2022 का वर्ष भारत में कैसा असर दिखा रहा है? देश में हिंसा का शोर सुनाई दे रहा है, महंगाई चरम पर है, बेरोजगारी के नए आंकड़े ( New Data of Unemployment ) डरा रहे हैं और अर्थव्यवस्था भी कोई सुखद संदेश नहीं दे रही है. जब कुछ दिनों में आधा वर्ष बीत जाएगा, तब इन सभी पक्षों को ध्यान में रखकर ये जरूर सोचना होगा कि 2022 में भारत किस तरह आगे बढ़ रहा है?
देश में दंगों के आंकड़े एक अलग ही ट्रैक पर दौड़ रहे हैं. बीते दो महीने में देशभर में सांप्रदायिक तनाव की खबरें जिस तरह से सामने आ रही हैं, वह चिंता में डाल रही हैं. गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गोवा, उत्तराखंड, महाराष्ट्र से सांप्रदायिक तनाव की खबरें सामने आई हैं. रामनवमी के जुलूस की वजह से जहां ये मामले बढ़े हैं, वहीं रामनवमी बीतने के बाद भी हालात लगातार चिंताजनक दिखाई दे रहे हैं. धर्म संसद में धार्मिक गुरुओं की तीखी बयानबाजी का मामला भी कोर्ट की चौखट पहुंचा.
अप्रैल 2022 के आखिरी दिन भारतीय रिजर्व बैंक - Reserve Bank of India (आरबीआई) की एक रिपोर्ट ने हमें चौंका दिया. रिपोर्ट में कहा गया कि कोविड-19 महामारी से हुए नुकसान से पूरी तरह उबरने में भारतीय अर्थव्यवस्था को एक दशक से भी ज्यादा का वक्त लग सकता है. इस रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था पर Covid-19 महामारी के असर का विश्लेषण किया गया. इसमें अनुमान लगाया गया है कि महामारी की अवधि में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग 52 लाख करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा.
ये तो बात हुई अर्थव्यवस्था के हालात की लेकिन बेरोजगारी के मामले में भी आंकड़े कोई खास अच्छे नहीं हैं. मई 2022 की शुरुआत में भारतीय अर्थव्यवस्था पर निगरानी रखने वाली संस्था सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी (सीएमआईई) ने डेटा जारी किया. इसमें बताया गया कि देश में बेरोजगारी दर अप्रैल में बढ़कर 7.83 फीसदी हो गई, जबकि मार्च में यह 7.60 फीसदी रही थी. अप्रैल के आंकड़े जारी करते हुए कहा कि शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 9.22 प्रतिशत हो गई जबकि मार्च में यह 8.28 प्रतिशत पर थी.
वहीं, विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर पर भी डराने वाली तस्वीर दिखाई दे रही है. 22 अप्रैल को खत्म हुए हफ्ते में विदेशी मुद्रा भंडार 3.271 अरब डॉलर घटकर 600.423 अरब डॉलर रह गया. आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार इससे पहले, 15 अप्रैल को खत्म हफ्ते के दौरान भी इसमें 31.1 करोड़ डॉलर की कमी आई थी और यह घटकर 603.694 अरब डॉलर रह गया था.
सरकारी आंकड़ों में बताया गया है कि अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति बढ़कर 7.79 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो आठ साल का सबसे ऊंचा स्तर है. मार्च में यह 6.95 प्रतिशत पर थी. पेट्रोल-डीजल के दाम और रेपो रेट में इजाफे ने बेचैनी बढ़ाने का काम किया है. पेट्रोल-डीजल के रेट बढ़े, सब्जी-फल, कुकिंग ऑयल महंगा हुआ. रेपो रेट में इजाफे ने लोन भी महंगा कर दिया. रही सही कसर, डॉलर के मुकाबले रुपये की गिरती कीमत ने पूरी कर दी है. कुछ दिन पहले तक बम-बम रहा शेयर बाजार भी लाल निशान पर दौड़ रहा है.