शाहजहांपुर रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने जब सोतीगंज (Sotiganj Market in Meerut) का नाम लिया, उससे पहले कम ही लोगों को पता था कि इस बाजार पर अब ताला जड़ चुका है. लेकिन अब जब पीएम ने इस जगह का नाम ले लिया, तब बात दूर तलक तो जानी ही थी...
सोतीगंज कैसे बन गया 'कमेला'
सोतीगंज, मेरठ का वह बदनाम बाजार (Meerut Market Sotiganj) था जहां गाड़ियों का पुर्जा ऐसी महीन कारीगरी के साथ अलग किया जाता था कि हर निगाह धोखा खा जाए. चोरी का वाहन जब इस 'कसाईखाने' में कटने के लिए आते हैं तो कारीगर उसके परखच्चे उड़ा देते थे. इस बाजार को चोरी की गाड़ियों और स्पेयर पार्ट का अड्डा कहा जाता था. गाड़ी कोई भी हो, यहां आपको उसका हर पार्ट मिल ही जाता था.
इस बाजार में 70 के दशक की अंबेसडर कार (70's Ambassador Car) का भी पुर्जा मिल जाता था और 60 के दशक के महिंद्रा जीप (60's Mahindra Jeep) का भी. कई रिपोर्ट्स में तो यहां तक कहा गया है कि सेकेंड वर्ल्ड वॉर के वक्त की जीप के टायर भी यहां मिलते थे.
यही वजह रही कि ये बाजार गाड़ियों का 'कमेला' बन गया था. 'कमेला' वह जगह होती है जहां पशुओं को काटा जाता है. सोतीगंज भी एक तरह से गाड़ियों के लिए 'कमेले' का ही काम कर रहा था.
करोड़पति बन गए कबाड़ी
बचपन से हम और आप गली-मोहल्ले में जिस कबाड़ीवाले की आवाज सुनते रहे हैं, यहां पर वह कबाड़ीवाला उस इमेज से बिल्कुल उलट था, जो हमारे दिलो-दिमाग पर बचपन से बनी थी.
यहां के कबाड़ी करोड़ों में खेला करते थे. नाम तो कुछ के ही मीडिया में सामने आए लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर भी यहां के धंधे से जुड़े ऐसे कई कबाड़ीवाले हैं जिन्होंने सल्तनत खड़ी कर दी, वह भी चोरी के इसी धंधे से.
यहां के सबसे बड़े कबाड़ी हाजी गल्ला (Haji Galla) की ही बात करें तो उसने साल 1995 में दिल्ली रोड पर मोटर मैकेनिक की दुकान खोली थी. कबाड़ का कारोबार उसे पसंद आया तो उसने इधर भी हाथ आजमाया. बस यहीं उसकी गाड़ी चल निकली. देखते-देखते वह सोतीगंज का बादशाह बन गया.
हाजी गल्ला ने सोतीगंज और सदर बाजार इलाके में 2 आलीशान मकान खड़े कर लिए. हाजी गल्ला ने कोठी बनवाई, कई प्लॉट खरीदे, इनकी ऊंची बाउंड्री बनवाई और उसी में तैयार कराए अपने गोदाम. इन्हीं गोदामों में चलता था गाड़ियों का पुर्जा पुर्जा उखाड़ने का खेल.
सोतीगंज के बड़े कबाड़ियों की बात करें तो इसमें हाजी गल्ला, हाजी इकबाल, हाजी आफताब, मुस्ताक, मन्नू उर्फ मईनुद़्दीन, हाजी मोहसिन, सलमान उर्फ शेर, राहुल काला, सलाउद्दीन का नाम है.
मार्केट में कैसे होता था काम
सोतीगंज में चोरी की गाड़ी के काले खेल से जुड़ी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि लाखों (20 से 40 लाख) की लग्जरी गाड़ी चोरी के बाद जब यहां लाई जाती थी, तब कॉन्ट्रैक्टर कार की हालत के हिसाब से चोरी करने वाले को 1 लाख रुपये तक जितने पैसे बनते थे, पकड़ा देता था. अगर चोर ने किसी तीसरे को गाड़ी बेची और गाड़ी खरीदने वाला यहां आता था, तो रेट बढ़ जाता था. तब, यही लग्जरी कार डेढ़ से 2 लाख में बिकती थी. कबाड़ी, कारीगरों से खुलवाकर गाड़ी का पुर्जा पुर्जा गोदाम में रखता और 4 से 5 लाख में बेच देता था.
