Dalai Lama: दलाई लामा ने लेह से चीन को संदेश! जानें तिब्बती धर्मगुरु और China के रिश्ते की हकीकत

Updated : Jul 23, 2022 16:25
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Editorji News Desk

तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) कोरोना महामारी फैलने के बाद से दो साल में अपने पहले बड़े दौरे में 15 जुलाई को लेह पहुंचे. शुक्रवार सुबह लद्दाख रवाना होने से पहले जम्मू में मीडिया से बातचीत करते हुए दलाई लामा ने कहा कि पड़ोसी देशों में शांति होना बहुत जरूरी है. इस दौरान दलाई लामा ने कहा है विश्व के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों, भारत व चीन को अपने विवाद बातचीत से हल करने होंगे. उन्होंने कहा, आज के दौर में इसके लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल करना मायने नहीं रखता है. वे वहां एक महीने तक रहेंगे. 

दलाई लामा की लद्दाख यात्रा को लेकर चीन के नाराज होने की आशंका है. पूर्वी लद्दाख में टकराव के कई बिंदुओं पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सैन्य गतिरोध के बीच आध्यात्मिक नेता की लद्दाख यात्रा हो रही है. 

इस पर बीच भारत ने भी इस यात्रा पर प्रतिक्रिया दी है. भारत ने दलाई लामा की यात्रा पर स्पष्ट किया कि तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की लद्दाख यात्रा ‘पूरी तरह से धार्मिक’ है और किसी को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए. एक शीर्ष सरकारी पदाधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. दलाई लामा शुक्रवार को चीन की सीमा से लगे केंद्र शासित प्रदेश पहुंच रहे हैं.

दलाई लामा से क्यों चिढ़ता है चीन

असल में चीन और दलाई लामा के संबंध उसके तिब्बत के साथ संबंध में छिपे हुए हैं. चौदहवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए तिब्बत में अलग स्कूल की स्थापाना हुई और वहीं से गेंद्रुन द्रुप पहले दलाई लामा बनकर निकले. दलाई लामा को तिब्बती गुरू और नेता दोनों रूप में देखते है. एक तरह से उन्हें पथ प्रदर्शक के रूप में माना जाता है. लेकिन इस बीच 19 वीं शताब्दी तक तिब्बत और चीन के बीच स्वतंत्रता को लेकर संघर्ष चलता रहा. 1912 में 13 वें दलाई लामा ने तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया. लेकिन 1949 में कम्युनिस्ट चीन ने तिब्बत पर हमला कर दिया और 1951 में उस पर कब्जा कर लिया.

चीन की दमनकारी नीतियों को देखते हुए 17 मार्च 1959 में 14 वें दलाई लामा ने तिब्बत से निकलकर भारत में अपने हजारों अनुयायियों के साथ शरण मांगी और भारत आकर हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए लेकिन भारत का दलाई लामा को शरण देना चीन  को अच्छा नहीं लगा और 1962 में भारत-चीन युद्ध की एक अहम वजह यह भी रही. उसी समय से दलाई लामा भारत में निर्वासित जीवन जी रहे हैं और भारत द्वारा उन्हें समर्थन देना, चीन को खटकता रहता है. 

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बता दें कि इससे पहले भी चीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दलाई लामा को दी गई बधाई पर, चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारतीय पक्ष को 14वें दलाई लामा के चीन विरोधी अलगाववादी स्वभाव को पूरी तरह से पहचानना चाहिए.  उसे चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का पालन करना चाहिए, समझदारी से बोलना और कार्य करना चाहिए तथा चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए तिब्बत से संबंधित मुद्दों का इस्तेमाल बंद कर देना चाहिए. 

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