How AAP Win in Delhi MCD Elections 2022: 2012 में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) अपनी स्थापना के 10 साल बाद Municipal Corporation of Delhi (MCD) चुनाव जीत गई है. पार्टी ने स्थापना के तुरंत बाद दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections) जीता था लेकिन 2017 के MCD चुनाव को वह नहीं जीत सकी थी.
भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने तब कैंडिडेट बदलने का पासा फेंककर जनता की नाराजगी दूर करने में कामयाबी पाई थी. हालांकि 2022 में बीजेपी के न सिर्फ दावे और रणनीति नाकाम हुई बल्कि AAP ने पूर्ण बहुमत से दिल्ली नगर निगम की सत्ता अपने नाम कर ली...
आखिर वे क्या वजहें रही जिनकी बदौलत AAP ने दिल्ली के म्युनिसिपल चुनावों में जीत हासिल की (How AAP Win in Delhi MCD Elections) है, आइए जानते हैं इस लेख में...
2013 में जब AAP ने पहली बार दिल्ली की सत्ता पाई थी, तो उसमें कांग्रेस काल में बिजली और पानी बिल के खिलाफ लड़ाई का भी असर था. आज दिल्ली में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च करने वाले परिवार से कोई बिल नहीं लिया जाता है वहीं, हर परिवार को 20 हजार लीटर प्रतिमाह पानी भी मुफ्त मिलता है. AAP ने इसी वादे को दूसरे राज्यों में भुनाने की कोशिश भी की है.
Centre for the Study of Developing Societies (CSDS) के लिए काम करने वाले राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने समाचार पत्र द हिंदू को बताया था कि अगर दूसरे दल भी ऐसे वादे करें, तो भी लोग AAP पर ही भरोसा करेंगे.
उन्होंने कहा कि भारत में 45% आबादी या तो गरीब है या मिडिल क्लास की श्रेणी में है और फ्री बिजली का वादा सीधा उनकी जेब पर असर करता है. महीने में अगर उसके 800 से 1 हजार रुपये भी बचते हैं, तो भी उसके लिए ये रकम मायने रखती है.
मुफ्त बिजली और पानी एक ऐसी योजना है जिसका असर MCD चुनाव पर होना स्वाभाविक है.
आम आदमी पार्टी ने सिर्फ बिजली-पानी के मुद्दे को ही कैश नहीं किया बल्कि स्वास्थ्य, परिवहन जैसे दूसरे विषयों पर भी आम जनता की नब्ज को पकड़ने की कोशिश की. आज दिल्ली में 600 से ज्यादा आम आदमी मोहल्ला क्लीनिक हैं.
यहां दिल्लीवासियों को ब्लड, यूरिन, स्टूल समेत 212 प्रकार के टेस्ट व सभी बेसिक दवाइयां, जिनमें 125 तरह की दवाइयां शामिल हैं, मुफ्त मिलती हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक इन मोहल्ला क्लीनिक्स में हर रोज करीब 60 हजार से अधिक लोग अपना इलाज करवाते हैं.
सिर्फ मोहल्ला क्लीनिक ही नहीं, DTC बसों में महिलाओं की फ्री यात्रा की बात हो, CCTV लगवाने का वादा हो, या फिर बसों में मार्शल की नियुक्ति. AAP ने वादे देर सबेर पूरे किए और उसका सीधा असर आम जनता की जेब पर पड़ा. और ये जेब उस मिडिल क्लास की थी जिसका सरोकार MCD इलेक्शन से सबसे ज्यादा है.
दिल्ली की MCD में 15 साल से बीजेपी काबिज थी लेकिन पार्टी उस कूड़े के पहाड़ को नहीं हटा सकी या उसकी समस्या को दूर नहीं कर सकी. इस पहाड़ से लाखों लोग प्रभावित हैं. राजधानी दिल्ली में अभी तीन लैंडफिल साइट हैं. ये तीनों ओखला, गाजीपुर और भलस्वा में हैं. इनमें गाजीपुर में 14 मीट्रिक टन, भलस्वा में 8 मीट्रिक टन और ओखला में 6 मीट्रिक टन कचरा है. MCD चुनाव से ऐन पहले AAP ने बीजेपी की सत्ता वाली MCD पर आरोप लगाया था कि वह राजधानी में 16 नई लैंडफिल साइट बनाएगी. हालांकि MCD ने इससे इनकार किया था और कहा था कि वह तो इन्हें पाटने की योजना पर काम कर रही है.
लेकिन AAP अपने आरोप पर अड़ी रही. पार्टी ने कहा कि अगर 16 कूड़े के पहाड़ दिल्ली में जगह-जगह बन गए, तो लगभग सारी दिल्ली के 24 घंटे बदबू आती रहेगी. लोगों के घरों में 24 घंटे बदबू आएगी. हर इलाके में एक कूड़े का पहाड़ होगा. पूरी दिल्ली में चारों तरफ मच्छर और मक्खी होंगे. AAP ने MCD चुनाव के लिए जारी की गई 10 गारंटी में ये वादा भी किया कि वह तीनों कूड़े के पहाड़ हटा देगी. AAP की बात ने जनता पर ज्यादा असर किया.
अरविंद केजरीवाल ने चुनाव से पहले Resident welfare association (RWA) कार्ड चला. उन्होंने कहा था कि देखने को मिलता है कि अक्सर छोटे-छोटे काम के लिए जनता नेताओं के चक्कर लगाती है. लेकिन अब जनता ही फैसला करेगी. राजधानी में जितने भी RWA हैं उन्हें मिनी पार्षद का स्टेटस दिया जाएगा. RWA वो बॉडी होती हैं जो जनता के सबसे करीब होती हैं.
केजरीवाल ने कहा था कि जैसे पार्षद किसी इलाके का बॉस होता है. ठीक वैसे ही RWA को उस वॉर्ड का लीडर माना जाएगा. मिनी पार्षद का दर्जा मिलने के बाद लोगों को RWA के दफ्तर जाकर बताना होगा कि उनकी क्या समस्या है. पानी, बिजली, नाली, नुक्कड़ की सारी समस्याएं वही हल करेंगे. CM ने RWA को फंड उपलब्ध कराने की बात भी कही थी. बताया जा रहा है कि RWA से जुड़े इस वादे ने अनोखी पहल के तौर पर जनता के बीच असर किया.
AAP ने 55 फीसदी महिलाओं को MCD चुनाव में टिकट दिया था. MCD के 250 वार्ड में से करीब 125 वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित रहते हैं. लेकिन AAP ने 13 अनारक्षित सीटों पर भी महिलाओं को उतारकर एक संदेश देने की कोशिश की. पार्टी इस कदम में भी काफी हद तक कामयाब रही.
अब दो चीजें देखनी हैं, पहली है कि केजरीवाल ने जो वादे पूरे किए हैं, उसे वो कब तक पूरा करते हैं और दूसरा मेयर के पद पर वो किसे बिठाते हैं.
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