कलकत्ता के लारेटो स्कूल (Calcutta Loreto School) में अंग्रेज परिवारों की लड़कियों के साथ एकमात्र लड़का अपनी पढ़ाई पूरी कर रहा था.. आगे चलकर यह लड़का लंदन पहुंचा और द्वितीय विश्व युद्ध में जब लंदन, हिटलर (Hitler) के हमले झेल रहा था... तब यही लड़का वहां से बैरिस्टरी की पढ़ाई कर रहा था... ये कोई और नहीं, बल्कि 23 साल तक बंगाल के मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु (Jyoti Basu) थे... ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई 1914 को हुआ था... आज हम जानेंगे भारत के इसी दिग्गज राजनेता के बारे में...
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लंदन में ही ज्योति बसु की मुलाकात सुभाष चंद्र बोस (Subhash Chandra Bose) और जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) से हुई... लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें बैरिस्टर बनाया लेकिन लंदन शहर और विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी ने उन्हें कम्युनिस्ट बना दिया था... 1 जनवरी 1940 को उन्हें भारत लौटना था...
उनके सामने सबसे बड़ा सवाल उनके माता-पिता था. उनके माता-पिता ने भी कभी नहीं सोचा था कि बेटा बैरिस्टर के साथ साथ कम्युनिस्ट भी बन जाएगा. ज्योति बसु के सामने भी सवाल था कि वे अपने माता-पिता से क्या कहेंगे? जब ज्योति ने पिता से राजनीतिक सक्रियता की बात बताई तो वे चौंके लेकिन ये जरूर कहा कि तुम चितरंजन दास (Chittaranjan Das) की तरह भी राजनीति कर सकते हो... यह सुनकर उन्हें राहत मिली.
1940 में ज्योति बसु जब लंदन से कलकत्ता पहुंचे तब उन्हें विपरीत स्थिति का सामना करना पड़ा. वे जिस कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ता थे, वह पार्टी प्रतिबंधित थी.. बसु को 1938 में लंदन में सुभाष चंद्र बोस से मुलाकात के दौरान उनकी कही एक बात याद आई... बोस ने बसु की राष्ट्रभक्ति की तारीफ करते हुए कहा था- याद रखना राजनीति कोई गुलाब के फूलों का बिस्तर नहीं है...
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बसु 1946 में रेलवे निर्वाचन क्षेत्र (Railway Constituency) से बंगाल विधानसभा का चुनाव जीता... उन्होंने चुनाव में उन हुमायूं कबीर को पटखनी दी थी जो मौलाना अबुल कलाम आजाद के सचिव रह चुके थे... बसु को आजादी से ठीक पहले उस बंगाल विधानसभा में बैठने का अवसर प्राप्त हुआ जिसमें किरण शंकर राय (Kiron Sankar Roy), बिमल चंद्र सिन्हा (Bimal Chandra Sinha), निहारेंदु दत्त मजूमदार (Niharendu Dutt Majumdar) सरीखे बंगाल के कांग्रेसी दिग्गज थे..
हालांकि ज्योति बसु को लेकर तमाम किस्से हैं, जो उनकी सादगी और सैद्धांतिक सियासत से ही जुड़े हैं. कम लोग जानते हैं कि ज्योति बसु ने 21 साल की उम्र में अपना पहला चाय का प्याला पिया क्योंकि पिता ने उन्हें चाय पीने की मनाही कर रखी थी.
1946-47 का साल न सिर्फ भारत के लिए बल्कि कम्युनिस्ट पार्टी के लिए काफी उथल-पुथल भरा रहा... इसकी शुरुआत कलकत्ता से ही हुई. सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज (Azad Hind Fauj) के सदस्यों की रिहाई की मांग को लेकर छात्रों ने बंगाल विधानसभा पर प्रदर्शन किया. गोली चली और दो नेताओं की मौत हो गई... समूचे बंगाल में इसका असर देखा गया... कुछ महीने बाद 16 अगस्त 1946 को कलकत्ता सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया. ज्योति बसु ने आगे चलकर 16 अगस्त को कलकत्ता के इतिहास का काला दिन माना...
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दंगे की लपटें पूरे देश में फैल गई. 1 सितंबर से बंबई में, 10 अक्टूबर से पूर्वी बंगाल के नोआखाली में और अक्टूबर-नवंबर में उत्तर प्रदेश तथा पंजाब को इस दंगे ने चपेट में ले लिया... 19 अगस्त 1946 तक इस दंगे की वजह से अकेले कलकत्ता में 4 हजार लोग मारे गए थे... और 10 हजार से ज्यादा घायल हुए थे... भारत - पाक विभाजन की आग लग चुकी थी... हिंदुओं ने मुसलमानों को और मुसलमानों ने हिंदुओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया...
