MP Election 2023: बीजेपी नेता द्वारा आदिवासी युवक पर किए गए पेशाब के बाद मध्य प्रदेश (madhya pradesh) की राजनीति पूरी तरह से गरमा गई है. विपक्षी पार्टियां जहां शिवराज सरकार (shivraj government) पर निशाने साधने में जुट गई हैं. वहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान डैमेज कंट्रोल की कोशिश में पीड़ित युवक के पैर धोकर सम्मानित करने में लग गए. यही नहीं, शिवराज सिंह चौहान ने आरोपी और पार्टी कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला (pravesh shukla) के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का भी आदेश दे दिया है.
इस पेशाब कांड (peshab kand) ने विपक्ष को मौका देने के साथ सरकार की बेचैनी भी बढ़ा दी है. क्योंकि राज्य में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव (assembly election) होने हैं. राज्य में 80 लाख वोटर आदिवासी समाज से आते हैं, जो कुल वोटर का 20 प्रतिशत है. कुल 230 विधानसभा सीटों में 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं और 80 सीटें ऐसी हैं, जिन पर दलित वोटर्स का दबदबा है. ऐसे में दलित वोटर्स की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकता है. यही वजह है कि पेशाब कांड ने पूरी बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है.
यह मामला जैसे ही सामने आया विपक्ष आक्रामक हुआ तो बीजेपी डैमेट कंट्रोल में जुट गई. आरोपी बीजेपी कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर चला दिया गया. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (cm shivraj singh chauhan) पीड़ित दशमत रावत (dashmat rawat) से माफी मांगी. CM शिवराज ने कहा कि मन दुखी है. मेरे लिए जनता ही भगवान है. पीड़ित दशमत रावत को अपने घर मुख्यमंत्री आवास में बुलाकर CM शिवराज ने उसके पैर धोए और सम्मान किया.
दूसरी तरफ गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा(home minister narottam mishra) ने कहा कि आरोपी के खिलाफ एनएसए (nsa) के तहत केस दर्ज किया गया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनावी वर्ष में इस तरह की घटनाओं का क्या असर पड़ता है. क्योंकि राज्य में दलितों की बड़ी आबादी है. यहां की 230 विधानसभा सीटों में से 80 सीटों पर दलित वोट बैंक मजबूत स्थिति में है. यहां की 35 सीटें आरक्षित श्रेणी की हैं.
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 21 लाख 27 हजार वोट मिले थे. ये कुल वोटर्स का 6.29 प्रतिशत थे. पिछले 5 चुनाव का ट्रेंड देखें तो लगभग 7 प्रतिशत वोट बसपा का फिक्स रहा है. बसपा अनुसूचित जाति की 35 सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में है. बसपा ग्वालियर, चंबल, रीवा, और सागर में ज्यादा मजबूत है. दूसरी तरफ इस बार भीम आर्मी भी राज्य में ताल ठोक सकती है.
बात कांग्रेस पार्टी की करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति (sc) वर्ग की 35 आरक्षित सीटों में से 18 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. नतीजा, कांग्रेस पार्टी (congress party) गठबंधन की सरकार बन गई थी. लेकिन बाद में हुए सियासी उलट फेर में बीजेपी ने सरकार बना ली.
इस बार बीजेपी कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती है और कम से कम 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है. जिनमें सबसे ज्यादा फोकस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (st) वर्ग के बीच मौजूदगी दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 41.02 प्रतिशत वोट के साथ 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट के साथ 114 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बीजेपी को बड़े कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था और वहां कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस का एक धड़ा बाद में भाजपा में शामिल हो गया और फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. उसके बाद से बीजेपी लगातार दलित वोटबैंक को अपनी और रिझाने के लिए लगातार काम कर रही है. साल 2020 में तो गृह मंत्री अमित शाह ने गोंड राजवंश के आदिवासी नायक शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर 'जनजातीय अभियान' की भी शुरुआत की थी.
लेकिन इस पेशाब कांड ने विपक्ष को बड़ा मौका दे दिया है. शत है. कुल 230 विधानसभा सीटों में 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं और 80 सीटें ऐसी हैं, जिन पर दलित वोटर्स का दबदबा है. ऐसे में दलित वोटर्स की नाराजगी बीजेपी को भारी पड़ सकता है. यही वजह है कि पेशाब कांड ने पूरी बीजेपी की परेशानी बढ़ा दी है.
यह मामला जैसे ही सामने आया विपक्ष आक्रामक हुआ तो बीजेपी डैमेट कंट्रोल में जुट गई. आरोपी बीजेपी कार्यकर्ता प्रवेश शुक्ला के घर पर बुलडोजर चला दिया गया. वहीं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पीड़ित दशमत रावत से माफी मांगी. CM शिवराज ने कहा कि मन दुखी है. मेरे लिए जनता ही भगवान है. पीड़ित दशमत रावत को अपने घर मुख्यमंत्री आवास में बुलाकर CM शिवराज ने उसके पैर धोए और सम्मान किया.
दूसरी तरफ गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि आरोपी के खिलाफ एनएसए के तहत केस दर्ज किया गया है. अब देखने वाली बात यह होगी कि चुनावी वर्ष में इस तरह की घटनाओं का क्या असर पड़ता है. क्योंकि राज्य में दलितों की बड़ी आबादी है. यहां की 230 विधानसभा सीटों में से 80 सीटों पर दलित वोट बैंक मजबूत स्थिति में है. यहां की 35 सीटें आरक्षित श्रेणी की हैं.
वर्ष 2013 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 21 लाख 27 हजार वोट मिले थे. ये कुल वोटर्स का 6.29 प्रतिशत थे. पिछले 5 चुनाव का ट्रेंड देखें तो लगभग 7 प्रतिशत वोट बसपा का फिक्स रहा है. बसपा अनुसूचित जाति की 35 सीटों पर सीधे मुकाबले की स्थिति में है. बसपा ग्वालियर, चंबल, रीवा, और सागर में ज्यादा मजबूत है. दूसरी तरफ इस बार भीम आर्मी भी राज्य में ताल ठोक सकती है.
बात कांग्रेस पार्टी की करें तो 2018 के विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति वर्ग की 35 आरक्षित सीटों में से 18 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. नतीजा, कांग्रेस पार्टी गठबंधन की सरकार बन गई थी. लेकिन बाद में हुए सियासी उलट फेर में बीजेपी ने सरकार बना ली.
इस बार बीजेपी कोई मौका छोड़ना नहीं चाहती है और कम से कम 51 प्रतिशत वोट हासिल करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रही है. जिनमें सबसे ज्यादा फोकस अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के बीच मौजूदगी दर्ज करने की रणनीति पर काम कर रही है.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 41.02 प्रतिशत वोट के साथ 109 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को 40.89 प्रतिशत वोट के साथ 114 सीटें मिली थीं. इस चुनाव में बीजेपी को बड़े कम अंतर से हार का सामना करना पड़ा था और वहां कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी थी.
हालांकि ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में कांग्रेस का एक धड़ा बाद में भाजपा में शामिल हो गया और फिर शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार बनी. उसके बाद से बीजेपी लगातार दलित वोटबैंक को अपनी और रिझाने के लिए लगातार काम कर रही है. साल 2020 में तो गृह मंत्री अमित शाह ने गोंड राजवंश के आदिवासी नायक शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस पर 'जनजातीय अभियान' की भी शुरुआत की थी. लेकिन इस पेशाब कांड ने विपक्ष को बड़ा मौका दे दिया है.