Mulayam Family: हमेशा कुनबे को जोड़कर रखते थे नेताजी , मुलायम के नहीं होने के क्या मायने ? 

Updated : Oct 12, 2022 16:52
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Editorji News Desk

सपा के संस्थापक और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) का 82 साल की उम्र में निधन हो गया. वो लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे. मुलायम सिंह के निधन पर उनके परिवार ने शोक की लहर है. मुलायम सिंह यादव एक ऐसे नेता रहे, जो हमेशा अपने कुनबे को साथ लेकर चले. राजनीति में कई बार उनपर परिवारवाद के आरोप लगे, लेकिन उन्होंने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को अकेले नहीं छोड़ा. अपने साथ पांच भाईयों के परिवार और एक चचेरे भाई रामगोपाल यादव (Ramgopal Yadav) के परिवार को हमेशा साथ लेकर चले. जब बेटे अखिलेश और छोटे भाई शिवापल यादव (Shivpal yadav) के बीच सियासी मनमुटाव हुआ, तो उन्होंने उसे संभालने की पूरी कोशिश की. शायद यही वजह रही कि उनके रहते अखिलेश और शिवपाल मतभेद होने के बावजूद बार-बार साथ दिखे. 

आज मुलायम सिंह यादव अपने परिवार के साथ नहीं है. ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या अब यादव कुनबा बिखर जाएगा, जिसे मुलायम हमेशा साथ लेकर चलते रहे, क्या उनके जाने से अखिलेश के नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) पर असर पड़ेगा, जिसे अखिलेश उनके रहते ही संभाल कर रहे थे. ऐसे तमाम सवाल के जबाव सियासी जानकार बता रहे हैं. 

अखिलेश के लिए कवच थे मुलायम

राजनीतिक विश्लेषक जेपी शुक्ला के मुताबिक ''सपा पर अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का नियंत्रण हो जाने के बाद मुलायम सिंह यादव का हाल के कुछ वर्षों में पार्टी कार्य संचालन में भले ही कोई प्रत्यक्ष हस्तक्षेप नहीं रहा हो, लेकिन उनका नाम अखिलेश यादव के लिए एक कवच की तरह था और वह अपने हर फैसले में अपने पिता की हामी होने का दावा करते थे. मुलायम के निधन के बाद अखिलेश के पास अब यह कवच नहीं रहेगा. अखिलेश को अब मुलायम की छाया के बगैर काम करना होगा. हालांकि, इसका पार्टी के आंतरिक मामलों पर कोई खास असर नहीं होगा, लेकिन इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव जरूर पड़ेगा. अखिलेश के विरोधी हो चुके उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव और उनसे जुड़े अन्य लोग मुलायम का लिहाज करके सपा नेतृत्व के खिलाफ खुलकर नहीं बोलते थे, लेकिन अब उनके निधन के बाद हालात बदल सकते हैं'' 

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शिवपाल हो सकते हैं मुखर

राजनीतिक प्रेक्षक प्रोफेसर बद्री नारायण की माने तो ''मुलायम सिंह यादव अपने कुनबे के मुखिया थे और जैसा कि हर परिवार में मुखिया के निधन के बाद अक्सर होता है, वो मुलायम के परिवार के साथ भी हो सकता है. सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का विरोध करने वाले उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव अब और मुखर हो सकते हैं''. मुलायम सिंह यादव पार्टी के मार्गदर्शक होने के साथ-साथ उसे जोड़े रखने वाली शख्सियत भी थे. पार्टी में जब भी मतभेद उत्पन्न होते तो वह उसे समझाने का पूरा प्रयास करते. उनका मानना था कि व्यक्तिगत मतभेदों को पार्टी के विकास के आड़े नहीं आने देना चाहिए. 

अखिलेश को मिल सकती है सहानुभूति 

सियासी जानकार ये भी मानकर चल रहे हैं, कि मुलायम के निधन से अखिलेश के साथ सहानुभूति जुड़ेगी. वे लोग भी भावनात्मक रूप से अखिलेश के साथ आ सकते हैं जो हाल के वर्षों में पार्टी से दूर हो गए थे. गौरतलब है कि अखिलेश यादव ने पिछले पांच सालों में समाजवादी पार्टी पर पूरी तरह से प्रभुत्व हासिल कर लिया है, लेकिन राजनीतिक मंचों पर वह मुलायम सिंह यादव को हमेशा आगे रखते रहे.  

देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा!

मुलायम सिंह यादव का परिवार देश के सबसे बड़े राजनीतिक कुनबों में गिना जाता है. उनके बेटे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि उनके भाई शिवपाल सिंह यादव कैबिनेट मंत्री रहे हैं. इसके अलावा उनके चचेरे भाई रामगोपाल यादव और बहुएं डिंपल यादव (Dimple yadav) तथा अपर्णा बिष्ट यादव (Aparna Yadav) भी राजनीति में हैं. अपर्णा इस वक्त भारतीय जनता पार्टी (BJP) में हैं. इसके अवाला मुलायम सिंह यादव के अन्य भाईयों के बच्चे भी सियासत में हैं, जिन्हें उन्होंने हमेशा जोड़कर रखा.

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