Fight in Family Politics: पुरानी है सियासत में पारिवारिक कलह की कहानी, कहीं भाई तो कहीं भतीजे ने दगा दिया

Updated : Jul 06, 2023 19:49
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Editorji News Desk

Fight in Family Politics: महाराष्ट्र में सियासी उफान जोरो पर है.  बड़ी बात यह है कि इस सियासत में जनता नहीं, परिवार लड़ रहा है. कभी कांग्रेस से अलग होकर शरद पवार ने जिस राजनीतिक पार्टी एनसीपी का गठन किया था. आज उसी पर भतीजे अजित पवार ने कब्जा कर लिया है. वैसे देखा जाए तो सियासत में पारिवारिक लड़ाई कोई नई नहीं है.

इनसे पहले महाराष्ट्र में ही राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच की सियासी लड़ाई हो चुकी है. उत्तर प्रदेश में तो अखिलेश यादव और चाचा शिवपाल यादव के बीच लड़ाई तो पूरे प्रदेश में हिंसक रूप ले चुकी थी. हालात यहां तक खराब हो गए थे कि पिता मुलायम सिंह यादव ने भी अखिलेश से दूरी बना ली थी.

बिहार में रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जन शक्ति पार्टी पर अधिकार के लिए पशुपति पारस ने चिराग पासवान का तख्ता पलट दिया था. वहीं पंजाब के कद्दावर नेता रहे दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के परिवार में टूट राजनीतिक सुर्खियों में रही थी. प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत बादल ने बगावत कर अलग पार्टी बना ली थी.

सियासत में पारिवारिक लड़ाई बिहार में भी देखने को मिली. यहां साल 2021 में लालू यादव के दोनों बेटे तेज प्रताप और तेजस्वी के बीच जगदानंद सिंह को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर घमासान हो गया था. बाद में लालू यादव ने दोनों बेटों को दिल्ली बुलाकर सुलह करवाई थी. भारतीय राजनीति के इतिहास में सबसे बड़ी सियासी लड़ाई तो सोनिया गांधी और मेनका गांधी के बीच देखने को मिली. 28 मार्च 1982 की रात मेनका गांधी ने अचानक अपने दो साल के बेटे वरुण गांधी को गोद में लेकर इंदिरा गांधी का घर छोड़ दिया था. अब मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी बीजेपी में हैं.

अजित पवार ने की बगावत

अभी महाराष्ट्र में पारिवारिक लड़ाई जारी है. अजित पवार ने बगावत करने हुए चाचा शरद पवार की पार्टी पर न सिर्फ दावा ठोक दिया है. बल्कि करीब तीन दर्जन से अधिक विधायकों के साथ शिंदे सरकार में शामिल हो गए हैं. इस बगावत से शरद पवार की 25 साल पुरानी पार्टी टूट गई. अजित पवार इससे पहले भी नवंबर 2019 में बगावत कर बीजेपी से हाथ मिला चुके थे. लेकिन तब डैमेज कंट्रोल हो गया था.

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे का विवाद

महाराष्ट्र के सियासत में यह पहली पारिवारिक लड़ाई थी. पार्टी में राज ठाकरे को शिवसेना का वारिस माना जाता था. लेकिन, शिवसेना टूट गई और राज ठाकरे की जगह शिवसेना के सिंहासन पर उद्धव ठाकरे बैठ गए. राज ठाकरे ने मराठी अस्मिता का नारा बुलंद करते हुए  महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना नाम से नई पार्टी बनाई.

बिहार में तेजप्रताप और तेजस्वी के बीच विवाद

राष्ट्रीय जनता दल में भी दोनों भाइयों के बीच बगावत देखने को मिली. यहां साल 2021 में लालू यादव के दोनों बेटे तेजस्वी यादव और तेजप्रताप यादव के बीच जगदानंद सिंह को बिहार का प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने पर घमासान हो गया था. दोनों भाइयों ने एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी कर सियासी और पारिवारिक दोनों ही माहौल को गरमा दिया था. बाद में लालू यादव नें दोनों भाइयों की सुलह करवाई.

