Gujarat Assembly Election Results 2022 : आखिरकार बीजेपी ने गुजरात में इतिहास रच ही दिया...तमाम सर्वे पहले ही इसका इशारा कर रहे थे कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में लगातार 7 बार सरकार बनाने के वाममोर्चा के रिकॉर्ड की बराबरी कर लेगी...दरअसल बीजेपी के लिए गुजरात ऐसा अभेद्य किला बन चुका है जिसे 27 साल से कोई दूसरा दल भेद नहीं सका है. इस बार भी बीजेपी के जीत की क्या-क्या वजहें (why BJP won in Gujarat?) रहीं... आइए जानते हैं अपनी इस खास रपट में
गुजरात के कच्छ में 2001 के विनाशकारी भूकंप के कुछ महीने बाद नरेंद्र मोदी राज्य के मुख्यमंत्री बनाए गए थे... मोदी ने अपनी दूरदर्शिता से न सिर्फ अगले एक दशक में कच्छ को विकास के पथ पर आगे बढ़ाया बल्कि खुद को भी ब्रैंड मोदी के तौर पर स्थापित किया. उन्होंने गुजरात में फाइनेंशियल और टेक्नोलॉजी पार्क बनाए. निवेश के लिए वाइब्रेंट गुजरात समिट की शुरुआत की. मोदी को गुजरात की छवि बदलने का श्रेय दिया जाता है. हर चुनाव की तरह इस बार भी उन्होंने चुनाव तारीखों के ऐलान के बाद पिछले एक महीने में राज्य का कोना-कोना छान मारा.
ये भी देखें- When Indira Gandhi Dismissed Gujarat Government: इंदिरा ने क्यों बर्खास्त की थी गुजरात सरकार ? | Jharokha
पीएम मोदी और बीजेपी के दूसरे नेताओं ने पार्टी के प्रचार के दौरान अक्सर ही 'गुजराती अस्मिता' का जिक्र किया है. कपर्दा, वलसाड में चुनावों की घोषणा के बाद अपनी पहली रैली में प्रधानमंत्री ने "आ गुजरात मैं बन्व्यू छे" (मैंने इस गुजरात को बनाया) का नारा शुरू किया. इससे कुछ दिन पहले बीजेपी ने "अग्रेसर गुजरात" (गुजरात आगे) अभियान शुरू किया था. इन कैंपेन के जरिए बीजेपी ने आम लोगों से जुड़ाव स्थापित किया और गुजराती अस्मिता को भी मजबूत किया.
मोदी के कार्यकाल के दौरान, गुजरात की जीडीपी ग्रोथ रेट देश की जीडीपी से ज्यादा थी और राज्य ईज ऑफ डुइंग बिजनेस के मामले में दूसरे राज्यों से रैंकिंग में कहीं ऊपर था. मोदी के गुजरात मॉडल को न सिर्फ 2014 के आम चुनाव में मेन थीम बनाकर कैंपेन में शामिल किया गया बल्कि 2014 के बाद भी जब जब गुजरात में चुनाव हुए, ये इमेज खूब प्रचारित की गई. अब जब मोदी पीएम हैं, गुजरात मॉडल और भी प्रमुखता से राज्य के बाहर भी असर करता है.
गोधरा दंगों के बाद नरेंद्र मोदी हिंदुत्ववादी राजनीति के नए नायक बने. बीजेपी का गुजरात में वोटर्स से गहरा जुड़ाव भी है. अयोध्या में राम मंदिर और वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करके बीजेपी ने इस हिंदुत्ववादी राजनीति को और भी मजबूत किया है. इसका मजबूत संगठन मोदी की लोकप्रियता को वोटों में बदलने में मदद करता है. पार्टी ने हर चुनाव में अपना वोट शेयर बनाए रखा है.
गुजरात में बीजेपी की धमक की एक बड़ी वजह सहकारी आंदोलन में पार्टी की गहरी भागीदारी है. राजनीति और कोऑपरेटिव मूवमेंट हमेशा से जुड़े रहे हैं. गुजरात के कॉऑपरेटिव मूवमेंट से बीजेपी ने कांग्रेस को बाहर कर दिया है. यह वो फैक्टर है जो राजनीतिक पार्टियों का काडर और प्रभावशाली व्यक्तियों से गहरा रिश्ता बनाता है. सहकारी समितियों में कांग्रेस के प्रभाव को कमजोर करके ही गुजरात में बीजेपी का उदय हुआ. सहकारिता मंत्री के रूप में, अमित शाह उत्पादकों, बाजार और मंडी से जुड़े रहे हैं.
ये भी देखें- When Narendra Modi become CM of Gujarat: 2001 में डूबती BJP को नरेंद्र मोदी ने कैसे बचाया? | Jharokha
एक और बात ये कि मोदी और अमित शाह अपने भाषणों के दौरान गुजराती बोलते हैं जबकि राहुल गांधी जैसे दूसरे दलों के शीर्ष नेताओं को स्थानीय न होने का फायदा नहीं मिलता है.