मैली धोती और कुर्ता पहने हुए एक शख्स पहुंचा. उसने सिपाही से कहा- मेरा बैल चोरी हो गया है साहब, रिपोर्ट लिख लो. सिपाही ने पहले तो अनसुना कर दिया लेकिन किसान अड़ गया तो उसे वो दारोगा के पास ले गया. दारोगा ने पुलिसिया अंदाज में किसान से 4-6 आड़े-टेढ़े सवाल पूछे और बिना रपट लिखे डांट-डपट कर चलता कर दिया.
निराश किसान लौटने लगा तो एक सिपाही पीछे से आया और कहा- बाबा थोड़ा खर्चा-पानी दे तो रपट लिख ली जाएगी. थोड़ा मोल-भाव करने के बाद में 35 रुपये की रिश्वत लेकर रपट लिखना तय हुआ. रपट लिख कर मुंशी ने किसान से पूछा- बाबा हस्ताक्षर करोगे कि अंगूठा लगाओगे.
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किसान ने कहा- हस्ताक्षर करूंगा. इसके बाद उसने न सिर्फ तहरीर पर साइन किया बल्कि जेब से एक मुहर निकाल कर कागज पर ठोंक भी दिया. उस मुहर पर लिखा था- प्रधानमंत्री, भारत सरकार. ये देखते ही हड़कंप मच गया...बाद में पूरा थाना ही सस्पेंड हो गया. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि थाने में कागज पर मुहर लगाने और साइन करने वाले शख्स थे देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह.
आज की तारीख यानी 28 जुलाई का संबंध किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी चरण सिंह है जिन्होंने आज ही के दिन बतौर प्रधानमंत्री देश की बागडोर संभाली थी.
23 दिसंबर 1902 को यूपी के हापुड़ में चौधरी मीर सिंह और नेत्र कौर के घर एक बालक का जन्म हुआ. जिसका नाम रखा गया चौधरी चरण सिंह. यही बालक बड़ा होकर किसानों की सबसे बड़ी आवाज बना. एक ऐसी आवाज जो अंग्रेजों के शासन काल में भी किसानों के लिए गूंजती थी. 1937 की अंतरिम सरकार में जब चरण सिंह विधायक बने तो सरकार में रहते हुए उन्होंने 1939 में कर्जमाफी विधेयक पास करवाया.
एक जुलाई 1952 को यूपी में उनकी बदौलत ही जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला. चरण सिंह का ये कदम आज भी उन राजनीतिक दलों का मुख्य एजेंडा बना रहता है जो खुद को किसानों के हिमायती बताते हैं.
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बहरहाल, भारत की सियासत में चौधरी साहब का नाम एक ऐसे ऐसे प्रधानमंत्री के तौर पर दर्ज है जिन्हें कभी संसद का सामना नहीं करना पड़ा. जी हां वे नौ महीने तक इस पद पर रहे लेकिन हालात ऐसे थे कि उन्हें संसद में कदम ही नहीं रख सके. चकराइए नहीं आपको कहानी शुरू से बताते हैं.
बात 1977 की है. केन्द्र में मोरारजी देसाई (Morarji Desai) की सरकार बनी. इस सरकार में चरण सिंह और जगजीवन राम (Jagjivan Ram) उप-प्रधानमंत्री बने. जगजीवन राम को रक्षा मंत्रालय मिला वहीं चरण सिंह को गृह मंत्रालय दिया गया. लेकिन इन तीनों नेताओं की आपस में बिल्कुल भी नहीं बनती थी. मोरारजी देसाई के बारे में चरण सिंह की राय थी कि वे Do-Nothing प्राइम मिनिस्टर हैं. उनकी शिकायत थी कि मोरारजी खुद फैसला लेते थे और किसी की सुनते नहीं थे.
यहां तक की 24 मार्च, 1978 को सीसीएस को दिए एक इंटरव्यू में चरण सिंह ने कहा था कि मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बनने की रेस में थे ही नहीं और ना ही उन्हें कोई सपोर्ट कर रहा था. बात तो तब जगजीवन राम को PM बनाने की हुई थी. इमरजेंसी को लेकर इंदिरा गांधी को जेल भेजने के मुद्दे पर भी चरण सिंह और मोरारजी देसाई की राय अलग थी. मोरारजी चाहते थे कि इंदिरा गांधी को सजा देने के लिए वही कानूनी प्रावधान अपनाएं जाएं जो पहले से हैं.
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वहीं चरण सिंह किसी भी हाल में इंदिरा को जेल भेजना चाहते थे. बाद में चरण सिंह इसमें सफल भी हुए और इंदिरा को गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा. इन्हीं वजहों से मोरारजी और चरण सिंह में मतभेद गहराते गए. हालात यहां तक बिगड़ गए कि साल 1978 में मोरारजी देसाई ने चरण सिंह को अपनी कैबिनेट से बाहर कर दिया. खटपट बढ़ती गई और मोरारजी की सरकार गिर गई.
मोरारजी की सरकार गिरने के बाद चरण सिंह ने एक ऐसा कदम उठाया जिसके लिए आज भी उनकी आलोचना होती है. दरअसल, जिस इंदिरा गांधी के खिलाफ नारा देकर उन्होंने चुनाव लड़ा था उन्हीं की पार्टी से समर्थन लेकर चरण सिंह ने सदन में बहुमत साबित किया.
28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) और कांग्रेस (आई) के समर्थन से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने. लेकिन शपथ लेने के ठीक एक महीने बाद ही इंदिरा गांधी ने चरण सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इसके बाद चरण सिंह को इस्तीफा देना पड़ा. हालात ऐसे बने की छठी लोकसभा भंग करनी पड़ी.
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चुनाव आयोग को चुनाव की तैयारियों के लिए समय चाहिए था, इसलिए करीब 6 महीनों तक चरण सिंह ही प्रधानमंत्री बने रहे. यही वजह है जिसके कारण चौधरी साहब ने बतौर प्रधानमंत्री संसद का सामना नहीं किया. बाद में साल 1980 के चुनाव में सबसे बड़ा झटका खुद चौधरी चरण सिंह को ही लगा. इंदिरा गांधी को 351 सीटों पर जीत मिली और सत्ता में उनकी शानदार वापसी हुई.
अब चलते-चलते आज के दिन की दूसरी अहम घटनाओं पर भी निगाह मार लेते हैं.
1914: प्रथम विश्व युद्ध (First World War) की शुरुआत हुई
1925: हेपेटाइटिस (Hepatitis) का टीका खोजने वाले बारुक ब्लमर्ग का जन्म
2001 : पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री मोहम्मद सिद्दिकी ख़ान कंजू (Mohammed Siddique Khan Kanju) की हत्या
2005: सौरमंडल के दसवें ग्रह की खोज का दावा