Revolt in Shiv Sena: उद्धव को ले डूबा NCP-कांग्रेस का साथ? विद्रोह का असली विलेन कौन!

Updated : Jun 26, 2022 14:00
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Mukesh Kumar Tiwari

शिवसेना के विधायक दीपक वसंत केसरकर ने कहा है कि वह चाहते हैं, शिवसेना, NCP-कांग्रेस से रिश्ता तोड़कर बीजेपी से हाथ मिला ले. उन्होंने कहा कि एकनाथ शिंदे भी उद्धव से लगातार NCP और कांग्रेस विधायकों के रवैये पर लगाम लगाने की बात कर रहे थे, लेकिन उनकी बात को दरकिनार किया जाता रहा... हमारा और BJP का साथ तो बहुत पुराना है.. NCP और कांग्रेस तो हमारे विरोधी रहे हैं. वसंत केसरकर का ये बयान उन अटकलों पर मुहर लगाने जैसा है, जिसमें NCP और कांग्रेस को ही शिवसेना के विद्रोह का असली दोषी बताया जा रहा है. ऐसा ही बयान बागी हो चुके संजय शिरसत ने भी दिया. 

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सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्यों कहा जा रहा है? जिस NCP और कांग्रेस के साथ मिलकर शिवसेना में महा विकास अघाड़ी बनाई थी, क्या इन्हीं दोनों की वजह से वह टूटने की कगार पर भी पहुंची? आइए जानते हैं कुछ ऐसी बातों को जिन्होंने इन अटकलों को हवा देने का काम किया है...

NCP ने BJP-शिवसेना के लिए रचा 'खेल'

23 नवंबर 2019 की वह सुबह हर किसी को याद है... जब देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार नई सरकार का शपथग्रहण कर रहे थे. सुबह करीब 8 बजे राज्‍यपाल कोश्यारी ने देवेंद्र फडणवीस को शपथ द‍िलाई थे. इसके बाद अजित पवार ने शपथ ली थी. बीजेपी ने NCP का साथ लेने का फैसला तब किया था, जब शिवसेना के साथ उसकी बात नहीं बन पा रही थी. ये बात CM पद को लेकर अटकी थी. राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी-एनसीपी की सरकार को बहुमत साबित करने के लिए 30 नवंबर तक का वक्त दिया लेकिन इसके बाद मची उठापटक की वजह से बीजेपी ने सरकार बनाने से कदम वापस खींच लिए. तब, राज्यपाल ने शिवसेना और कांग्रेस-NCP को सरकार बनाने का मौका दिया.

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अजित पवार ने भले ही बीजेपी से विधायकों के समर्थन का दावा किया हो, लेकिन पूरी कोशिश बीजेपी को उसी के जाल में फंसाने की थी. ताकि बीजेपी अपने ही खेल में उलझ जाए. ऐसा करने के पीछे पार्टी की कोशिश शिवसेना और बीजेपी के रिश्ते में और भी तल्खियां लाने की थीं. 2019 के चुनाव में बीजेपी ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं, एनसीपी ने 54 और कांग्रेस ने 44 सीटों पर कब्जा जमाया था.

25 साल की दोस्ती टूटी, कट्टर हिंदुत्व का एजेंडा भी छूटा

शिवसेना ने जब बीजेपी का साथ छोड़कर कांग्रेस और NCP के साथ जाने का फैसला किया था, तब पार्टी के भीतर ही एक गुट ऐसा था जो इसके विरोध में उतर आया था... उद्धव इस फैसले से उन दलों के साथ गए थे जिनके खिलाफ लड़ते हुए उनके पिता ने अपना राजनीतिक जीवन समाप्त किया था... हाल के बयानों में उद्धव ने पीएम नरेंद्र मोदी पर हमले किए थे. ये हमले नुपूर शर्मा के बयान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हुई आलोचना को लेकर था. उद्धव ने ये भी कहा था कि शिवसेना का हिंदुत्व ही सभी धर्मों में आदर से देखा जाता है.

उद्धव भले ही ऐसा कहें लेकिन उद्धव के बनाए इस नए गठबंधन में कई पुराने शिवसैनिकों को साइडलाइन किया गया. अब तक कट्टर हिंदुत्व की विचारधारा पर चले ये नेता पार्टी को चलाए जाने के इस नए तौर तरीके से भी खुश नहीं थे. पार्टी में एक जनरेशनल बदलाव देखा जा रहा था और इसमें कई सीनियर नेताओं को साइडलाइन कर दिया गया था..

उद्धव ने गठबंधन को तरजीह दी, विधायकों को नहीं

बागी हो चुके विधायक संजय शिरसत ने कहा कि अगर आप किसी भी शिवसेना विधायक के क्षेत्र पर नजर डालेंगे, तहसीलदार से लेकर रिवेन्यू ऑफिसर तक किसी की भी नियुक्ति विधायक से कंसल्टेशन के लिए नहीं हुई. हमने उद्धव जी के सामने ये समस्या कई बार रखी लेकिन उन्होंने जवाब ही नहीं दिया. शिरसत ने आगे बताया- विधायकों ने उद्धव से कई बार कहा कि NCP और कांग्रेस, शिवसेना को खत्म कर देना चाहते हैं. इस बात को लेकर विधायकों ने उद्धव से मुलाकात करने के लिए वक्त भी मांगा लेकिन वह कभी नहीं मिले.

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3 दल होने की वजह से उचित सम्मान नहीं

शिवसेना का हर विधायक जानता है कि उसके लिए CM बनना टेढ़ी खीर है.. विधायक ऐसे में खुद के लिए न सिर्फ उचित प्रतिनिधित्व चाहते हैं बल्कि अपने मनमुताबिक फैसले भी करवाने की कोशिश में जुटे रहते हैं. NCP और कांग्रेस के साथ रहते ऐसा मुमकिन हो नहीं पा रहा था. शिंदे ने न सिर्फ ये कहा कि उनकी आस्था बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना में है बल्कि सूरत में ये भी कह दिया कि वह चाहते हैं, मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनानी चाहिए. मैंने शिवसेना को नहीं छोड़ा है.

राज्य की सत्ता में डिप्टी CM अजित पवार हैं और कांग्रेस के बालासाहेब थोराट राजस्व मंत्री हैं. NCP ही दिलीप वलसे पाटील गृह मंत्री हैं. सरकार में कई अहम मंत्रालयों पर NCP और कांग्रेस नेताओं का ही कब्जा है. ऐसी स्थिति में शिवसेना विधायकों के सामने दोहरा संकट खड़ा हो गया... न सिर्फ उन्होंने अपनी विचारधारा से समझौता किया बल्कि सत्ता में रहकर भी दूसरे दलों की वजह से मानों सत्ता से दूर हो गए थे.

ये वह अहम कारण हैं जो बताते हैं कि कहीं न कहीं विधायकों की नाराजगी शिवसेना से कम, कांग्रेस-NCP के रवैये से ज्यादा हैं. महा विकास अघाड़ी को चलाए रखना भी उद्धव के लिए आत्मसम्मान बचाए रखने की लड़ाई जैसा है. इसी वजह से वह इससे भी समझौता नहीं कर सके. 

CongressShiv SenaNCPMaha Vikas Aghadi

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