Maharashtra Political Crisis: महाराष्ट्र में लगभग एक हफ्ते के सियासी उठापटक के बाद आखिरकार उद्धव सरकार (Uddhav Government) की सत्ता बचाने की सारी कोशिश नाकाम हुई. ना बागी विधायक (Rebel MLA's) माने और ना सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में उनकी दलीलें मानी गईं. आखिरकार सीएम उद्धव को इस्तीफा (Resignation) देना पड़ा और एक बार फिर राज्य की सत्ता तक बीजेपी का सफर शुरू हो गया.
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कब शुरू हुई सियासी हलचल?
सूबे की सियासत में इस उलटफेर की शुरुआत 20 जून को हुई, जब MLC चुनाव के परिणाम आए, और बीजेपी को सबसे ज्यादा 5 सीटें मिली. ऐसे में BJP के साथ पहले कभी गठबंधन में काम कर चुके शिवसेना विधायकों में महा अघाड़ी सरकार के प्रति असंतोष पैदा हुई, और उन्होंने बिना देर किये बगावत कर दी.
हालांकि, इससे पहले भी राज्यसभा चुनाव की एक सीट के लिए शिवसेना के विधायकों ने बीजेपी का साथ देकर एक तरह से अपना स्टैंड साफ कर दिया था. फिर 20 जून को MLC चुनाव रिजल्ट आएं और 21 जून को शिवसेना के सीनियर नेता एकनाथ शिंदे ने बागी तेवर दिखा दिएं. उधर, उद्वव सरकार को भी इसकी भनक लगी और उन्होंने उसी दिन यानी 21 जून को ही गठबंधन की बैठक बुला ली. लेकिन, तब तक देर हो चुकी थी एकनाथ शिंदे बाकी बागी नेताओं के साथ सूरत से निकलकर गुवाहाटी रवाना हो गए.
दोनों पक्षों के बीच बयानबाजी
फिर, बयानबाजी और मान-मनौव्वल का दौर शुरू हुआ. सीएम उद्धव ने विधायकों को मनाने की कोशिश की...मुंबई आकर बातचीत से हल निकालने की बात करते रहें. पर बागी नेताओं ने साफ कर दिया कि अगर उनका साथ चाहिए तो एनसीपी और कांग्रेस का हाथ छोड़ना होगा. सीएम उद्धव इसके लिए तैयार नहीं हुए और बागी गुट से बातचीत की अपील करते रहे, जो बेअसर साबित हुई. एक-एक कर के शिवसेना के नाराज विधायक शिंदे गुट में शामिल होते गए और उनका पक्ष मजबूत होता गया.
शिंदे गुट ने गवर्नर को सौंपी चिट्ठी
इसी बीच शिंदे गुट ने 34 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी को भेजी, चिट्ठी में कहा कि एकनाथ शिंदे ही शिवसेना विधायक दल के नेता है. वहीं, उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री आवास छोड़कर अपने घर मातोश्री पहुंच गए. इसके बाद उन्होंने फेसबुक पर लाइव आकर कहा था कि बागी सामने आकर बात करें. सीएम पद क्या शिवसेना अध्यक्ष पद भी छोड़ दूंगा. इस दौरान सीएम के समर्थन में शिवसेना कार्यकर्ताओं का हुजूम तो दिखा पर इससे कुछ बात ना बनी.
शिवसेना ने की बागी नेताओं पर कार्रवाई की मांग
फिर बैठकों का दौर शुरू हुआ, शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा के डिप्टी स्पीकर को चिट्ठी लिखकर बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग कर दी. बागी विधायकों को नोटिस मिले, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से शिंदे गुट को राहत मिल गई, और उन्हें जवाब देने के लिए 14 दिन का अतिरिक्त समय मिल गया. इसके बाद सत्ता पर सीएम की पकड़ कमजोर होने लगी. राज्य की सड़कों पर दोनों गुटों के समर्थक एक दूसरे के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे. हिंदुत्व और बालासाहेब की विचारधारा के असली फॉलोअर की बहस उठी.
बीजेपी की एंट्री
इन सबके बीच बीजेपी खुलकर सामने आ गई. पूर्व सीएम देवेंद्र फडणवीस ने गवर्नर से मुलाकात कर फ्लोर टेस्ट की मांग करते हुए पत्र सौंप दिया. जिसके बाद 30 जून को फ्लोर टेस्ट का दिन तय हुआ, जिसे रोकने के लिए उद्धव सरकार सुप्रीम कोर्ट पहुंची लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. कोर्ट ने साफ कहा कि फ्लोर टेस्ट तय वक्त पर ही होगा. ऐसे में सीएम उद्धव के पास कोई विकल्प नहीं बचा तो उन्होंने फ्लोर टेस्ट से एक दिन पहले बुधवार रात इस्तीफा दे दिया, और महाराष्ट्र में 2.5 साल की महाअघाड़ी सरकार के सफर का अंत हो गया.