द्रौपदी मुर्मू (Draupadi Murmu) देश की अगली राष्ट्रपति (President) निर्वाचित हुई हैं. राष्ट्रपति चुनाव (Presidential Election) के नतीजे कई मायनों में बेहद अहम हैं. चुनाव नतीजों में समूचे विपक्ष (Opposition) के लिए संदेश छिपे हैं. लेकिन कांग्रेस (Congress) के लिए तो खतरे की घंटी जैसा है.
इस चुनाव में यशवंत सिन्हा (Yashwant Sinha) के लिए विपक्षी दलों को लामबंद करना तो दूर कांग्रेस अपने घर तक को एकजुट नहीं रख पाई. कई राज्यों में कांग्रेस विधायकों ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग (Cross Voting) कर पार्टी के अरमानों को पलीता लगा दिया. वैसे भी विपक्षी उम्मीदवार यशवंत सिन्हा की हार पहले से ही तय मानी जा रही थी. लेकिन उन्हें इतनी बड़ी हार नसीब होगी यह किसी ने सोचा नहीं था.
एनडीए उम्मीदवार (NDA Candidate) मुर्मू को कुल 6,76,803 वोट और यशवंत सिन्हा को कुल 3,80,177 वोट मिले. आखिरी राउंड की गिनती के बाद जब मुर्मू के 64.03 फीसदी मतों के साथ चुनाव जीतने का आधिकारिक ऐलान किया गया. उस वक्त सिर्फ यशवंत सिन्हा के रायसीना हिल्स (Raisina Hills) जाने के अरमानों पर ही पानी नहीं फिरा था. बल्कि कांग्रेस समेत पूरे विपक्ष की रणनीति पर भी सवाल उठे थे. जाहिर है राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का बड़ा असर आने वाले दिनों में देश सियासत पर देखने को मिल सकता है.
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द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में वैसे तो हर राज्य में क्रॉस वोटिंग हुई. लेकिन सबसे ज्यादा असम में हुई. यहां करीब 25 विधायकों (MLA) ने क्रॉस वोटिंग की. इसके अलावा मध्य प्रदेश 16, महाराष्ट्र में 16, उत्तर प्रदेश में 12 गुजरात में 10, झारखंड में 10, बिहार में 6, छत्तीसगढ़ में 6, राजस्थान में 5, मेघालय में 7, गोवा में 4, हिमाचल प्रदेश में 2, और अरुणाचल प्रदेश और हरियाणा में 1-1 विधायक ने क्रॉस वोटिंग की. यहां तक की 17 विपक्षी सांसदों ने भी सिन्हा के खिलाफ वोट किया. आंध्र प्रदेश, नागालैंड और सिक्किम में तो यशवंत सिन्हा का खाता ही नहीं खुला.
कांग्रेस ने राष्ट्रपति चुनाव की रणनीति बनाने का जिम्मा अपने सीनियर नेता मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) और जयराम रमेश (Jairam Ramesh) को दिया था. कांग्रेस, यशवंत सिन्हा के साथ खड़ी नजर तो आई. लेकिन वो अपने ही विधायकों के वोट उन्हें नहीं दिला पाई. तमाम राज्यों में कांग्रेस के विधायकों ने मुर्मू के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की. ओडिशा (Odisha) के कांग्रेस विधायक मोहम्मद मोकीम ने बकायदा मुर्मू को वोट देने का दावा किया.
असम से AIUDF के विधायक करीमुद्दीन बारभुइया के दावों की मानें तो प्रदेश के करीब 20 से ज्यादा कांग्रेस विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की. जाहिर है अगर वाकई में इतनी बड़ी संख्या में कांग्रेसी विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की है. तो यह निश्चित तौर पर पार्टी के लिए बड़ा झटका है.
इतना ही नहीं महाराष्ट्र और झारंखड में कांग्रेस के सहयोगी भी एनडीए के साथ खड़े नजर आए. कुल मिलाकर कांग्रेस इस चुनाव के जरिए कोई सियासी संदेश देने में भी नाकाम रही. उल्टे उसे सियासी नकुसान उठाना पड़ गया.
माना जा रहा है कि कांग्रेस को यशवंत सिन्हा को समर्थन करने का खामियाजा आने वाले दिनों में भुगतना पड़ सकता है. इस चुनाव से साफ हो गया है कि कांग्रेस का अपने विधायकों पर कोई नियंत्रण नहीं है. विधायक पार्टी आलाकमान की बजाय अपने मन की सुनते हैं. ऐसे में अगर महाराष्ट्र, असम, मध्य प्रदेश और झारखंड जैसे राज्यों में पार्टी में कोई और पालाबदल का खेल हो जाए. तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.
गुजरात में भी इसी साल चुनाव होने हैं. ऐसे में चुनाव से पहले ये क्रॉस वोटिंग कांग्रेस के लिए कहीं से भी शुभ नहीं हैं. इससे कांग्रेस के विपक्ष के नेतृत्व करने के अरमानों पर भी पानी फिरेगा. टीएमसी (TMC) पहले ही कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर चुकी हैं. इस फेहरिस्त में कुछ और दल शामिल हो सकते हैं.
रायसीना की रेस शुरू होने से पहले ही विपक्ष के हाथ से बाजी खिसकती नजर आई. राष्ट्रपति उम्मीदवार को लेकर NDA ने जैसे ही अपने पत्ते खोले विपक्ष के दिग्गज भी बंगले झांकने लगे. वजह द्रौपदी मुर्मू के नाम का मास्टर स्ट्रोक (Master Stroke) था. सबसे पहला असर झारखंड और बंगाल में दिखा.
झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (CM Hemant Soren) को अलग राह पकड़नी पड़ी तो बंगाल (Bengal) में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को राज्य में हर साल ट्राइबल दिवस (Tribal Day) मनाने जैसे ऐलान करने पड़े. दीदी ने बंगाल में यशवंत सिन्हा को प्रचार करने से रोक दिया. दूसरी तरफ महाराष्ट्र में शिवसेना सांसद जो अब तक उद्धव के साथ दिख रहे थे वो भी बगावत पर उतर आए. इसका नतीजा यह हुआ कि शिवसेना (Shiv Sena) को मुर्मू के समर्थन के लिए मजबूर होना पड़ गया.
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राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का असर विपक्ष पर भी पड़ना तय है. भविष्य में इसके बड़े साइड इफेक्ट्स देखने को मिल सकते हैं. जिसके संकेत मिलने भी शुरू हो गए हैं. ममता बनर्जी ने आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव (Vice President Election) से अलग रहने का ऐलान कर चुकी हैं.
विपक्ष में फूट का असर यह हुआ कि बीजेडी, बीएसपी, सुभासपा, YSR कांग्रेस, शिवसेना, जेएमएम, जनता दल (एस), अकाली दल और टीडीपी जैसे दल एनडीए के पक्ष में खड़े नजर आए. इससे विपक्षी दलों की एकता पर सवाल उठ रहे हैं. विपक्षी एकजुटता की बात हर कोई करता है. लेकिन मजबूत होने के बजाय कमजोर ही होता चला जा रहा है. इतना ही नहीं असर 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है.