Sedition Cases: किन दलीलों से रुका राजद्रोह कानून, सुप्रीम कोर्ट में सिब्बल के तर्क-केंद्र के जवाब

Updated : May 11, 2022 15:30
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Editorji News Desk

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि वे राजद्रोह के आरोप ( sedition cases ) में FIR दर्ज करने से बचें. कोर्ट ने ये टिप्पणी IPC की धारा 124A के खिलाफ मुकदमे में पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल ( Kapil Sibal ) और इसका बचाव कर रही केंद्र सरकार का पक्ष सुनने के बाद कही. कोर्टरूम में इस दौरान जिरह हुई. इसमें क्या क्या हुआ, आइए समझते हैं-

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सीरियस क्राइम को दर्ज होने से नहीं रोका जा सकता है, इसे लेकर केंद्र की ओर से एक गाइडलाइन जारी की जा सकती है. ऐसे अपराध पर सरकार या कोर्ट का अंतरिम आदेश के जरिए स्टे लगाना सही अप्रोच नहीं हो सकता है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ( Solicitor General Tushar Mehta ) ने कहा कि जिम्मेदार अधिकारी, केस दर्ज होने से पहले जांच करे. FIR से पहले SP अपने स्तर पर केस की जांच करे.

जस्टिस कांत ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा- सरकार चाहती है केस दर्ज होने से पहले SP जांच करें. आपके हिसाब से किसे जांच करनी चाहिए? इसपर सिब्बल ने जवाब दिया, हमारे हिसाब से कानून ही खत्म कर देना चाहिए. जस्टिस कांत ने सख्त टिप्पणी की- हवा में बात मत कीजिए, क्या यह आज खत्म हो सकता है? इसपर सिब्बल ने कहा कि आप अभी इसपर रोक लगा सकते हैं.

केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने चीफ जस्टिस एन. वी. रमणा ( Chief Justice N V Ramana ), न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली ( Justices Surya kant and Hima Kohli ) की बेंच को बताया- राजद्रोह के आरोप में FIR दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक गंभीर अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ( Constitution bench in 1962 ) ने इसे बरकरार रखा था.

राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि जमानत याचिकाओं पर सुनवाई शीघ्रता से की जा सकती है. सॉलिसिटर जनरल ने कहा- ध्यान रखना चाहिए कि कोई भी आरोपी इस कानून के खिलाफ कोर्ट नहीं पहुंचा है. PIL के जरिए इसपर विचार करना खतरनाक परंपरा बनेगा.

सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह संबंधी कानून पर पुनर्विचार होने तक नागरिकों के हितों की रक्षा को लेकर केंद्र से जवाब मांगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 124ए प्रावधान, आज के हिसाब से तर्कसंगत नहीं है. केंद्र भी इसपर कोर्ट से सहमत है. इसके बाद CJI ने कहा- केंद्र और राज्य 124ए के तहत कोई भी FIR दर्ज करने से बचेंगे, ऐसी हमें उम्मीद है. उन्होंने साफ कहा कि पुनर्विचार प्रक्रिया पूरी होने तक, कानून के प्रावधान का इस्तेमाल उचित नहीं होगा.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में CJI ने कहा कि ऐसे लोग जिनपर पहले से IPC की धारा 124ए के तहत केस दर्ज है और वे जेल में हैं, वे जमानत के लिए कोर्ट का रुख कर सकते हैं.

बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए. इनमें सबसे ज्यादा असम में 54 मामले दर्ज किए गए. दर्ज मामलों में से 141 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए जबकि 6 साल की अवधि में सिर्फ 6 लोगों को अपराध के लिए दोषी करार दिया गया.

ये भी देखें- Sedition Law in India: क्या है राजद्रोह कानून? देशद्रोह और राजद्रोह में क्या है अंतर?
 

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