चिराग और पशुपति पारस

बिहार में लोक जन शक्ति पार्टी (LJP) पर अधिकार की लड़ाई जून 2021 में सामने आई. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के निधन के एक साल के भीतर ही  परिवार में पार्टी पर कब्जे की जंग देखने को मिली. दरअसल, जब रामविलास केंद्र की सियासत किया करते थे तो बिहार की राजनीतिक फैसले पशुपति पारस लिया करते थे. भाई के निधन के बाद पशुपति कुमार पारस एक्टिव हुए और LJP के छह में से पांच सांसदों को अपने पाले में किया और भतीजे चिराग पासवान का तख्तापलट कर दिया. पशुपति ने संसदीय दल के नेता के पद के साथ-साथ पार्टी पर भी कब्जा जमा लिया है.

यूपी में अखिलेश और शिवपाल यादव का विवाद

यूपी की पॉलिटिक्स में सुर्खियों में रहने वाला यादव कुनबा भी विवादों से नहीं बच सका. समाजवादी पार्टी के संस्थापक दिवंगत मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत पर काबिज होने के लिए चाचा शिवपाल यादव और भतीजे अखिलेश यादव के बीच 2016 के आखिर में जंग छिड़ गई थी. दरअसल, सपा की कमान जब तक मुलायम सिंह यादव के हाथ में रही तब तक शिवपाल यादव ही पार्टी के सर्वेसर्वा हुआ करते थे. संगठन से लेकर सरकार तक के तमाम फैसले वही किया करते थे. ऐसे में शिवपाल खुद को मुलायम का उत्तराधिकारी समझ रहे थे, लेकिन मुलायम ने अपनी सियासी विरासत भाई को देने के बजाय साल 2012 में बेटे को अखिलेश यादव को सौंप दी. 
शिवपाल ने 2017 के चुनाव से ठीक पहले भतीजे अखिलेश यादव के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. चाचा-भतीजे की लड़ाई घर से सड़क तक आ गई. 30 दिसंबर 2016 को  ऐसी भी परिस्थित बनी कि तत्कालीन अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने बेटे अखिलेश यादव और चचेरे भाई रामगोपाल यादव को पार्टी से निकाला दिया. वहीं, अखिलेश ने अगले 2 दिन बाद यानी एक जनवरी 2017 को विशेष अधिवेशन बुला लिया, जहां मुलायम की जगह अखिलेश यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए और शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. बाद में शिवपाल ने खुद की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली. ऐसे में मुलायम सिंह कभी भाई तो कभी बेटे के साथ खड़े नजर आए.  

पंजाब में बादल परिवार में भी हो गई थी टूट

पंजाब के कद्दावर नेता रहे दिवंगत प्रकाश सिंह बादल के परिवार में टूट राजनीतिक सुर्खियों में रही है.  शिरोमणि अकाली दल में भी दोफाड़ हुआ था. पार्टी संरक्षक प्रकाश सिंह बादल के भतीजे मनप्रीत सिंह बादल ने बगावत कर दी थी. प्रकाश सिंह से नाराज होकर मनप्रीत अलग हो गए थे और अपनी अलग पार्टी पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब बना ली थी. दरअसल, प्रकाश से भतीजे मनप्रीत के विद्रोह करने की वजह भी सत्ता की महत्वाकांक्षा थी. मनप्रीत के पिता गुरदास सिंह बादल और प्रकाश सिंह बादल सगे भाई थे.

सोनिया-मेनका गांधी विवाद

भारतीय राजनीति में गांधी परिवार की तीसरी पीढ़ी सियासी मैदान में है. राहुल गांधी और वरुण गांधी आमने-सामने हैं. दोनों अलग-अलग  विचारधारा के तौर पर पहचान बना चुके हैं. वरुण गांधी जब सिर्फ तीन महीने के थे, जब उनके पिता संजय गांधी का विमान हादसे में निधन हो गया था. संजय केनिधन के बाद मेनका गांधी ने अपनी सास और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का घर छोड़ा था. उस समय वरुण गांधी की उम्र महज दो साल की थी. वरुण जब चार साल के हुए तो उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. वरुण का लालन-पालन उनकी मां मेनका गांधी ने किया. वहीं, राहुल गांधी पूर्व पीएम राजीव गांधी और सोनिया गांधी की पहली संतान हैं. राहुल अपने पिता और अपनी दादी के बेहद करीब थे. 14 साल की उम्र में राहुल ने दादी इंदिरा गांधी को खोया तो 21 के उम्र में अपने पिता राजीव गांधी को खो दिया था. 21 मई 1991 को एक चुनावी सभा में राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. 

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