President VV Giri: भारत का राष्ट्रपति जो पद पर रहते सुप्रीम कोर्ट के कठघरे में पहुंचा | Jharokha 10 Aug

Updated : Aug 17, 2022 21:03
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Editorji News Desk

आजाद भारत के चौथे राष्ट्रपति वी वी गिरि (V. V. Giri) का जन्म 10 अगस्त, 1894 को  ओडिशा के बेरहमपुर में हुआ था.  वी वी गिरि  के पिता का नाम वी.वी. जोगय्या पंतुलु था. पंतुलु वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक्टिव मेंबर थे. वी वी गिरि  एक वकील और स्थानीय बार काउंसिल के नेता थे. वी वी गिरि जी की स्कूली शिक्षा ब्रह्मपुर में ही संपन्न हुई. 1913 में वकालत की पढ़ाई के लिए वे आयरलैंड चले गए थे. उन्होंने डबलिन यूनिवर्सिटी से 1913-16 तक पढ़ाई की. इस लेख में हम जानेंगे भारत के पूर्व राष्ट्रपति वी वी गिरि से जुड़े उस किस्से के बारे में जब उन्हें कोर्ट में पेश होना पड़ा था.

1970 में कोर्ट में पेश हुए थे वी वी गिरि

वो साल 1970 के दिन थे...सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के एक कटघरे में सोफानुमा बड़ी कुर्सी लगी थी. अदालत में हर कोई सलीके से बैठा था और चौकन्ना था...वजह ये थी कि उस दिन देश की सबसे बड़ी अदालत में वो होने वाला था जो न तो पहले कभी हुआ और न ही बाद में इसकी कोई संभावना नजर आती है. 

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दरअसल, उस दिन कोर्ट में हाजिर होने वाले थे भारत के राष्ट्रपति (President of India)...वो शख्स जो खुद सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले को पलटने की ताकत रखता है. वो शख्स जिसे कानूनी तौर पर छूट हासिल है...लेकिन फिर भी वो अदालत के सामने कटघरे में पेश हुए और अपना बयान दर्ज कराया. 

जानते हैं उस राष्ट्रपति का क्या नाम है- वी वी गिरि (V. V. Giri)... पूरा नाम वराहगिरि वेंकट गिरि (Varahagiri Venkata Giri). वी वी गिरि एक ऐसे शख्स थे जिनके नाम कई चीजें पहली बार होने का कीर्तिमान दर्ज है. मसलन वे देश के पहले और अब तक के अंतिम निर्दलीय राष्ट्रपति हैं. 

10 अगस्त 1894 को ओडिशा में जन्म

आज की तारीख का संबंध भारत रत्न वी वी गिरि (V. V. Giri) से है...10 अगस्त 1894 को ओडिशा के बेहरामपुर में उनका जन्म हुआ था. वे भारत के चौथे राष्ट्रपति थे. उनकी कहानी ने देश का राजनीतिक इतिहास हमेशा के लिए बदल दिया है. 

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अब बात उस केस की जिसके लिए भारत के सुप्रीम कोर्ट में महामहिम राष्ट्रपति को पेश होना पड़ा. दरअसल, 13 मई 1969 को भारत के तीसरे राष्ट्रपति जाकिर हुसैन (Indian President Zakir Husain) की असमायिक मौत हो गई तब वी वी गिरि को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया. बाद में फैसला हुआ कि नए राष्ट्रपति का चुनाव करा लिया जाए. लेकिन नए राष्ट्रपति के चुनाव को लेकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi) और सिंडिकेट (Congress Syndicate Leaders) के नाम से जानी जाने वाली कांग्रेस पार्टी के पुराने नेताओं के बीच ठन गई थी. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (All India Congress Committee) ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विरोध को नजरअंदाज करते हुए नीलम संजीव रेड्डी (Neelam Sanjiva Reddy) को राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के तौर पर समर्थन देने का फैसला किया. 

इससे नाराज इंदिरा ने भी वी वी गिरि को समर्थन देने की घोषणा कर दी. इंदिरा ने कांग्रेस विधायकों और सांसदों से अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करने का आह्वान किया. 16 अगस्त 1969 को हुए चुनाव में रेड्डी, गिरि और विपक्षी उम्मीदवार सीडी देशमुख (C. D. Deshmukh) के बीच मुकाबला हुआ. इस करीबी लड़ाई में वी वी गिरि विजयी हुए. पहली वरीयता में उन्हें 48.01 फीसदी वोट मिले और बाद में दूसरी वरीयता के वोटों की गिनती में उन्होंने बहुमत हासिल कर लिया. इसके साथ ही उन्होंने इतिहास रच दिया क्योंकि वो न सिर्फ पहले निर्दलीय राष्ट्रपति बने बल्कि अब तक वे इकलौते कार्यवाहक राष्ट्रपति भी हैं जो बाद में राष्ट्रपति भी बने. 

