कर्नाटक विधानसभा चुनाव में हार के साथ ही साउथ के राज्यों से भाजपा का सूपड़ा साफ हो चुका है. कर्नाटक एकलौता ऐसा राज्य था, जहां भाजपा सत्ता में थी. लेकिन यहां भी उसे हार का सामना करना पड़ा. अब सिर्फ पुडुचेरी में गठबंधन के साथ सत्ता में है. दक्षिण भारत के इन राज्यों में 130 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से अभी केवल 29 सीटें भाजपा के पास हैं. इसमें 25 सीटें अकेले कर्नाटक से ही हैं. जबकि 2019 में चार सीट तेलंगाना में जीती थी. इसी से समझा जा सकता है कि बाकी के राज्यों में भाजपा की स्थिति कैसी है. साउथ में कुल 6 राज्य आते हैं, जहां की विधानसभाओं में कर्नाटक के अलावा भाजपा कहीं भी संतोषजनक स्थिति में नहीं है.
कर्नाटक में मिली हार के बाद साल 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा की चुनौती बढ़ गई है. क्योंकि भाजपा की योजना यह थी कि दक्षिण भारत में खुद को ज्यादा मजबूत किया जाए, ताकि उत्तर भारत में सीटें कम भी होती है, तो उसकी भरपाई कर दी जाए. लेकिन इस चुनाव के परिणाम के बाद भाजपा को अपनी चुनावी रणनीति पर फिर से काम करना पड़ेगा. हालांकि, साउथ फतह की कोशिश में भाजपा बहुत कम ही सफल हो पाई है.
साउथ के राज्यों में एक तेलंगाना में भाजपा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है. लेकिन 2014 के बाद से तेलंगाना में भाजपा का प्रदर्शन आंध्र प्रदेश की तरह ही रहा है. तेलंगाना विधानसभा चुनाव में भाजपा 7 और लोकसभा चुनाव में 10 प्रतिशत वोट मिले थे.
वहीं, आंध्र प्रदेश में 2014 में भाजपा विधानसभा की 4 और लोकसभा की 2 सीटें ही जीत पाई थी, लेकिस 2019 में तो वहां से भी साफ हो गई. केरल में 2014 में भाजपा का वोट प्रतिशत 10 रहा तो 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनाव में 13-13 प्रतिशत ही वोट हासिल कर पाई. जबकि केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कैडर काफी मजबूत है.
वहीं तमिलनाडु में भाजपा का कद साउथ के बाकी सभी राज्यों के काफी छोटा है. बीते 10 सालों में भाजपा का वोट प्रतिशत महज 3 से 5 ही रहा है.