हिंसा के बादल जब हटे तब एक नए राष्ट्र का उदय हो चुका था... इसका एक क्षेत्र बंगाल की धरती को काटकर बनाया गया था और इसे पूर्वी पाकिस्तान (East Pakistan) का नाम दिया गया... 1951 में सीपीआई से बैन हटने के बाद वे पार्टी के बांग्ला मुखपत्र स्वाधीनता (Bangla Magazine Swadhinata) के संपादक बने. कई पदों से होते हुए 1967 में वे बंगाल के डिप्टी सीएम बने... 21 जून 1977 को वे सीएम बने... अपने राजनीतिक कार्यकाल में वे गोरखालैंड और कूचबिहार आंदोलन से कुशलता से निपटे...
देश में सबसे लंबे वक्त तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले ज्योति बसु 1996 में पीएम बनने के भी एकदम करीब आ गए लेकिन तब उनकी पार्टी सीपीएम ने ऐसा करने के खिलाफ कदम उठाया. इस बात को ज्योति बसु ने ऐतिहासिक महाभूल बताया था और कहा कि इतिहास ऐसे अवसर दोहराता नहीं...
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देश में 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में खंडित जनादेश में कांग्रेस सत्ता में वापसी नहीं कर सकी... बीजेपी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी. ऐसे हालात में तमिलनाडु हाउस में पीएम उम्मीदवार चुनने के लिए गैर कांग्रेसी वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई. वीपी सिंह (V. P. Singh) का नाम सामने आया लेकिन उन्होंने इसे ठुकराकर संयुक्त मोर्चा सरकार के पीएम के तौर पर ज्योति बसु के नाम का सुझाव दिया. इस प्रस्ताव को गभीरता से लेते हुए सीपीएम के तब के महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत पार्टी (Harkishan Singh Surjeet) के पास गए... सीपीएम पोलित ब्यूरो में इसपर चर्चा हुई और गहरे मतभेद उभरने पर मामला केंद्रीय समिति को दे दिया गया...
कट्टरपंथी कम्युनिट नेताओं की बहुमत वाली केंद्रीय समिति ने ज्योति बसु को पीएम बनाने की पेशकश को यह कहकर नामंजूर कर दिया कि पार्टी अभी इस हालत में नहीं है कि संयुक्त मोर्चा सरकार में वह अपनी नीतियों को लागू करवा पाए. इससे पहले 1989 लोकसभा चुनाव के बाद भी बसु को पीएम बनने का ऑफर दिया गया था... ये ऑफर उन्हें चंद्रशेखर और अरुण नेहरू ने दिया था...
दूसरा मौका 1990 में मिला जब केंद्र में वीपी सिंह सरकार गिर गई थी. राजीव गांधी की नजर में तब ज्योति बसु भी थे पर बसु ने ही इनकार कर दिया था..
बसु ने काफी कोशिश की कि उनकी पार्टी केंद्र सरकार का हिस्सा बन जाए पर पार्टी ने उनकी सुनी ही नहीं... पार्टी के कई सदस्य इस बात पर तैयार नहीं थे कि कांग्रेस समर्थन वाली केंद्र सरकार का वह हिस्सा बने... बाद में ज्योति बसु ने कई इंटरव्यू में इसपर नाराजगी भी जताई और कहा कि पार्टी का ये फैसला राजनीतिक द्वंद का परिणाम था... बाद में ये भी कहा गया कि सीपीएम की केंद्रीय कमिटी के कई सदस्यों ने पहले से ही तय कर रखा था कि बसु को प्रधानमंत्री बनने से रोकना है....
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देश में सबसे लंबे वक्त तक सीएम बनने का गौरव हासिल करने वाले ज्योति बसु का निधन 17 जनवरी 2010 को 95 वर्ष की अवस्था में कोलकाता में हुआ...
चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं-
1497 – वास्को द गामा (Vasco da Gama) ने यूरोप से भारत की पहली समुद्री यात्रा शुरू की थी
1972 – भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली (Sourav Ganguly) का जन्म
2007 – भारत के 11 वें प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सिंह (Chandra Shekhar) का निधन
(इस आर्टिकल के लिए रिसर्च मुकेश तिवारी @MukeshReads ने किया है)