द्रौपदी मुर्मू देश की राष्ट्रपति बन गई हैं. मुर्मू के साथ ओडिशा विधानसभा में विधायक रहे बहालदा विधानसभा सीट से पूर्व विधायक प्रह्लाद पुर्ति से editorji ने खास बात की. पुर्ति ने मयूरभंज जिले और आसपास के माहौल पर खुलकर बात की और अपने विचार भी रखे.
2004-2009 में साथ साथ विधायक रहे मुर्मू-पुर्ति
प्रह्लाद पुर्ति 2004 से 2009 में ओडिशा विधानसभा में द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) के साथ ही विधायक रहे हैं. हमने उनसे पूछा कि जब कोई हस्ती बड़े पद पर पहुंचती है तो दिल्ली एनसीआर में उसके घर-गांव से खबरें तो बहुत जल्दी पहुंच जाती है लेकिन मुर्मू के मयूरभंज जिले (Mayurbhanj District in Odisha) में क्या माहौल है?
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इसपर उन्होंने कहा- आज जब मुर्मू, मयूरभंज जिले से निकलकर राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंच गई हैं, तो ये पूरे जिले और आदिवासी क्षेत्र के लिए खुशी का माहौल है. आज लगता है कि हमारा मयूरभंज जिला भी पूरे देश या अंतरराष्ट्रीय पटल पर आप लोगों से सीधे जुड़ पा रहा है, ये भी बड़ी बात है.
अपना अनुभव बताए जाने के सवाल पर प्रह्लाद पुर्ति (Prahlad Purti) ने कहा कि मैं 2004 से 2009 के दौरान उनके साथ कार्य करने का अनुभव मिला. जब मंत्री थीं तो निचले स्तर तक के लोगों से मिलती थीं. काम बहुत सलीके से करती थीं. लोगों से अपनेपन का व्यवहार करती थीं. हर प्रक्रिया और मुद्दे को पढ़कर जाती थीं.
विधानसभा में जब हम लोग आदिवासियों के ऊपर चर्चा चल रही थी, उसपर मुर्मू ने संबोधित किया था. उन्होंने आदिवासियों से जुड़े सवाल पर कहा कि हम सभी हिंदू नहीं हैं, ये बातें द्रौपदी मुर्मू ने भी विधायक रहते कही थीं. उन्होंने कहा था कि हम सभी sarnaism है. हम हिंदू विरोधी तो नहीं हैं, लेकिन हमारी एक पहचान है, एक परिचय है. अपने समाज के लोगों को एक अलग दर्जा हम चाहते हैं, इसपर उनका स्पष्ट रवैया रहा है.
चार साल में परिवार के 3 सदस्यों को खोने और फिर उबरने की बात पर प्रह्लाद पुर्ति ने कहा कि ब्रह्माकुमारी संस्था से तब मुर्मू जुड़ चुकी थीं, उन्होंने ब्रह्माकुमारी (Brahma Kumaris) की मदद से ही खुद को संभाला और आगे बढ़ीं. झारखंड की राज्यपाल बनने के बाद मैं मिला था तब उन्होंने कहा कि आज जिन लोगों को मेरे साथ खुशी में शरीक होना था, वो तो हैं ही नहीं. सिर्फ एक बेटी है. बातें साझा की थीं लेकिन हमने ढांढस बंधाया. समाज और जीवनकाल में ऐसा होता रहता है, तो हमें और आगे चलकर समाज के लिए काम करना होता है.
गवर्नर के तौर पर वो बढ़ियां से काम कर पाईं और हमेशा आदिवासी हित की बात कर पाईं.
आदिवासियों की क्या समस्या है, संवैधानिक दर्जा आज तक नहीं मिल पा रहा है. हमारे ही लोग विभिन्न जातियों में अलग अलग राज्यों में मौजूद हैं. असम में हमारी जाति को टी ट्राइब कहा जाता है. बंगाल में संथाल आदिवासियों को सही परिचय नहीं मिल पाया है. हम चाहते हैं कि आदिवासियों को संवैधानिक अधिकार और पहचान पूरे देश में एक होना चाहिए. महामहिम द्रौपदी मुर्मू अपने समाज, भाषा और संस्कृति के लिए काम करेंगी.
मयूरभंज जिले में या आदिवासी क्षेत्र में इष्टदेवता की पूजा कर रहे हैं, ताकि मुर्मू आने वाले वक्त में समाज और देश के लिए कार्य कर सकें. आज आदिवासी तरीके से पूरे क्षेत्र में सब जश्न मना रहे हैं. आदिवासियों की एक नई पहचान बनी है. अब आदिवासी पूरे विश्व में जाने जाएंगे.
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2017 में झारखंड की राज्यपाल रहते सीएनटी और एसटीपी बिल लौटा दिया था. प्रह्लाद पुर्ति ने कहा कि इसमें सरकार के विरोध जैसी कोई बात नहीं है लेकिन हां, जहां आदिवासियों के हित की बात आएगी वह पीछे नहीं हटेंगी.