यह तो लग्जरी कार की बात हुई. इसी तरह से साधारण कारों के रेट भी चलते थे. चोरी की मोटरसाइकिल के दाम भी इस बाजार में तय थे. चोरी की गई बाइक यहां 4 हजार रुपये तक में बिक जाती थी, हालांकि इससे ज्यादा रेट भी मिलता था.
यूपी पुलिस की कार्रवाई
यूपी में पुलिस (Uttar Pradesh Police) ने हाल ही में सोतीगंज में ताबड़तोड़ कार्रवाई की है. हाजी गल्ला और इकबाल सहित 43 लोगों पर गुंडा एक्ट लगा दिया गया. पुलिस ने मुईनुद्दीन, शोएब, हाजी गल्ला, गटटू, काला, हाजी नईम को भी शिकंजे में लिया. इन सभी पर आरोप था कि ये चोरी की गाड़ियों को आसानी से खपाने का काम करते थे.
पुलिस ने 32 से ज्यादा वाहन माफियाओं के खिलाफ गैंगस्टर की कार्रवाई की. कई करोड़ की संपत्ति को जब्त किया गया. अकेले हाजी गल्ला की ही 35 करोड़ की कोठियां-गोदाम और अन्य संपत्ति की कुर्की की गई. दुकानदारों को नोटिस भी जारी किए और जिन्होंने जवाब नहीं दिया, उनकी दुकान भी बंद करवा दी.
अब तक सोतीगंज पर क्यों सोता रहा प्रशासन
किसी भी अपराध की जड़ में नेताओं और खाकी की मिलीभगत का किस्सा तो हम सभी को मालूम हैं. फिल्मों में ये कहानी सभी ने देखी है. यूपी में मेरठ के सोतीगंज के लिए ये सभी बातें सटीक बैठती हैं. कई नेताओं की शरण में ये बाजार फलता फूलता चला गया. बीते 30 सालों में कई सरकारें आई, शहर ने कई अफसर देखे लेकिन कोई इस धंधे पर हाथ न डाल पाया.
हाजी नईम उर्फ गल्ला के बारे में कहा जाता है कि कुछ साल पहले तक किसी की हिमाकत नहीं थी कि उसके खिलाफ कार्रवाई कर सके. गल्ला पर हाथ डालने का मतलब था, सीधा तबादला.
बदल गया माहौल, पर हो रहा विरोध भी
सोतीगंज में दशकों पुरानी कबाड़ की दुकानों में जहां पहले चोरी की गाड़ियों के पार्ट्स बिकते थे, वहां पर मोमोज-चाउमीन, नॉन वेज, कपड़ों की दुकानें चल रही हैं. कई जगह दुकानों के बाहर तख्तियां टंगी हुई हैं जिनपर भविष्य में चोरी की कार के पुर्जे न निकालने की बात कही गई है. इन शपथपत्रों की चर्चा तो है लेकिन पुलिस की कार्रवाई के विरोध में सुर भी कम नहीं है.
कई वीडियो में लोग कहते दिखाई दे रहे हैं कि चंद लोगों की वजह से ये इलाका बदनाम था लेकिन अब वे सभी जेल में हैं. अब प्रशासन को तय करना है कि बाकी लोगों का क्या होगा. यहां बहुत बेगुनाह पिस रहे हैं. जो माल बचा हुआ है, वह कहां लेकर जाएंगे?
दिनेश शर्मा नाम के एक दुकानदार ने कहा कि लूट, डकैती कहां नहीं हो रही है लेकिन सबकी नजर सिर्फ सोतीगंज पर ही है.
इस बीच, ऐसी भी खबरें सामने आई हैं जिनमें बताया गया है कि कारोबार बंद होने से बेरोजगार हुए लोगों के लिए प्रशासन नई व्यवस्था कर रहा है. उन्हें लोन दिलवाकर नया काम शुरू करने में मदद की जा रही है.