वीवी गिरी का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया

दूसरी तरफ गिरि के चुनाव का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. इसकी वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपति चुनाव में मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए भ्रष्ट तरीके अपनाए गए. सुनवाई हुई तो बतौर राष्ट्रपति गिरि व्यक्तिगत रूप से कोर्ट के समक्ष पेश हुए और वहां उनसे गवाह के रूप में पूछताछ की गई. अदालत ने अंत में याचिका खारिज कर दी और गिरि के चुनाव को बरकरार रखा. वी वी गिरि 24 अगस्त 1969 को भारत के राष्ट्रपति बने और 24 अगस्त 1974 तक इस पद पर बने रहे, उनके बाद फखरुद्दीन अली अहमद (Fakhruddin Ali Ahmed) ने यह पदभार संभाला.

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वीवी गिरी बने थे मोहरा

दरअसल, वी वी गिरि का राष्ट्रपति पद पर चुना जाना देश के सियासी इतिहास का एक निर्णायक मोड़ है और अपने असर में तख्तापलट जितना ही झटकेदार. आप कह सकते हैं कि देश में पांचवीं दफे जब राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए तो सियासत की बिसात पर वी वी गिरि एक मोहरा भर थे. बिसात किसी और ने बिछायी थी और वही वी वी गिरि को आगे करके अपनी बादशाहत कायम करने की बाजी खेल रहा था. राष्ट्रपति पद के चुनाव में वीवी गिरि की जीत भारत की लोकतांत्रिक राजनीति में एक व्यक्ति के ताकतवर होते जाने और ठीक उसी अनुपात में लोकतंत्र को थामे रखने वाली संस्थाओं के कमजोर पड़ने का भी मामला है.  

वैसे वी वी गिरि के जीवन से कई दिलचस्प संयोग जुड़े हैं. उनका जन्म 10 अगस्त, 1894 को ओडिशा के बेरहमपुर गांव में हुआ था. उनके पिता वी.वी. जोगय्या पंतुलु (VV Jogayya Pantulu) थे जो एक सफल वकील और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राजनीतिक कार्यकर्ता थे. उनकी मां भी आजादी के आंदोलन में जेल जा चुकी थीं. वी वी गिरि की शादी सरस्वती बाई से हुई थी और उनके 14 बच्चे थे. साल 1913 में वो कानून की पढ़ाई के लिए आयलैंड चले गए. जहां उन्होंने 1913-1916 के बीच यूनिवर्सिटी कॉलेज डबलिन (University College Dublin) में पढ़ाई. यहीं पर गिरि आयरलैंड के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए और गिरफ्तार भी हुए. जिसके बाद उन्हें आयरलैंड से देश निकाला दिया गया. उन्हें मजबूरन भारत वापस लौटना पड़ा. जिसके बाद साल 1920 में उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में भाग लिया.  

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एक दूसरा पक्ष ये भी है कि वी वी गिरि को शुरू से ही मजदूरों के बड़े नेता रहे. साल 1928 में उनकी अगुवाई में रेलवे कामगारों की अहिंसक हड़ताल हुई, ब्रिटिश राज और रेलवे प्रबंधन को कामगारों की मांग माननी पड़ी. ट्रेड यूनियनों को आजादी के आंदोलन का भागीदार बनाने का बड़ा श्रेय वी वी गिरि की नेतृत्व क्षमता को दिया जाता है. वे दूसरे गोलमेज सम्मेलन (Golmez Sammelan) में कामगारों के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए थे. आजादी के बाद भी साल 1952 में नेहरू सरकार में उन्हें श्रम मंत्रालय का ही जिम्मा मिला. उनकी सोच थी कि औद्योगिक विवाद की स्थिति में प्रबंधन हर हाल में मजदूरों से बातचीत के जरिए ही समाधान निकाले. इसे ‘गिरि-एप्रोच’ के नाम से जाना जाता है.

चलते चलते आज की दूसरी घटनाओं पर भी एक नजर डाल लेते हैं...

1809 : इक्वाडोर को स्पेन से आजादी (Ecuador Freedom from Spain) मिली.

1822 : सीरिया में विनाशकारी भूकंप से 20 हजार लोगों की मौत.

1831: कैरेबियाई द्वीप समूह बारबाडोस में तूफान से डेढ़ हजार लोगों की मौत.

1995: प्रसिद्ध लेखक और व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) का निधन हुआ.

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